शनिवार व्रत कथा
शनि व्रत अग्नि पुराण के अनुसार शनि ग्रह की से मुक्ति के लिए "मूल" नक्षत्र युक्त शनिवार से आरंभ करके सात शनिवार शनिदेव की व्रत एवं पूजा की जाती है।
एक समय सभी नवग्रहओं : सूर्य, चंद्र, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु में विवाद छिड़ गया, कि इनमें सबसे बड़ा कौन है? सभी आपस मेंं लड़ने लगे, और कोई निर्णय ना होने पर देवराज इंद्र के पास निर्णय कराने पहुंचे. इंद्र इससे घबरा गये, और इस निर्णय को देने में अपनी असमर्थता जतायी. परन्तु उन्होंने कहा, कि इस समय पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य हैं, जो कि अति न्यायप्रिय हैं। वे ही इसका निर्णय कर सकते हैं। सभी ग्रह एक साथ राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे, और अपना विवाद बताया। साथ ही निर्णय के लिये कहा। राजा इस समस्या से अति चिंतित हो उठे, क्योंकि वे जानते थे, कि जिस किसी को भी छोटा बताया, वही कुपित हो उठेगा. तब राजा को एक उपाय सूझा. उन्होंने स्वर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से नौ सिंहासन बनवाये, और उन्हें इसी क्रम से रख दिये. फ़िर उन सबसे निवेदन किया, कि आप सभी अपने अपने सिंहासन पर स्थान ग्रहण करें। जो अंतिम सिंहासन पर बेठेगा, वही सबसे छोटा होगा। इस अनुसार लौह सिंहासन सबसे बाद में होने के कारण, शनिदेव सबसे बाद में बैठे. तो वही सबसे छोटे कहलाये. उन्होंने सोचा, कि राजा ने यह जान बूझ कर किया है। उन्होंने कुपित हो कर राजा से कहा “राजा! तू मुझे नहीं जानता. सूर्य एक राशि में एक महीना, चंद्रमा सवा दो महीना दो दिन, मंगल डेड़ महीना, बृहस्पति तेरह महीने, व बुद्ध और शुक्र एक एक महीने विचरण करते हैं. परन्तु मैं ढाई से साढ़े-सात साल तक रहता हुँ. बड़े बड़ों का मैंने विनाश किया है. श्री राम की साढ़े साती आने पर उन्हें वनवास हो गया, रावण की आने पर उसकी लंका को बंदरों की सेना से परास्त होना पड़ा.अब तुम सावधान रहना. ” ऐसा कहकर कुपित होते हुए शनिदेव वहां से चले गये. अन्य देवता खुशी खुशी चले गये। कुछ समय बाद राजा की साढ़े साती आयी। तब शनि देव घोड़ों के सौदागर बनकर वहां आये। उनके साथ कई बढ़िया घोड़े थे। राजा ने यह समाचार सुन अपने अश्वपाल को अच्छे घोड़े खरीदने की आज्ञा दी। उसने कई अच्छे घोड़े खरीदे व एक सर्वोत्तम घोड़े को राजा को सवारी हेतु दिया। राजा ज्यों ही उस पर बैठा, वह घोड़ा सरपट वन की ओर भागा,भिषण वन में पहुंच वह अंतर्धान हो गया, और राजा भूखा प्यासा भटकता रहा। तब एक ग्वाले ने उसे पानी पिलाया. राजा ने प्रसन्न हो कर उसे अपनी अंगूठी दी। वह अंगूठी देकर राजा नगर को चल दिया, और वहां अपना नाम उज्जैन निवासी वीका बताया। वहां एक सेठ की दूकान में उसने जल इत्यादि पिया. और कुछ विश्राम भी किया। भाग्यवश उस दिन सेठ की बड़ी बिक्री हुई। सेठ उसे खाना इत्यादि कराने खुश होकर अपने साथ घर ले गया। वहां उसने एक खूंटी पर देखा, कि एक हार टंगा है, जिसे खूंटी निगल रही है। थोड़ी देर में पूरा हार गायब था। तब सेठ ने आने पर देखा कि हार गायब है। उसने समझा कि वीका ने ही उसे चुराया है। उसने वीका को कोतवाल के पास पकड़वा दिया। फिर राजा ने भी उसे चोर समझ कर हाथ पैर कटवा दिये। वह चौरंगिया बन गया।