भाई बन्धु। सावन मास को पवित्र मास माना जाता है। यह मास महादेव को अतिप्रिय है और इस मास में शिव आराधना से शिवभक्तों के समस्त कष्टों का नाश होता है और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। सावन मास में चारों ओर वर्षा होती रहती है। जल की बहुतायत होने की वजह से यह मास शिव का भी प्रिय मास है। इस मास में शिव का जलाभिषेक करने से वो शीघ्र प्रसन्न होते हैं अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं। शिवालयों में इस दौरान शिव भक्तों का काफी जमावड़ा लगा रहता है, लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते श्रद्धालु घर पर ही शिवपूजा करेंगे। सावन मास के सोमवार का काफी महत्व है और इसका विधि-विधान से पूजन किया जाता है। सावन सोमवार के व्रत की पूजा संध्या के वक्त की जाती है। इसके लिए सूर्योदय के पूर्व उठकर व्रत का संकल्प लें। इस मास में भक्त शिवलिंग पर जल, बिल्वपत्र, भांग, धतूरा, सुगंधित फूल, ऋतुफल, मेवे, मिष्ठान्न समर्पित करता है। इस मास में कई प्रमुख तिथि और त्यौहार भी आते हैं। इनमें से प्रमुख इस प्रकार है।
सावन के नियम
सावन सोमवार के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें। अनैतिक कार्यों से बचें और बुरे विचारों को मन में न लाए। वृद्धों, असहायों की मदद करे और उनका सम्मान करें। इस महीनें में पौधारोपण करें, लेकिन हरे पेड़ों को काटने से बचें।
हिन्दू धर्म, अनेक मान्यताओं और विभिन्न प्रकार के संकलन से बना है। हिन्दू धर्म के अनुयायी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ़ रहते हैं कि हिन्दू जीवनशैली में क्या चीज अनिवार्य है और क्या पूरी तरह वर्जित। यही वजह है कि अधिकांश हिंदू परिवारों में नीति-नियमों का भरपूर पालन किया जाता है।
हालांकि मॉडर्न होती जीवनशैली और बाहरी चकाचौंध के चक्कर में लोग अपने वास्तविक मूल्यों को दरकिनार कर चुके हैं। उदाहरण के लिए नवरात्रि को ही ले लीजिए, शायद ही कोई ऐसा घर हो जहां नवरात्रि के दिनों में मांस, मदिरा का सेवन किया जाता है। ऐसा ही कुछ सावन में भी देखा जाता है।
हिन्दू परिवारों में सावन को बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण महीने के तौर पर देखा जाता है। इसकी महत्ता इसी बात से समझी जा सकती है कि सावन के माह में मांसाहार पूरी तरह त्याज्य होता है और शाकाहार को ही उपयुक्त माना गया है। इसके अलावा मदिरा पान भी निषेध माना गया है। लेकिन ऐसा क्या है जो सावन के माह को इतना विशिष्ट बनाता है?
चैत्र के पांचवे महीने को सावन का महीना कहा जाता है। इस माह के सभी दिन धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व रखते हैं। गहराई से समझा जाए तो इस माह का प्रत्येक दिन एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है।
सावन को साल का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस माह का प्रत्येक दिन किसी भी देवी-देवता की आराधना करने के लिए सबसे उपयुक्त होता है, विशेष तौर पर इस माह में भगवान शिव, माता पार्वती और श्रीकृष्ण की आराधना की जाती है।
ऐसा कहा जाता है कि जिस तरह इस माह में कीट-पतंगे अपनी सक्रियता बढ़ा देते हैं, उसी तरह मनुष्य को भी पूजा-पाठ में अपनी सक्रियता को बढ़ा देनी चाहिए। यह महीना बारिशों का होता है, जिससे कि पानी का जल स्तर बढ़ जाता है। मूसलाधार बारिश नुकसान पहुंचा सकती है इसलिए शिव पर जल चढ़ाकर उन्हें शांत किया जाता है।
महाराष्ट्र में जल स्तर को सामान्य रखने की एक अनोखी प्रथा विद्यमान है। वे सावन के महीने में समुद्र में जाकर नारियल अर्पण करते हैं ताकि किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं पहुंच पाए। एक पौराणिक कथा धार्मिक हिन्दू दस्तावेजों में मौजूद है जिसके अनुसार समुद्र मंथन के दौरान निकले विष का पान करने से भगवान शिव के शरीर का तापमान तेज गति से बढऩे लगा था।
ऐसे में शरीर को शीतल रखने के लिए भोलेनाथ ने चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया और अन्य देव उन पर जल की वर्षा करने लगे। यहां तक कि इन्द्र देव भी यह चाहते थे कि भगवान शिव के शरीर का तापमान कम हो जाए इसलिए उन्होंने अपने तेज से मूसलाधार बारिश कर दी। इस वजह से सावन के महीने में अत्याधिक बारिश होती है, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं।
