पंचांग - सोमवार, जुलाई 13, 2020
रामेश्वरम् मंदिर, रामनाथपुरम (तमिलनाडु)
दक्षिण भारत में तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित रामेश्वरम् मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में एक है। हर साल यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। रामेश्वरम्, तमिलनाडु राज्य में स्थित एक शांत शहर है और यह करामाती पबंन द्वीप का हिस्सा है। यह शहर पंबन चैनल के माध्यम से देश के अन्य हिस्सों से जुड़ा हुआ है। रामेश्वरम, चेन्नई से 596 और श्री लंका के मन्नार द्वीप से 1403 किमी. की दूरी पर स्थित है। रामेश्वरम को हिंदूओं के सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है, इसे चार धाम की यात्राओं में से एक स्थल माना जाता है।किंवदंतियों के अनुसार, भगवान राम, भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे जिन्होंने यहां अपनी पत्नी सीता को रावण के चंगुल से बचाने के लिए यहां से श्री लंका तक के लिए एक पुल का निर्माण किया था। वास्तव में, रामेश्वर का अर्थ होता है 'भगवान राम' और इस स्थान का नाम, भगवान राम के नाम पर ही रखा गया। यहां स्थित प्रसिद्ध रामनाथस्वामी मंदिर, भगवान राम को समर्पित है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री राम ने अपने चौदह साल के वनवास में कई पुण्य और धर्म के काम किए जिसे हम सुनते चले आ रहे है। श्री राम ने ऐसे ही कई महान काम किए थे। उन्होनें रावण का वध कर उसके राक्षस राज का अंत किया था। जिसके लिए उनका जन्म हुआ था। हिंदू धर्म के ग्रंथों में माना जाता है कि इसके बाद जब प्रभु श्रीराम ने रावण का अंत किया और सीताजी को लेकर वापस आए तो ऋषि-मुनियों ने श्री राम से कहा कि उनपर ब्राहम्ण हत्या का पाप लगा है। इसके लिए उन्हें पाप मुक्त होना पड़ेगा। इसके बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के द्वीप पर ब्राहम्ण हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए रामेश्वरम् में शिवलिंग की स्थापना करने का विचार किया। उन्होंने हनुमान जी को कैलाश पर्वत पर भेजा जिससे वह उनके लिंग स्वरूप को वहां ला सकें, हनुमान चले भी गए लेकिन उन्हें शिवलिंग लेकर लौटने में देर हो गई तो मां सीता ने समुद्र किनारे रेत से ही शिवलिंग की स्थापना कर दी। वहीं पवनसुत हनुमान के द्वारा लाए गए शिवलिंग को सीताजी के द्वारा बनाए गए शिवलिंग के पास ही स्थापित कर दिया। हनुमान द्वारा लाए गए लिंग को "विश्वलिंग" कहा गया जबकि सीताजी द्वारा बनाये गए लिंग को "रामलिंग" कहा गया। ये दोनों शिवलिंग इस तीर्थ के मुख्य मंदिर में आज भी पूजित हैं। यही मुख्य शिवलिंग ज्योतिर्लिंग है। राम के निर्देशानुसार यह विश्वलिंगम आज भी प्रथम पूजा का ध्यान रखता है।
पौराणिक ग्रंथों में एक मान्यता भी है कि जब भगवान श्री राम लंका की तरफ युद्ध के लिए आगे बढ़ रहे थे, तब उन्होंनें समुद्र के किनारे अपनी वानर सेना सहित शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी। पूजा से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने श्री राम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया था। श्री राम ने भोलेनाथ से यह भी अनुरोध किया कि सदैव इस ज्योतिर्लिंग रुप में यहां निवास करें और भक्तों को अपना आशीर्वाद दें। उनकी इस प्रार्थना को भगवान शंकर ने स्वीकार किया और ज्योतिर्लिंग के रूप में यही विराजमान हो गए।