और नगर के बाहर फिंकवा दिया गया। वहां से एक तेली निकल रहा था, जिसे दया आयी, और उसने वीका को अपनी गाडी़ में बिठा लिया। वह अपनी जीभ से बैलों को हांकने लगा। उस काल राजा की शनि दशा समाप्त हो गयी। वर्षा काल आने पर वह मल्हार गाने लगा। तब वह जिस नगर में था, वहां की राजकुमारी मनभावनी को वह इतना भाया, कि उसने मन ही मन प्रण कर लिया, कि वह उस राग गाने वाले से ही विवाह करेगी। उसने दासी को ढूंढने भेजा। दासी ने बताया कि वह एक चौरंगिया है। परन्तु राजकुमारी ना मानी। अगले ही दिन से उठते ही वह अनशन पर बैठ गयी, कि विवाह करेगी तो उसी से। उसे बहुतेरा समझाने पर भी जब वह ना मानी, तो राजा ने उस तेली को बुला भेजा, और विवाह की तैयारी करने को कहा। फिर उसका विवाह राजकुमारी से हो गया। तब एक दिन सोते हुए स्वप्न में शनिदेव ने राजा से कहा: राजन्, देखा तुमने मुझे छोटा बता कर कितना दुःख झेला है। तब राजा ने उनसे क्षमा मांगी, और प्रार्थना की , कि हे शनिदेव जैसा दुःख मुझे दिया है, किसी और को ना दें। शनिदेव मान गये, और कहा: जो मेरी कथा और व्रत कहेगा, उसे मेरी दशा में कोई दुःख ना होगा। जो नित्य मेरा ध्यान करेगा, और चींटियों को आटा डालेगा, उसके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे। साथ ही राजा को हाथ पैर भी वापस दिये। प्रातः आंख खुलने पर राजकुमारी ने देखा, तो वह आश्चर्यचकित रह गयी। वीका ने उसे बताया, कि वह उज्जैन का राजा विक्रमादित्य है। सभी अत्यंत प्रसन्न हुए। सेठ ने जब सुना, तो वह पैरों पर गिर कर क्षमा मांगने लगा। राजा ने कहा, कि वह तो शनिदेव का कोप था। इसमें किसी का कोई दोष नहीं। सेठ ने फिर भी निवेदन किया, कि मुझे शांति तब ही मिलेगी जब आप मेरे घर चलकर भोजन करेंगे। सेठ ने अपने घर नाना प्रकार के व्यंजनों से राजा का सत्कार किया। साथ ही सबने देखा, कि जो खूंटी हार निगल गयी थी, वही अब उसे उगल रही थी। सेठ ने अनेक मोहरें देकर राजा का धन्यवाद किया, और अपनी कन्या श्रीकंवरी से पाणिग्रहण का निवेदन किया। राजा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। कुछ समय पश्चात राजा अपनी दोनों रानीयों मनभावनी और श्रीकंवरी को सभी उपाहार् सहित लेकर उज्जैन नगरी को चले। वहां पुरवासियों ने सीमा पर ही उनका स्वागत किया। सारे नगर में दीपमाला हुई, व सबने खुशी मनायी। राजा ने घोषणा की , कि मैंने शनि देव को सबसे छोटा बताया था, जबकि असल में वही सर्वोपरि हैं। तबसे सारे राज्य में शनिदेव की पूजा और कथा नियमित होने लगी। सारी प्रजा ने बहुत समय खुशी और आनंद के साथ बीताया। जो कोई शनि देव की इस कथा को सुनता या पढ़ता है, उसके सारे दुःख दूर हो जाते हैं। व्रत के दिन इस कथा को अवश्य पढ़ना चाहिये।और एक समय की बात है ।भगवान सूर्य के पुत्र शनि बचपन में बहुत सुंदर थे ।