माँ ब्रह्माणी को लगाए कौनसा भोग, जिससे मिले लम्बी आयु का आशीर्वाद


 ब्रह्मचारिणी का अर्थ है तप का आचरण करने वाली देवी । देवी मां के दायं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में कमण्डल धारण किए रहतीं हैं। पूर्वजन्म में देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इसलिए इनका नाम शास्त्रों में ब्रह्मचारिणी कहा गया है।


    नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। यह भी मां दुर्गा का अवतार हैं, जिन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से पूजा जाता है। शास्त्रों ने लिखा हैकि ब्रह्मचारिणी का अर्थ है तप का आचरण करने वाली देवी । देवी मां के दायं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में कमण्डल धारण किए रहतीं हैं। पूर्वजन्म में देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इसलिए इनका नाम शास्त्रों में ब्रह्मचारिणी कहा गया है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने वाले भक्त हमेशा उज्जवलता और ऐश्वर्य का सुख भोगते हैं। मां को बुद्धि और ज्ञान की देवी भी कहा गया है। देवी ब्रह्मचारिणी की जो भक्त भाव से पूजा करते है उसे मां हमेशा खुशी रहने का आशीर्वाद देती हैं। वह व्यक्ति अपनी जिंदगी में हमेशा संयम, विश्वास रखता है। वह नैतिकता की शिक्षा देती हैं। जीवन में कई चुनौतियां है,जिन्हें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से दूर किया जा सकता है।

माता ब्रह्मचारिणी की पूजा से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता और वह अपने कार्य में लगा रहता है और माता ब्रह्मचारिणी के भक्त को माता की कृपा से कठिनाइयों से बावजूद सफलता मिलती है।

मां ब्रह्मचारिणी देवी पूजन विधि

कंडे (गाय के गोबर के उपले) जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा अर्पित करें। नवरात्र के दूसरे दिन हवन में मां ब्रह्मचारिणी की इन मंत्रों के उच्‍चारण के साथ पूजा करें। दूसरे दिन हवन में मां ब्रह्मचारिणी के इस मंत्र का उच्‍चारण करें - ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारिण्‍यै नम:।।

मां ब्रह्मचारिणी देवी का भोग

नवरात्र के दूसरे दिन माता को शक्कर का भोग लगाएं तथा उसका दान करें। इससे साधक को लंबी उम्र प्राप्त होती है। योग शास्त्र के अनुसार, यह शक्ति स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होती है। अत: स्वाधिष्ठान चक्र में ध्‍यान लगाने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है।

मां ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप

मां का स्वरूप दिव्य है। वे श्वेत वस्त्र पहन कर कन्या के रूप में हैं, जिनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल है। वे अक्षय माला और कमंडलधारिणी,शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त है। अपने भक्तों को वे अपनी सर्वज्ञ सम्पन्न विद्या देकर विजयी बनाती हैं।

मां ब्रह्मचारिणी देवी की कहानी

जब मां ब्रह्मचारिणी देवी ने हिमालय के घर जन्म लिया था, तब नारदजी के उपदेश से मिलने के बाद उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। मां ब्रह्मचारिणी देवी ने तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए और कई हजार वर्षों तक निर्जल व निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीर्ण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताकर सराहना की। उन्होंने कहा, हे देवी आपकी इस आराधना से आपकी मनोकामना जरूर पूर्ण होगी। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। मां की आराधना करने वाले व्यक्ति का कठिन संघर्षों के समय में भी मन विचलित नहीं होता है।

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