रामेश्वरम् मंदिर भारतीय निर्माण-कला और शिल्पकला का एक सुंदर नमूना है। भारत में प्रमुख चार धाम हैं जो देश के चारों दिशाओं में स्थित हैं, जिनमें एक दक्षिण भारत में स्थित रामेश्वर धाम है। रामेश्वरम चेन्नई से लगभग 683 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व में है। जो भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख जैसे का आकार द्वीप है। टापू के दक्षिणी कोने में धनुषकोटि नामक तीर्थ है, यहां भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व पत्थरों के सेतु का निर्माण करवाया था, जिसके प्रत्येक पथ्तरों पर राम नाम लिख गया ऐसा माना जाता है कि जिन पत्थरों पर राम का नाम लिखा हुआ था वह पानी में नहीं डूबे जिन पर चढ़कर वानर सेना लंका पहुंची व वहां विजय पाई। यह मंदिर क्षेत्र 15 एकड़ में बना हुआ है। इस मंदिर में 12 वीं शताब्दी से विभिन्न शासकों के शासनकाल के दौरान बदलाव आया है। यह अपनी शानदार सुंदरता के लिए जाना जाता है रामेश्वरम मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे बड़ा गलियारा माना जाता है। यह उत्तर-दक्षिण में 197 मी. एवं पूर्व-पश्चिम 133 मी. है जिसकी चौड़ाई 6 मी. तथा ऊंचाई 9 मी. है। गोपुरम, मंदिर के द्वार से लेकर मंदिर का हर स्तंभ, हर दीवार वास्तुकला की दृष्टि से अद्भुत है।
मंदिर परिसर में 22 थीर्थम (तीर्थम) स्थान हैं जिनका अपना अलग-अलग स्थान और महत्व है। यहीं स्थापित है 'अग्नि तीर्थम।' कहा जाता है कि इस तीर्थ में स्नान करने से सारी बिमारियां दूर हो जाती हैं। साथ ही सारे पापों का भी नाश हो जाता है। तीर्थ के इस जल का रहस्य आज तक कोई भी नहीं समझ पाया लेकिन यह बेहद चमत्कारिक माना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में गंगाजल से प्रभू की पूजा करने से मन मांगी मुराद मिलती है। यही वजह है कि हर साल लाखों लोग रामेश्वरम् में प्रभु की उपासना करने के लिए जाते हैं। ऐसे में अगर आपका भी प्लान किसी आध्यात्मिक सैर का है तो आपको भी एक बार 'रामेश्वरम्' के दर्शन के लिए जरूर जाना चाहिए।
पंबन ब्रिज- पल्क जलडमरूमध्य पर एक रेलवे पुल है, जिसके साथ सड़क मार्ग भी जुड़ा हुआ है। पम्बन द्वीप रामेश्वरम् शहर को तमिलनाडु के अन्य शहरों से जोड़ता है। यह भारत का पहला समुद्री पुल था।
धनुष कोड़ी बीच- हिंदू धर्मग्रंथ रामायण में उल्लेख किया गया है। कि भगवान राम ने अपनी सेना को आने जाने के लिए मुख्य भूमि और श्रीलंका के बीच, राम सेतु पुल या पक्की सड़क का निर्माण किया था। जब राम ने युद्ध जीतने के बाद लंका के एक नए राजा विभीषण की ताजपोशी की इसके बाद उन्होंने श्रीराम से पुल को नष्ट करने का अनुरोध किया। राम ने अपने धनुष के एक छोर से पुल को तोड़ दिया। इसलिए,यह धनुषकोडि के नाम से जाना गया, (धनुष का अर्थ 'धनुष' और कोड़ी का अर्थ 'अंत')है। पंबन स्टेशन से चलने वाली धनुषकोडि रेलवे लाइन 1964 के चक्रवात में नष्ट हो गई थी और 100 से अधिक यात्रियों से भरी एक ट्रेन समुद्र में डूब गई थी।
तमिलनाडु में पम्बन द्वीप पर स्थित एक शहर है जो 13,224.22 क्षेत्र में फैला है, यंहा बोली जाने वाली भाषाएं तमिल, अंग्रेजी, हिंदी, मराठी भाषाएं हैं। यह शहर रामनाथस्वामी मंदिर के लिए जाना जाता है, रामेश्वरम् के समुद्र तट पर तरह-तरह की कोड़ियां, शंख और सीपें मिलती हैं। रामेश्वरम् केवल धार्मिक महत्व का तीर्थ ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी यह स्थल दर्शनीय है। निकटतम हवाई अड्डा मदुरै है जो रामेश्वरम से 163 किमी दूर है।