और तेजस्वी भी, इनकी सुंदरता को देखते हुए ,गंधर्व ने अपनी पुत्री कंकाली के साथ शनि देव का विवाह करा दिया । लेकिन अत्यंत सुंदर होने के कारण इंद्र की सभा के अप्सरा अक्सर इन्हें देखने जाया करती थी। इन अप्सरा को देखकर कई बार शनि देव उन पर मोहित हो ,गया यह बात गंधर्व पुत्री कंकाली को अच्छी नहीं लगती थी। तब गंधर्व पुत्री कंकाली ने अपने पति शनिदेव को यह श्राप दे दिया कि आज की पश्चाताप सुंदरता को खोकर बदसूरत हो। जाए और आपकी दृष्टि हमेशा नीचे की तरफ रहे अगर आप सीधी दृष्टि से किसी की तरफ देखते हैं ।तो उस पर साढ़ेसाती का प्रभाव पड़ जाएगा । तब शनिदेव भगवान शिव की घोर तपस्या की तपस्या के पश्चात भगवान शिव प्रसन्न हुए और बोले हे सूर्यपुत्र शनिदेव वर मांगो। तब शनिदेव बोले यह सदा शिव शंभू हम पर कृपा करके हमें सृष्टि पर सीधे देखने के लिए वर दीजिए भगवान शिव भोले जो व्यक्ति शनिवार के दिन पीपल के नीचे तेल चढ़ेगा उस पर तुम्हारे पढ़ने वाले को दृष्टि शुभ दृष्टि में बदल जाएगी इसीलिए शनिवार के दिन पीपल के नीचे शनिदेव की पूजा होती है।
शनि व्रत अग्नि पुराण के अनुसार शनि ग्रह की से मुक्ति के लिए "मूल" नक्षत्र युक्त शनिवार से आरंभ करके सात शनिवार शनिदेव की व्रत एवं पूजा की जाती है।
एक समय सभी नवग्रहओं : सूर्य, चंद्र, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु में विवाद छिड़ गया, कि इनमें सबसे बड़ा कौन है? सभी आपस मेंं लड़ने लगे, और कोई निर्णय ना होने पर देवराज इंद्र के पास निर्णय कराने पहुंचे. इंद्र इससे घबरा गये, और इस निर्णय को देने में अपनी असमर्थता जतायी. परन्तु उन्होंने कहा, कि इस समय पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य हैं, जो कि अति न्यायप्रिय हैं। वे ही इसका निर्णय कर सकते हैं। सभी ग्रह एक साथ राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे, और अपना विवाद बताया। साथ ही निर्णय के लिये कहा। राजा इस समस्या से अति चिंतित हो उठे, क्योंकि वे जानते थे, कि जिस किसी को भी छोटा बताया, वही कुपित हो उठेगा. तब राजा को एक उपाय सूझा. उन्होंने स्वर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से नौ सिंहासन बनवाये, और उन्हें इसी क्रम से रख दिये. फ़िर उन सबसे निवेदन किया, कि आप सभी अपने अपने सिंहासन पर स्थान ग्रहण करें। जो अंतिम सिंहासन पर बेठेगा, वही सबसे छोटा होगा। इस अनुसार लौह सिंहासन सबसे बाद में होने के कारण, शनिदेव सबसे बाद में बैठे. तो वही सबसे छोटे कहलाये. उन्होंने सोचा, कि राजा ने यह जान बूझ कर किया है। उन्होंने कुपित हो कर राजा से कहा “राजा! तू मुझे नहीं जानता. सूर्य एक राशि में एक महीना, चंद्रमा सवा दो महीना दो दिन, मंगल डेड़ महीना, बृहस्पति तेरह महीने, व बुद्ध और शुक्र एक एक महीने विचरण करते हैं. परन्तु मैं ढाई से साढ़े-सात साल तक रहता हुँ. बड़े बड़ों का मैंने विनाश किया है. श्री राम की साढ़े साती आने पर उन्हें वनवास हो गया, रावण की आने पर उसकी लंका को बंदरों की सेना से परास्त होना पड़ा.