भाई बन्धु/ सूर्यवंशियो और चन्द्रवंशियों के इतिहास के साथ-साथ शाकद्वीपीय मग भोजक ब्राह्मणों का इतिहास परस्पर जुड़ा है। चन्द्र से चन्द्रवंशियो और सूर्य से सूर्यवंशियों का आविर्भाव हुआ है, उसी तरह शाकद्वीप में भगवान सूर्य ने मेघातिथि की भावनानुसार सूर्य मंदिर की पूजा उपासना हेतु अपने शरीर के विभिन्न अंगों से ललाट उदर, भुजायें एवं चरणों से आठ मानस पुत्र उत्पन्न किये, जो मग ब्राह्मणों के नाम से सूर्य पूजा विधान को जानने वाले श्रेष्ठ ब्राह्मण कहलाये। सर्वप्रथम मेघातिथि ने इनको शाकद्वीप में सूर्य मंदिर का कार्य सौंपा। भविष्य पुराण, साम्ब पुराण, भागवत कथा आदि में इनके प्रमाण देखे जा सकते हैं।
भारत खण्ड के सात द्वीप थे। जिसका इस में यथा स्थान सप्रमाण वर्णन किया जायेगा। जम्बूद्वीप और शाकद्वीप परस्पर जुड़े थे। शाकद्वीप में सूर्य उपासक सूर्यवंशी और जम्बूद्वीप में चन्द्रवंशी जो भगवान श्रीकृष्ण के यदु कुल में जन्में वैष्णव उपासक है श्री कृष्ण विष्णु का अवतार है जो विष्णु ब्रह्म कहलाते हैं।
शाकद्वीप के निवासी होने से शाकद्वीपी भगवान भास्कर के मानस पुत्र ललाट से उत्पन्न होने वाले मग ब्राह्मण, भुजाओ से उत्पन्न होने वाले क्षत्रिय मागध और उदर (पेट) से पैदा होने वाले वैष्य मानस और चरणों से उत्पन्न होने वाले मन्दंग शुद्र कहलाये। ये चारो वर्ण के लोग अपनी योग्यता और प्रकृति अनुसार अपने-अपने कर्म करने में पारगंत हुवे। ब्रह्म का ज्ञान रखने वाले, सनातन धर्म का संदेश देने वाले शिक्षक, वेद पाठी ब्राह्मण कहलाये। सनातन धर्मियों की रक्षा करना राज की व्यवस्था करना तथा राज पर विधर्मियों के आक्रमणों से रक्षा करना, उनसे युद्ध करना क्षत्रिय कर्म करने वाले हुवे। व्यापार, वाणिज्य, खेती-बाड़ी, पशु पालन,ं व्यापार देष को समृद्धि के पथ पर ले जाने वाले वैष्य कहलाये। सेवा भाव से कार्य करने वाले श्रमजीवी चरणों से उत्पन्न शुद्र कहलाये।
जन्मना जायते शूद्र:। संस्कारदद्विज उच्यते।
वेद पाठो भवेद्विप्र: । ब्रह्म जानाति ब्राह्मण:।।
जन्म से सारे शुद्र होते हैं। संस्कारों से द्विज दुबारा जन्म लेता है। वेद पाठ पढने से वह विप्र कहलाता है तथा ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त करने से ही वह ब्राह्मण कहलाता है।
शाकद्वीप देश के निवासी शाकद्वीपीय सूर्य उपासक सूर्य द्विज मग ब्राह्मण तथा भोजक भोज कन्याओ से जम्बद्वीप में विवाह करने से भोजक और पंचायत मंदिरों की सेवा करने से सेवग या पुजारी सेवग के नाम से जाने जाते हैं। इसमें 18 कुलों के मग ब्राह्मण सम्पूर्ण भारत में फेले हुए हैं और पूजा उपासना के कर्म से जुड़ै हैं। सूयवंषियो ओर चन्द्रवंषियों के एशिया और यूरोप में कई नगरों के ये ही पुजारी थे। इन नगरों में सूर्य और विष्णु (कृष्ण) के मंदिरों की पूजा के साक्ष्य इतिहास में प्रचुर मात्रा में मिलते हैं जिनके साक्ष्य संग्रह किये गये है जो इस प्रकार है।
शाकद्वीप में 8 मग ब्राह्मणों के देश विस्तार से ये शाकद्वीप मग ब्राह्मण होने के कारण मग ब्राह्मण कहलाये। इस समय सभी चारों वर्ण परस्पर विवाह कर सकते थे। इसके प्रमाण आगे अनेक प्रसंगों में आयेंगे।
श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब मुलतान में बनाये मंदिर की पूजा उपासना हेतु मंदिर से 18 कुल गरूड़ विमान पर बैठाकर जम्बूद्वीप लाये तथा उनको सूर्य मंदिर का कार्य सौंपा।
मुलतान जम्बूद्वीप का प्राचीन नगर और शाकद्वीपीयो का प्रथम पड़ाव था। मुलतान के निवासी होने के कारण ये मुलतानी कहलाये। मुलतान से ही ये उतरप्रदेश, बिहार, उड़ीसा, आसाम आदि पूर्वी राज्यों तथा जैसलमेर मारवाड़ गुजरात मालवा महाराष्ट्र (मध्यप्रदेष) आदि राज्यों फैल गये। मग ब्राह्मणों ने भोजवंशी कन्याओं से विवाह किया। उनके वंशज भोजक कहलाये।