सड़क मार्ग- रामेश्वरम जिला अच्छी तरह से मदुरै, कन्याकुमारी, चेन्नई और त्रिची जैसे बड़े शहरों से जुड़ा है। यह भी मदुरै के माध्यम से पांडिचेरी और तंजावुर से जुड़ा है। यात्रा के लिए आप जीप, ऑटो रिक्शा और यहां तक कि चक्र रिक्शा किराया पर करके भी जा सकते हैं।
रेल द्वारा - रामेश्वरम चेन्नई, मदुरै, कोयंबटूर, त्रिची, तंजावुर और अन्य महत्वपूर्ण शहरों के साथ रेल द्वारा जुड़ा हुआ है।जो मांडापम रेल्वे स्टेशन से थो़ड़ी दूर चलने पर प्रारंभ हो जाता है जिसकी लंम्बाई 2 किमी है। रामेश्वरम तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई रेल्वे स्टेशन से 596 किलोमीटर दूर है जहां नियमित ट्रेन रामेश्वरम एक्सप्रेस चलाई जाती है।
पूजा/दर्शन समय
सुबह- 05:00 बजे फिर दोपहर 1 बजे
शाम को- 03:00 और रात्रि में 9 बजे
पूजा विधि
मंदिर में 26 प्रकार की पूजा विधि का उल्लेख किया गया है। जिनमें से 9 पूजा विधि प्रमुख हैं। जो निश्चित रकम का भुगतान करने पर करवाई जा सकती हैं।
मंदिर से जुड़े जरुरी जानकारी- मंदिर परिसर में 22 थीर्थम (तीर्थम) स्थान हैं जिनका अपना अलग-अलग स्थान और महत्व है। यहीं स्थापित है 'अग्नि तीर्थम।' कहा जाता है कि इस तीर्थ में स्नान करने से सारी बिमारियां दूर हो जाती हैं। साथ ही सारे पापों का भी नाश हो जाता है। तीर्थ के इस जल का रहस्य आज तक कोई भी नहीं समझ पाया लेकिन यह बेहद चमत्कारिक माना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में गंगाजल से प्रभू की पूजा करने से मन मांगी मुराद मिलती है। यही वजह है कि हर साल लाखों लोग रामेश्वरम् में प्रभु की उपासना करने के लिए जाते हैं। ऐसे में अगर आपका भी प्लान किसी आध्यात्मिक सैर का है तो आपको भी एक बार 'रामेश्वरम्' के दर्शन के लिए जरूर जाना चाहिए।
निर्धारित अवधि में नियमित पूजा करने के लिए, देवस्थानम कार्यालय से प्राप्त टिकटों के साथ व्यक्तिगत तीर्थयात्रियों की ओर से पुजारियों द्वारा पूजा भी की जाती है। श्रद्धालु अभिषेक से ग्रहण किए जाने वाले गंगा जल को पीतल के बर्तन में लेकर आवें ,क्योकिं मंदिर में टिन या लोहे से बने पात्रों को स्वीकार नहीं किया जाता। जो श्रद्धालु अगर इस तरह के बर्तन नहीं लाते हैं वे प्रति पात्र के निर्धारित शुल्क के भुगतान पर गंगा जल डाक या रेल द्वारा निर्धारित शुल्क देकर मंगा सकते हैं। अथवा आप मंदिर से उपलब्ध तांबे के बर्तनों में अभिषेक का जल भुगतान करके ले सकतें हैं।
प्रत्येक सन्निधि के मुख्य द्वार पर एक हंडी बॉक्स उपलब्ध है। जिसमें भक्त अपने नकद चढ़ावा चढ़ा सकते हैं। अधिकारियों और जनता की मौजूदगी में समय-समय पर हुंडी बक्से खोले जाते हैं, और चढ़ावे से प्राप्त आय को मंदिर के खाते में जमा कर दिया जाता है।
मंदिर पर आयोजित किए जाने वाले त्यौहार
महाशिवरात्रि यह पर्व फरवरी या मार्च के माह में 10 दिनों तक मनाया जाता है।
बंसतोत्सव यह मई जून के माह में 10 दिनों तक चलता है जो वैशाख की पूर्णिमा को समाप्त हो जाता है।
"रामलिंग" प्रतिष्ठाई भी मई या फिर जून के माह से आरंभ होकर गुरू पूर्णिमा को 3 दिन बाद खत्म होता है।
तिरूकल्याणम् जुलाई या अगस्त में 17 दिनों तक आयोजित किया जाता है।
नवरात्रि दशहरा उत्सव 10 दिन तक मनाया जाता है।