अब तुम सावधान रहना. ” ऐसा कहकर कुपित होते हुए शनिदेव वहां से चले गये. अन्य देवता खुशी खुशी चले गये। कुछ समय बाद राजा की साढ़े साती आयी। तब शनि देव घोड़ों के सौदागर बनकर वहां आये। उनके साथ कई बढ़िया घोड़े थे। राजा ने यह समाचार सुन अपने अश्वपाल को अच्छे घोड़े खरीदने की आज्ञा दी। उसने कई अच्छे घोड़े खरीदे व एक सर्वोत्तम घोड़े को राजा को सवारी हेतु दिया। राजा ज्यों ही उस पर बैठा, वह घोड़ा सरपट वन की ओर भागा,भिषण वन में पहुंच वह अंतर्धान हो गया, और राजा भूखा प्यासा भटकता रहा। तब एक ग्वाले ने उसे पानी पिलाया. राजा ने प्रसन्न हो कर उसे अपनी अंगूठी दी। वह अंगूठी देकर राजा नगर को चल दिया, और वहां अपना नाम उज्जैन निवासी वीका बताया। वहां एक सेठ की दूकान में उसने जल इत्यादि पिया. और कुछ विश्राम भी किया। भाग्यवश उस दिन सेठ की बड़ी बिक्री हुई। सेठ उसे खाना इत्यादि कराने खुश होकर अपने साथ घर ले गया। वहां उसने एक खूंटी पर देखा, कि एक हार टंगा है, जिसे खूंटी निगल रही है। थोड़ी देर में पूरा हार गायब था। तब सेठ ने आने पर देखा कि हार गायब है। उसने समझा कि वीका ने ही उसे चुराया है। उसने वीका को कोतवाल के पास पकड़वा दिया। फिर राजा ने भी उसे चोर समझ कर हाथ पैर कटवा दिये। वह चौरंगिया बन गया।और नगर के बाहर फिंकवा दिया गया। वहां से एक तेली निकल रहा था, जिसे दया आयी, और उसने वीका को अपनी गाडी़ में बिठा लिया। वह अपनी जीभ से बैलों को हांकने लगा। उस काल राजा की शनि दशा समाप्त हो गयी। वर्षा काल आने पर वह मल्हार गाने लगा। तब वह जिस नगर में था, वहां की राजकुमारी मनभावनी को वह इतना भाया, कि उसने मन ही मन प्रण कर लिया, कि वह उस राग गाने वाले से ही विवाह करेगी। उसने दासी को ढूंढने भेजा। दासी ने बताया कि वह एक चौरंगिया है। परन्तु राजकुमारी ना मानी। अगले ही दिन से उठते ही वह अनशन पर बैठ गयी, कि विवाह करेगी तो उसी से। उसे बहुतेरा समझाने पर भी जब वह ना मानी, तो राजा ने उस तेली को बुला भेजा, और विवाह की तैयारी करने को कहा। फिर उसका विवाह राजकुमारी से हो गया। तब एक दिन सोते हुए स्वप्न में शनिदेव ने राजा से कहा: राजन्, देखा तुमने मुझे छोटा बता कर कितना दुःख झेला है। तब राजा ने उनसे क्षमा मांगी, और प्रार्थना की , कि हे शनिदेव जैसा दुःख मुझे दिया है, किसी और को ना दें। शनिदेव मान गये, और कहा: जो मेरी कथा और व्रत कहेगा, उसे मेरी दशा में कोई दुःख ना होगा। जो नित्य मेरा ध्यान करेगा, और चींटियों को आटा डालेगा, उसके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे। साथ ही राजा को हाथ पैर भी वापस दिये। प्रातः आंख खुलने पर राजकुमारी ने देखा, तो वह आश्चर्यचकित रह गयी। वीका ने उसे बताया, कि वह उज्जैन का राजा विक्रमादित्य है। सभी अत्यंत प्रसन्न हुए। सेठ ने जब सुना, तो वह पैरों पर गिर कर क्षमा मांगने लगा। राजा ने कहा, कि वह तो शनिदेव का कोप था। इसमें किसी का कोई दोष नहीं। सेठ ने फिर भी निवेदन किया, कि मुझे शांति तब ही मिलेगी जब आप मेरे घर चलकर भोजन करेंगे। सेठ ने अपने घर नाना प्रकार के व्यंजनों