भगवान शिव के भक्त कावड़ ले जाकर गंगा का पानी शिव की प्रतिमा पर अर्पित कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं। इसके अलावा सावन माह के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव पर जल चढ़ाना शुभ और फलदायी माना जाता है।
सावन के महीने में व्रत रखने का भी विशेष महत्व दर्शाया गया है। ऐसी मान्यता है कि कुंवारी लड़कियां अगर इस पूरे महीने व्रत रखती हैं तो उन्हें उनकी पसंद का जीवनसाथी मिलता है। इसके पीछे भी एक कथा मौजूद है जो शिव और पार्वती से जुड़ी है।
पिता दक्ष द्वारा अपने पति का अपमान होता देख सती ने आत्मदाह कर लिया था। पार्वती के रूप में सती ने पुनर्जन्म लिया और शिव को अपना बनाने के लिए उन्होंने सावन के सभी सोमवार का व्रत रखा। फलस्वरूप उन्हें भगवान शिव पति रूप में मिले।
यह सब तो पौराणिक मान्यताएं हैं, जिनका सीधा संबंध धार्मिक कथाओं से है। परंतु सावन के महीने में मांसाहार से क्यों परहेज किया जाता है इसके पीछे का कारण धार्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक भी है।
दरअसल सावन के पूरे माह में भरपूर बारिश होती है जिससे कि कीड़े-मकोड़े सक्रिय हो जाते हैं। इसके अलावा इस मौसम में उनका प्रजनन भी अधिक मात्रा में होता है। इसलिए बाहर के खाने का सेवन सही नहीं माना जाता।
पशु-पक्षी, जिस माहौल में रहते हैं वहां साफ-सफाई का विशेष ध्यान नहीं रखा जाता, जिससे कि उनके भी संक्रमित होने की संभावना बढ़ती है। इसलिए मांसाहार को वर्जित कहा गया है।
आयुर्वेद में भी इस बात का जिक्र है कि सावन के महीने में मांस के संक्रमित होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है, इसलिए इस पूरे माह मांस-मछली या अन्य मांसाहार के सेवन को निषेध कहा गया है।
सावन के महीने को प्रेम और प्रजनन का महीना कहा जाता है। इस माह में मछलियां और पशु, पक्षी सभी में गर्भाधान की संभावना होती है। किसी भी गर्भवती मादा की हत्या हिन्दू धर्म में एक पाप माना गया है इसलिए सावन के महीने में जीव को मारकर उसका सेवन नहीं किया जाता।
स्कंद पुराण में सावन के नियम
स्कंदपुराण के अनुसार शिवभक्त को सावन मास में एक समय व्रत करना चाहिए। इसका मतलब यह है कि एक समय सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए। स्नान के जल में बिल्वपत्र या आंवला डालकर स्नान करना चाहिए। ऐसा करने से जाने-अनजाने में हुए समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। सावन मास में जल में भगवान श्रीहरी का वास होता है। इसलिए इस महीने तीर्थ के जल में स्नान का काफी महत्व बतलाया गया है। असहायों, गरीबों और साधु-संतों को वस्त्रों का दान करना चाहिए। चांदी के पात्र में दूध, दही या पंचामृत का दान करना चाहिए। तांबे के बर्तन में अन्न, फल या भोजन सामग्री को रखकर दान करना चाहिए।
इन मंत्रों का करें जाप
ॐ श्री शिवाय नम :, ॐ श्री शंकराय नम:, ॐ श्री महेशवराय नम:, ॐ श्री सांबसदाशिवाय नम:, ॐ श्री रुद्राय नम:, ॐ पार्वतीपतये नम:, ॐ नमो नीलकण्ठाय
कमिका एकादशी
कमिका एकादशी का पर्व 16 जुलाई गुरुवार को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से समस्त पापों का नाश हो जाता है। सावन मास में श्रीहरी की पूजा करने से समस्त देवी-देवताओं की पूजा का फल प्राप्त हो जाता है।
सावन शिवरात्रि
सावन मास शिव का प्रिय मास है और इस मास की शिवरात्रि के दिन भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस साल सावन शिवरात्रि 19 जुलाई रविवार को है। इस दिन महादेव के साथ देवी पार्वती की आराधना की जाती है।
सोमवती अमावस्या
इस अमावस्या को हरियाली अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन प्रकृति पूजा का प्रावधान है। भक्त इस दिन पौधारोपण कर धरती को हरा-भरा करने की कवायद करते हैं। पितृकार्यों के लिए यह श्रेष्ठ फलदायी है। इस साल श्रावणी अमावस्या 20 जुलाई सोमवार को है।
नागपंचमी
नागपंचमी का पर्व सावन मनाया जाएगा। इस दिन लोग सर्पों की पूजा और आराधना करेंगे। इस दिन लोग घरों में तवा, कड़ाई चूल्हे पर नहीं चढ़ाते हैं। सब्जियों को काटा नहीं जाता है और सूई धागे तक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। गांवों में लोग अपना पहली फसल को नाग देवता को चढ़ाकर उनका आभार व्यक्त करते हैं। नागों में वासुकी, तक्षक और शेषनाग काफी प्रसिद्ध हैं। इस साल नागपंचमी 25 जुलाई शनिवार को है।
हरियाली तीज
मान्यता है कि इस दिन महादेव और देवी पार्वती कैलाश छोड़कर धरती पर निवास करते हैं। महिलाओं के लिए इस त्योहार का खास महत्व है।
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