कंठा शष्टि 6 दिनों तक अक्टूबर या नवंबर के माह में आयोजित किया जाता है।
अरूधीरा दर्शन साल के अंतिम या शुरू के महीने में 10 दिनों के लिए मनाया जाता है।
अन्य आंतरिक तीर्थ स्थल
देवी मंदिर, सेतु माधव, बाईस कुण्ड, विल्लीरणि तीर्थ, एकांत राम, कोद्ण्ड स्वामि मंदिर, सीता कुण्ड, आदि-सेतु
मेष - बॉस से आपको काफी अच्छी सलाह और मार्गदर्शन प्राप्त होगा। विद्यार्थी नया कुछ सीखने की कोशिश करेंगे। कई मानसिक उलझनों को सुलझा लेंगे। धार्मिक विचारों के प्रभाव में रहेंगे। अपने काम की गुणवत्ता को बढ़ाने का प्रयास करें।
वृषभ - नजदीकी लोग धोखा दे सकते हैं। बहुमूल्य वस्तु गुम या चोरी हो सकती है। आर्थिक दृष्टि से दिन शुभ नहीं है। दाम्पत्य सम्बन्धों को पूरा समय नहीं दे पायेंगे। मेहनत का सुखद परिणाम प्राप्त नहीं होगा।
मिथुन - कुछ अच्छी और मंहगी वस्तु खरीद सकते हैं। जीवनसाथी के साथ मतभेदों को दूर करने के लिये दिन बेहतरीन रहने वाला है। परिस्थितियाँ पूरी तरह से आपके पक्ष में रहेंगी। व्यवसाय में अचानक धन वृद्धि होगी। कोई शुभ सूचना मिल सकती है।
कर्क - घर में शान्ति का माहौल रहेगा। स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहेंगे। गृहस्थ जीवन को लेकर परेशान होना पड़ेगा। काम को लेकर फोकस रहेगा। जॉब की खोज कर रहे लोगों को सफलता मिलेगी।
सिंह - सन्तान के भविष्य को लेकर चिन्ता रहेगी। लव कपल्स अपने रिश्ते को सार्वजनिक कर सकते हैं। उलझी हुयी बातें करने से बचें। धैर्य और संयम का परिचय दें। तकनीकी शिक्षा ग्रहण कर रहे विद्यार्थियों को जॉब के नये अवसर मिल सकते हैं।
कन्या - अपनी रचनात्मकता का बेहतर प्रयोग कर पायेंगे। परिवार के लोगों का व्यवहार अच्छा रहेगा। सोचे हुये कार्य तय समय पर पूरे नहीं होंगे। शत्रु आपके विरुद्ध सक्रिय रहेंगे। कार्यक्षेत्र में आपके काम को लेकर लोग टिप्पणी कर सकते हैं।
तुला - ईमानदारी से अपना काम करते रहेंगे। कारोबार में उन्नति के अवसर मिलेंगे। लोग आपको भटकाने का प्रयास कर सकते हैं। जॉब की समस्या हल होगी। मित्रों से लाभ अवश्य मिलेगा। भाग्य आपका भरपूर साथ देगा।
वृश्चिक - अपनी योजनाओं को साकार करने के लिये समय सही है। आपकी वाणी में आक्रोश रहेगा। मन में अनावश्यक चिन्ता रहेगी। सिरदर्द की समस्या हो सकती है। मूड स्विंग होने के कारण कार्यों में अड़चन आयेगी।
धनु - अनावश्यक विचार से बचें। कमीशन और शेयर मार्केट आदि से जुड़े लोगों को हानि हो सकती है। वैवाहिक जीवन में तनाव रहेगा। शिक्षा में बाधा आ सकती है। अचानक से कोई खुशी मिलेगी।
मकर - कार्यक्षेत्र में विवाद की स्थिति बन सकती है। मन में उदासी रहेगी। माता-पिता का सहयोग मिलेगा। स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही न करें। झूठी बातें बोलने से बचें। वाहन दुर्घटना हो सकती है।
कुम्भ - सम्पत्ति के सौदे लाभदायक होंगे। बातचीत से किसी बड़ी समस्या का समाधान निकाल लेंगे। अपने काम में पूरी तरह मग्न रहने वाले हैं। परिवार में सुख-शान्ति रहेगी। धर्म-कर्म में धन खर्च होगा।
मीन - दिन सामान्य फलदायक रहने वाला है। धन को लेकर कुछ परेशान हो सकते हैं। ऑफिस में आपका काम में मन नहीं लगेगा। लोगों से अपनी गुप्त बातें शेयर न करें। आज हो सके तो घर में ही आराम करें। बच्चों के साथ मनोरंजन भरा समय बितायेंगे।
- ज्योतिषी प्रेमशंकर शर्मा, बीकानेर।