से राजा का सत्कार किया। साथ ही सबने देखा, कि जो खूंटी हार निगल गयी थी, वही अब उसे उगल रही थी। सेठ ने अनेक मोहरें देकर राजा का धन्यवाद किया, और अपनी कन्या श्रीकंवरी से पाणिग्रहण का निवेदन किया। राजा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। कुछ समय पश्चात राजा अपनी दोनों रानीयों मनभावनी और श्रीकंवरी को सभी उपाहार् सहित लेकर उज्जैन नगरी को चले। वहां पुरवासियों ने सीमा पर ही उनका स्वागत किया। सारे नगर में दीपमाला हुई, व सबने खुशी मनायी। राजा ने घोषणा की , कि मैंने शनि देव को सबसे छोटा बताया था, जबकि असल में वही सर्वोपरि हैं। तबसे सारे राज्य में शनिदेव की पूजा और कथा नियमित होने लगी। सारी प्रजा ने बहुत समय खुशी और आनंद के साथ बीताया। जो कोई शनि देव की इस कथा को सुनता या पढ़ता है, उसके सारे दुःख दूर हो जाते हैं। व्रत के दिन इस कथा को अवश्य पढ़ना चाहिये।
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एक समय की बात है ।भगवान सूर्य के पुत्र शनि बचपन में बहुत सुंदर थे ।और तेजस्वी भी, इनकी सुंदरता को देखते हुए ,गंधर्व ने अपनी पुत्री कंकाली के साथ शनि देव का विवाह करा दिया । लेकिन अत्यंत सुंदर होने के कारण इंद्र की सभा के अप्सरा अक्सर इन्हें देखने जाया करती थी। इन अप्सरा को देखकर कई बार शनि देव उन पर मोहित हो ,गया यह बात गंधर्व पुत्री कंकाली को अच्छी नहीं लगती थी। तब गंधर्व पुत्री कंकाली ने अपने पति शनिदेव को यह श्राप दे दिया कि आज की पश्चाताप सुंदरता को खोकर बदसूरत हो। जाए और आपकी दृष्टि हमेशा नीचे की तरफ रहे अगर आप सीधी दृष्टि से किसी की तरफ देखते हैं ।तो उस पर साढ़ेसाती का प्रभाव पड़ जाएगा । तब शनिदेव भगवान शिव की घोर तपस्या की तपस्या के पश्चात भगवान शिव प्रसन्न हुए और बोले हे सूर्यपुत्र शनिदेव वर मांगो। तब शनिदेव बोले यह सदा शिव शंभू हम पर कृपा करके हमें सृष्टि पर सीधे देखने के लिए वर दीजिए भगवान शिव भोले जो व्यक्ति शनिवार के दिन पीपल के नीचे तेल चढ़ेगा उस पर तुम्हारे पढ़ने वाले को दृष्टि शुभ दृष्टि में बदल जाएगी इसीलिए शनिवार के दिन पीपल के नीचे शनिदेव की पूजा होती है।
मेष - कोर्ट-कचहरी से सम्बन्धित मामलों में विजय प्राप्त होगी। प्रतिष्ठित लोगों का सहयोग प्राप्त होगा। अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करेंगे। मन में सन्तोष रहेगा। अपने कार्य को विस्तार देने की योजना बना सकते हैं।
वृषभ - लव लाइफ में तनाव को कम करने में सफल रहेंगे। आपकी दैनिक आय अच्छी रहेगी। कार्यक्षेत्र का वातावरण अनुकूल रहेगा। आपका स्वास्थ्य बेहतर होगा। बच्चे अपने घर के बुजुर्गों से सीखने का प्रयास करेंगे।
मिथुन - दाम्पत्य जीवन में कलह हो सकती है। अपने लक्ष्यों को लेकर दिग्भ्रमित न हों। किसी पारिवारिक मित्र को लेकर धर्म संकट में फँस सकते हैं। कार्यक्षेत्र का वातावरण प्रतिकूल हो सकता है। चुनौतियों को सुलझाने में समय लगाना पड़ेगा।