शाकद्वीप से आने कारण शाकद्वीपी मग ब्राह्मण वर्ण के कारण मग ओर भोजक कन्याओ के विवाह के कारण भोजक कहलाये। शक संवत् के प्रारम्भ में 12 शताब्दी तक ये शाकद्वीप मग भोजक ब्राह्मण कहलाते थे। उसके बाद में 13 वी शताब्दी में जैन ओसवाल शाखा का प्रादुर्भाव होने तथा जैनियों द्वारा मग भोजक ब्राहणों को अपना गुरू बनाने तथा उनके मंदिरों में मूर्तियों की सेवा करने के कारण सेंवक कहलाये।
छठी से बारहवी शताब्दी का इतिहास भारतीय संस्कृति के छिन भिन्न होने का इतिहास है। इस समय भारत में इस्लाम तलवार के बल पर विस्तार किया। शंकराचार्य द्वारा बौद्ध धर्म को परास्त करना, कई संम्प्रदायों का उदय होना, निराकार, निर्गुण, आकार, सगुण, आगम-निगम, निरंकारी, निहंग, दषनामी, साधु-सन्यासी, वैष्णव शैव सौर तथा सनातन धर्म अपने-अपने ढंग से समाज में अपना प्रभुत्व जमा कर प्रचार करने लगे। एक दूसरे का ऊँचा-नीचा दिखाने लगे। इस समय कई जातियां अनजात हो गई। उनके सामने विवाह सम्बन्ध करना भी कठीन हो गया। इस समय आठवी शताब्दी में शंकराचार्य जैसे महान योगी पुरूष का जन्म हुआ और उन्होंने हमारे धार्मिक सांस्कृतिक एकता के लिये सब धर्मो को एक स्थान पर लाने का कार्य किया। आपने पंचायतन मंदिरों का निर्माण कर विविध धार्मिक विचारधारा के लोगो को एक सूत्र में बाधंने का अनोखा कार्य किया। हिन्दू धार्मिक मान्यताओ को नवीन रूप देकर हिन्दू धर्म का पुर्नउद्धार किया तथा उन्हें मुख्य धारा मे लाये। इस समय धर्म भष्ट लोगो को अपने ऋषियों के गोत्र, प्रवर, वेद, षाखा, देवी, भैरू आदि नाम देकर नवीन संगठन बनाये।
हमारे शास्त्रों में पृथ्वी को संप्तद्वीपवर्ती कहा गया है। जम्बूद्वीप आदि में शाकद्वीप की गणना की गई है। महाभारत आदि ग्रंथों में वर्णन आता है कि त्रेतायुग में पुत्रोष्ठि कराने के लिये महाराज दषरथ ने तथा ़द्वापर में श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब का कुष्ठ रोग निवारण के लिये शाकद्वीप से मग ब्राह्मणों को बुलाया गया था। मग जाति के ब्राह्मणों के लिये 'भोजक' ऋतुवर्त तथा याजक आदि शब्दों का व्यवहार शास्त्रों में पाया जाता है । मूलत: शाकद्वीपी निवासी होने के नाम इन्हें शाकद्वीपी कहते हैं। साम्ब पुराण के अध्याय 25 में लिखा है-
136 इससे सिद्ध होता है कि द्वापर में सूर्याधन के लिये मग जाति के 18 कुल वंष जो सभी वेदपाठी थे। स्त्री पुत्र आदि के साथ शाकद्वीप से जम्बूद्वीप (भारत) आये थे। कुष्ठ पिराज आदि रोगों के निवृति के लिये भगवान सूर्य की आराधना विषेष लाभ दायक मानी गई है।
137 मग मगध देश 2 मग जाति के निवासी होने के कारण इस प्रदेश का नाम मगध पड़ा। विष्णु पुराण के अनुसार शाकद्वीप के ब्राह्मण को ही मग कहा जाता था। प्राचीन काल में शाकद्वीप के सूर्योपाषक पुरोहित कहलाते थे। इषु के जन्म पर जिन 6 जनों ने पता लगाकर इषु की जिन्होंने पूजा की थी उन्हे बाईबल मेSix wise man कहा गया है।
भविष्य पुराण मे आख्यान है कि श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को कोढ़ हो गया था। सूर्य की उपासना से स्वस्थ हो गये। साम्ब ने सूर्य मंदिर मुलतान (मूलस्थान) में सूर्य का मंदिर बनवाया था। तब नारद के परामर्श से शाकद्वीप से लाये थे और वहां से सूर्य की पूजा के लिये मग पुरोहितों को लाये थे। इससे यह विश्वास होता है कि मग जाति आर्यो की एक शाखा थी। इसी कारण मगों निवास स्थान मगध (मगों को धारण करने वाला) कहलाता था। किन्ही कारणो से इनकी एक शाखा इरान चली गयी थी। शको के साथ पुन: भारत मे आयी। आज भी गया के पास मगो का निवास है। मगध का उल्लेख वेदों तथा शतपथ ब्राह्मण ग्रंथों में मिलता है। यदि मग लोग विदेषी होते तो भारत का उतरी भाग मागध नहीं कहलाता। मानस मेगरी अयोध्या काण्ड शा.ब्रा. इतिहास-
लागहि कुमक वचन शुभ कैसे।
मगहि गयादिक तीरथ जैसे।
चन्द्रगुप्त वैष्णव जयपुर राजस्थान पत्रिका 6.5.9
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