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किंवदंतियों के अनुसार, भगवान राम, भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे जिन्होंने यहां अपनी पत्नी सीता को रावण के चंगुल से बचाने के लिए यहां से श्री लंका तक के लिए एक पुल का निर्माण किया था। वास्तव में, रामेश्वर का अर्थ होता है 'भगवान राम' और इस स्थान का नाम, भगवान राम के नाम पर ही रखा गया। यहां स्थित प्रसिद्ध रामनाथस्वामी मंदिर, भगवान राम को समर्पित है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री राम ने अपने चौदह साल के वनवास में कई पुण्य और धर्म के काम किए जिसे हम सुनते चले आ रहे है। श्री राम ने ऐसे ही कई महान काम किए थे। उन्होनें रावण का वध कर उसके राक्षस राज का अंत किया था। जिसके लिए उनका जन्म हुआ था। हिंदू धर्म के ग्रंथों में माना जाता है कि इसके बाद जब प्रभु श्रीराम ने रावण का अंत किया और सीताजी को लेकर वापस आए तो ऋषि-मुनियों ने श्री राम से कहा कि उनपर ब्राहम्ण हत्या का पाप लगा है। इसके लिए उन्हें पाप मुक्त होना पड़ेगा। इसके बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के द्वीप पर ब्राहम्ण हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए रामेश्वरम् में शिवलिंग की स्थापना करने का विचार किया। उन्होंने हनुमान जी को कैलाश पर्वत पर भेजा जिससे वह उनके लिंग स्वरूप को वहां ला सकें, हनुमान चले भी गए लेकिन उन्हें शिवलिंग लेकर लौटने में देर हो गई तो मां सीता ने समुद्र किनारे रेत से ही शिवलिंग की स्थापना कर दी। वहीं पवनसुत हनुमान के द्वारा लाए गए शिवलिंग को सीताजी के द्वारा बनाए गए शिवलिंग के पास ही स्थापित कर दिया। हनुमान द्वारा लाए गए लिंग को "विश्वलिंग" कहा गया जबकि सीताजी द्वारा बनाये गए लिंग को "रामलिंग" कहा गया। ये दोनों शिवलिंग इस तीर्थ के मुख्य मंदिर में आज भी पूजित हैं। यही मुख्य शिवलिंग ज्योतिर्लिंग है। राम के निर्देशानुसार यह विश्वलिंगम आज भी प्रथम पूजा का ध्यान रखता है।
पौराणिक ग्रंथों में एक मान्यता भी है कि जब भगवान श्री राम लंका की तरफ युद्ध के लिए आगे बढ़ रहे थे, तब उन्होंनें समुद्र के किनारे अपनी वानर सेना सहित शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी। पूजा से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने श्री राम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया था। श्री राम ने भोलेनाथ से यह भी अनुरोध किया कि सदैव इस ज्योतिर्लिंग रुप में यहां निवास करें और भक्तों को अपना आशीर्वाद दें। उनकी इस प्रार्थना को भगवान शंकर ने स्वीकार किया और ज्योतिर्लिंग के रूप में यही विराजमान हो गए।
रामेश्वरम् मंदिर भारतीय निर्माण-कला और शिल्पकला का एक सुंदर नमूना है। भारत में प्रमुख चार धाम हैं जो देश के चारों दिशाओं में स्थित हैं, जिनमें एक दक्षिण भारत में स्थित रामेश्वर धाम है। रामेश्वरम चेन्नई से लगभग 683 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व में है। जो भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख जैसे का आकार द्वीप है। टापू के दक्षिणी कोने में धनुषकोटि नामक तीर्थ है, यहां भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व पत्थरों के सेतु का निर्माण करवाया था, जिसके प्रत्येक पथ्तरों पर राम नाम लिख गया ऐसा माना जाता है कि जिन पत्थरों पर राम का नाम लिखा हुआ था वह पानी में नहीं डूबे जिन पर चढ़कर वानर सेना लंका पहुंची व वहां विजय पाई। यह मंदिर