कर्क - अपनी समझदारी से कठिन कार्यों को आसानी से पूरा कर लेंगे। कारोबारी यात्रा करनी पड़ सकती है। सकारात्मक ऊर्जा से युक्त रहेंगे। किसी बड़ी कम्पनी से जॉब का ऑफर आ सकता है। मन लगाकर काम करने से परिणाम बेहतर मिलेंगे।
सिंह - धन को लेकर विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। परिजनों पर विश्वास कम होगा। प्रतिष्ठित लोगों से सम्बन्ध अच्छे रखें। महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स को लेकर जल्दबाज़ी न करें। स्वादिष्ट भोजन का आनन्द उठायेंगे।
कन्या - मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिये दिन शानदार सफलता प्रदायक रहेगा। कार्यक्षेत्र में आपको सक्रियता बढ़ानी पड़ेगी। वैवाहिक जीवन से सन्तुष्ट रहेंगे। दोस्तों के साथ बेहतरीन समय बितायेंगे। सम्पत्ति सम्बन्धी मामलों में प्रगति होगी।
तुला - आपके खर्चे बढ़ सकते हैं। सेहत को लेकर सतर्क रहना होगा। अधिकारियों से तालमेल में कमी देखने को मिलेगी। परिवार की चिन्ता आपको परेशान कर सकती है। विदेश जाने का अवसर मिलने की सम्भावना है।
वृश्चिक - अधिकारी वर्ग आपको प्रोत्साहित करेगा। शिक्षा और प्रशासन से जुड़े लोगों के लिये दिन विशेष फलदायक रहने वाला है। रुके हुये कार्यों को दोबारा शुरू करने में सफलता मिलेगी। जीवनसाथी के साथ आपके सम्बन्ध और भी मधुर होंगे। धर्म-कर्म में रुचि लेंगे।
धनु - आज का दिन लाभ और हानि भरा रहेगा। फार्मा और कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों की आय बढ़ेगी। करियर में अतिरिक्त मेहनत के बाद ही परिणाम मिलेंगे। पिता के साथ सम्बन्ध अच्छे रखें। लोग आपके नेतृत्व पर सवाल खड़े कर सकते हैं।
मकर - जीवनसाथी आपसे नाराज हो सकता है। लोगों पर जरूरत से ज्यादा निर्भर न रहें। साझेदारी के कार्यों को लेकर आशंकित रहेंगे। इष्टदेव की पूजा-अर्चना से मन शान्त करने का प्रयास करेंगे। मेहनत का सकारात्मक परिणाम प्राप्त होगा।
कुम्भ - दूसरों की सहायता करने की इच्छा जागृत होगी। अस्थमा के रोगियों की समस्या बढ़ सकती है। त्वरित प्रतिक्रिया देने और क्रोध करने से बचें। लोग आपका अपमान करने की कोशिश करेंगे। यदि अत्यावश्यक न हो तो महत्वपूर्ण कार्यों की शुरुआत को दो दिनों के लिये टाल दें।
मीन - पूरा दिन व्यस्तता युक्त रहेगा। व्यापारिक सफलता से आनन्दित रहेंगे। परिवार का माहौल बहुत ही अच्छा रहेगा। अपनी कुशाग्र बुद्धि के प्रयोग से समस्याओं का निदान कर लेंगे। जीवनसाथी को खुश करने के लिये किसी पिकनिक की योजना बना सकते हैं। विद्यार्थीगण शिक्षा और करियर के प्रति गम्भीर होंगे।
- ज्योतिषी प्रेमशंकर शर्मा, बीकानेर।
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मेष - कोर्ट-कचहरी से सम्बन्धित मामलों में विजय प्राप्त होगी। प्रतिष्ठित लोगों का सहयोग प्राप्त होगा। अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करेंगे। मन में सन्तोष रहेगा। अपने कार्य को विस्तार देने की योजना बना सकते हैं।
वृषभ - लव लाइफ में तनाव को कम करने में सफल रहेंगे। आपकी दैनिक आय अच्छी रहेगी। कार्यक्षेत्र का वातावरण अनुकूल रहेगा। आपका स्वास्थ्य बेहतर होगा। बच्चे अपने घर के बुजुर्गों से सीखने का प्रयास करेंगे।
