भाई बन्धु, बीकानेर। सावन मास में शिव आराधना करने के लिए शिवभक्त फूलों, पत्तों, अन्न, रस और फलों को शिवलिंग पर समर्पित करते हैं। भगवान भोलेनाथ को शमी और बिल्वपत्र के पत्तों को चढ़ाने का ज्यादा विधान है। बिल्वपत्र के पत्ते भगवान शिव को सर्वाधिक प्रिय है। बिल्वपत्र को शिव को समर्पित करने से शिवभक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। सावन मास में शिवलिंग पर बिल्वपत्र अर्पित करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। भगवान भोलेनाथ को जो वस्तुएं सबसे ज्यादा प्रिय है उनमें से एक बिल्वपत्र है। सिर्फ एक लोटा जल और उसके साथ बिल्वपत्र चढ़ाने से भोलेनाथ अति प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त को मनचाहा वरदान प्रदान करते हैं। बिल्वपत्र का गुणगान पौराणिक शास्त्रों में काफी किया गया है और इसको सावन मास में चढ़ाने का काफी ज्यादा महत्व बतलाया गया है।
बेल की कथा
बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में स्कंद पुराण में बताया गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर धरती पर फेंक दिया था, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिर गई थी, जिससे इस बेल पत्र के वृक्ष की उत्पत्ति हुई थी। मान्यता है कि इस वृक्ष की जड़ो में गिरिजा, तने में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में देवी कात्यायनी का वास रहता हैं। कहा जाता है कि बेल वृक्ष के कांटों में भी कई शक्तियां समाहित होती हैं। यह भी मान्यता है कि देवी महालक्ष्मी का भी बेलवृक्ष में वास रहता है। जो शिवभक्त शिव-पार्वती की पूजा बेलपत्र अर्पित कर करते हैं, उन्हें महादेव और देवी पार्वती दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
बिल्वपत्र और महादेव पूजा
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार अमृत मंथन के दौरान अमूल्य रत्नों के साथ विष भी निकला था। यह विष इतना भयानक था कि देव और असुर दोनों इससे भयाक्रांत हो गए। उस समय दोनों ने अपनी और सृष्टि की रक्षा के लिए शिव से इस विष का उपाय करने का निवेदन किया। तब महादेव ने इस विष को ग्रहण कर अपने कंठ में रख लिया था और नीलकंठ कहलाए थे। तभी से विष के प्रभाव की गर्मी को ठंडा करने के लिए शिव का जलाभिषेक करते हैं और उसके साथ बिल्वपत्र भी समर्पित करते हैं। बिल्वपत्र की तासीर भी काफी ठंडी मानी जाती है।
ऐसे बिल्वपत्र करें समर्पित
महादेव को बिल्वपत्र समर्पित करने में कुछ खास बातों का ख्याल रखना चाहिए। इससे शिव आराधना का संपूर्ण फल प्राप्त होता है। बिल्वपत्र छिद्रयुक्त नहीं होना चाहिए। शिवलिंग पर तीन पत्ते वाले, कोमल और अखण्ड बिल्वपत्र चढ़ाना चाहिए। बिल्वपत्र पर चक्र और वज्र नहीं होने चाहिए। बिल्वपत्रों में जो सफेद लगा रहता है उसको चक्र कहते हैं और डण्ठल में जो गांठ होती है उसको वज्र कहते है। बिल्वपत्र शिवलिंग पर उलटा चढ़ाना चाहिए अर्थात उसका चिकना वाला हिस्सा नीचे की ओर रहना चाहिए।
बिल्वपत्र तोड़ने के नियम
बिल्वपत्र तोड़ने के लिए कुछ तिथि और वार का ख्याल रखना चाहिए। चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथि को, संक्रान्ति और सोमवार को बिल्वपत्र नहीं तोड़ने चाहिए। किंतु इन दिनों में पहले से तोड़कर रखा गया बिल्वपत्र चढ़ाया जा सकता है। यदि ताजे बिल्वपत्र उपलब्ध नहीं है तो शिवलिंग पर समर्पित बिल्वपत्र को धोकर चढ़ाया जा सकता है।
बिल्वपत्र के प्रकार
बिल्वपत्र के भी कुछ प्रकार होते हैं। सामान्यत: तीन पत्तियों वाले बिल्वपत्र पाए जाते हैं और शिवजी को यही समर्पित किए जाते हैं। तीन पत्तियों से अधिक पत्ते वाले बेलपत्र अत्यन्त पवित्र माने जाते हैं। चार पत्ती वाला बिल्वपत्र को ब्रह्मा का स्वरूप माना जाता है। जबकि पांच पत्ती वाले बिल्वपत्र को शिव स्वरूप माना जाता है। छह से लेकर इक्कीस पत्तियों वाले बिल्वपत्र मुख्यत: नेपाल में मिलते हैं। इनका प्राप्त होना तो अत्यन्त ही दुर्लभ माना जाता है।
बिल्वपत्र की तीन पत्तियों में समाए है ये देवता
भगवान भोलेनाथ की पूजा में बिल्व पत्र यानी बेलपत्र का विशेष महत्व है। सामान्य तौर पर बेलपत्र में एक साथ तीन पत्तियां होती हैं इन तीनों पत्तियों को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। बिल्वपत्र का गुणगान कई शास्त्रों में किया गया है। शिवपुराण में इसके संबंध में विशेष रूप से बतलाया गया है। महादेव ने स्वयं इसका गुणगान किया है।
बिल्वपत्र चढ़ाने का मंत्र
नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो
दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम् पापनाशनम् ।
अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम् ॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम् ।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम् ।
कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम् ॥
गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर ।
सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय ॥
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