क्षेत्र 15 एकड़ में बना हुआ है। इस मंदिर में 12 वीं शताब्दी से विभिन्न शासकों के शासनकाल के दौरान बदलाव आया है। यह अपनी शानदार सुंदरता के लिए जाना जाता है रामेश्वरम मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे बड़ा गलियारा माना जाता है। यह उत्तर-दक्षिण में 197 मी. एवं पूर्व-पश्चिम 133 मी. है जिसकी चौड़ाई 6 मी. तथा ऊंचाई 9 मी. है। गोपुरम, मंदिर के द्वार से लेकर मंदिर का हर स्तंभ, हर दीवार वास्तुकला की दृष्टि से अद्भुत है।
पूजा/दर्शन समय
सुबह- 05:00 बजे फिर दोपहर 1 बजे
शाम को- 03:00 और रात्रि में 9 बजे
पूजा विधि
मंदिर में 26 प्रकार की पूजा विधि का उल्लेख किया गया है। जिनमें से 9 पूजा विधि प्रमुख हैं। जो निश्चित रकम का भुगतान करने पर करवाई जा सकती हैं।
मंदिर से जुड़े जरुरी जानकारी- मंदिर परिसर में 22 थीर्थम (तीर्थम) स्थान हैं जिनका अपना अलग-अलग स्थान और महत्व है। यहीं स्थापित है 'अग्नि तीर्थम।' कहा जाता है कि इस तीर्थ में स्नान करने से सारी बिमारियां दूर हो जाती हैं। साथ ही सारे पापों का भी नाश हो जाता है। तीर्थ के इस जल का रहस्य आज तक कोई भी नहीं समझ पाया लेकिन यह बेहद चमत्कारिक माना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में गंगाजल से प्रभू की पूजा करने से मन मांगी मुराद मिलती है। यही वजह है कि हर साल लाखों लोग रामेश्वरम् में प्रभु की उपासना करने के लिए जाते हैं। ऐसे में अगर आपका भी प्लान किसी आध्यात्मिक सैर का है तो आपको भी एक बार 'रामेश्वरम्' के दर्शन के लिए जरूर जाना चाहिए।
निर्धारित अवधि में नियमित पूजा करने के लिए, देवस्थानम कार्यालय से प्राप्त टिकटों के साथ व्यक्तिगत तीर्थयात्रियों की ओर से पुजारियों द्वारा पूजा भी की जाती है। श्रद्धालु अभिषेक से ग्रहण किए जाने वाले गंगा जल को पीतल के बर्तन में लेकर आवें ,क्योकिं मंदिर में टिन या लोहे से बने पात्रों को स्वीकार नहीं किया जाता। जो श्रद्धालु अगर इस तरह के बर्तन नहीं लाते हैं वे प्रति पात्र के निर्धारित शुल्क के भुगतान पर गंगा जल डाक या रेल द्वारा निर्धारित शुल्क देकर मंगा सकते हैं। अथवा आप मंदिर से उपलब्ध तांबे के बर्तनों में अभिषेक का जल भुगतान करके ले सकतें हैं।
प्रत्येक सन्निधि के मुख्य द्वार पर एक हंडी बॉक्स उपलब्ध है। जिसमें भक्त अपने नकद चढ़ावा चढ़ा सकते हैं। अधिकारियों और जनता की मौजूदगी में समय-समय पर हुंडी बक्से खोले जाते हैं, और चढ़ावे से प्राप्त आय को मंदिर के खाते में जमा कर दिया जाता है।
मंदिर पर आयोजित किए जाने वाले त्यौहार
महाशिवरात्रि यह पर्व फरवरी या मार्च के माह में 10 दिनों तक मनाया जाता है।
बंसतोत्सव यह मई जून के माह में 10 दिनों तक चलता है जो वैशाख की पूर्णिमा को समाप्त हो जाता है।
"रामलिंग" प्रतिष्ठाई भी मई या फिर जून के माह से आरंभ होकर गुरू पूर्णिमा को 3 दिन बाद खत्म होता है।
तिरूकल्याणम् जुलाई या अगस्त में 17 दिनों तक आयोजित किया जाता है।
नवरात्रि दशहरा उत्सव 10 दिन तक मनाया जाता है।
कंठा शष्टि 6 दिनों तक अक्टूबर या नवंबर के माह में आयोजित किया जाता है।
अरूधीरा दर्शन साल के अंतिम या शुरू के महीने में 10 दिनों के लिए मनाया जाता है।
अन्य आंतरिक तीर्थ स्थल
देवी मंदिर, सेतु माधव, बाईस कुण्ड, विल्लीरणि तीर्थ, एकांत राम, कोद्ण्ड स्वामि मंदिर, सीता कुण्ड, आदि-सेतु
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