मिथुन - दाम्पत्य जीवन में कलह हो सकती है। अपने लक्ष्यों को लेकर दिग्भ्रमित न हों। किसी पारिवारिक मित्र को लेकर धर्म संकट में फँस सकते हैं। कार्यक्षेत्र का वातावरण प्रतिकूल हो सकता है। चुनौतियों को सुलझाने में समय लगाना पड़ेगा।
कर्क - अपनी समझदारी से कठिन कार्यों को आसानी से पूरा कर लेंगे। कारोबारी यात्रा करनी पड़ सकती है। सकारात्मक ऊर्जा से युक्त रहेंगे। किसी बड़ी कम्पनी से जॉब का ऑफर आ सकता है। मन लगाकर काम करने से परिणाम बेहतर मिलेंगे।
सिंह - धन को लेकर विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। परिजनों पर विश्वास कम होगा। प्रतिष्ठित लोगों से सम्बन्ध अच्छे रखें। महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स को लेकर जल्दबाज़ी न करें। स्वादिष्ट भोजन का आनन्द उठायेंगे।
कन्या - मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिये दिन शानदार सफलता प्रदायक रहेगा। कार्यक्षेत्र में आपको सक्रियता बढ़ानी पड़ेगी। वैवाहिक जीवन से सन्तुष्ट रहेंगे। दोस्तों के साथ बेहतरीन समय बितायेंगे। सम्पत्ति सम्बन्धी मामलों में प्रगति होगी।
तुला - आपके खर्चे बढ़ सकते हैं। सेहत को लेकर सतर्क रहना होगा। अधिकारियों से तालमेल में कमी देखने को मिलेगी। परिवार की चिन्ता आपको परेशान कर सकती है। विदेश जाने का अवसर मिलने की सम्भावना है।
वृश्चिक - अधिकारी वर्ग आपको प्रोत्साहित करेगा। शिक्षा और प्रशासन से जुड़े लोगों के लिये दिन विशेष फलदायक रहने वाला है। रुके हुये कार्यों को दोबारा शुरू करने में सफलता मिलेगी। जीवनसाथी के साथ आपके सम्बन्ध और भी मधुर होंगे। धर्म-कर्म में रुचि लेंगे।
धनु - आज का दिन लाभ और हानि भरा रहेगा। फार्मा और कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों की आय बढ़ेगी। करियर में अतिरिक्त मेहनत के बाद ही परिणाम मिलेंगे। पिता के साथ सम्बन्ध अच्छे रखें। लोग आपके नेतृत्व पर सवाल खड़े कर सकते हैं।
मकर - जीवनसाथी आपसे नाराज हो सकता है। लोगों पर जरूरत से ज्यादा निर्भर न रहें। साझेदारी के कार्यों को लेकर आशंकित रहेंगे। इष्टदेव की पूजा-अर्चना से मन शान्त करने का प्रयास करेंगे। मेहनत का सकारात्मक परिणाम प्राप्त होगा।
कुम्भ - दूसरों की सहायता करने की इच्छा जागृत होगी। अस्थमा के रोगियों की समस्या बढ़ सकती है। त्वरित प्रतिक्रिया देने और क्रोध करने से बचें। लोग आपका अपमान करने की कोशिश करेंगे। यदि अत्यावश्यक न हो तो महत्वपूर्ण कार्यों की शुरुआत को दो दिनों के लिये टाल दें।
मीन - पूरा दिन व्यस्तता युक्त रहेगा। व्यापारिक सफलता से आनन्दित रहेंगे। परिवार का माहौल बहुत ही अच्छा रहेगा। अपनी कुशाग्र बुद्धि के प्रयोग से समस्याओं का निदान कर लेंगे। जीवनसाथी को खुश करने के लिये किसी पिकनिक की योजना बना सकते हैं। विद्यार्थीगण शिक्षा और करियर के प्रति गम्भीर होंगे।
- ज्योतिषी प्रेमशंकर शर्मा, बीकानेर।
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