पंचांग - रविवार, जुलाई 12, 2020
आकाश भैरब, नेपाल
भैरव (शाब्दिक अर्थ- भयानक भैरव का अर्थ होता है - भय + रव = भैरव अर्थात् भय से रक्षा करनेवाला।) हिन्दुओं के एक देवता हैं जो शिव के रूप हैं। भैरवों की संख्या ५२ है। ये ५२ भैरव भी ८ भागों में विभक्त हैं।भैरव एक हिंदू देवता हैं जिन्हें हिंदुओं द्वारा पूजा जाता है। शैव धर्म में, वह शिव के विनाश से जुड़ा एक उग्र रूप है। त्रिक प्रणाली में भैरव परम ब्रह्म के पर्यायवाची, सर्वोच्च वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। आमतौर पर हिंदू धर्म में, भैरव को दंडपाणि भी कहा जाता है (जैसा कि वह पापियों को दंड देने के लिए एक छड़ी या डंडा रखते हैं) और स्वस्वा का अर्थ है "जिसका वाहन (सवारी) कुत्ता है"। वज्रयान बौद्ध धर्म में, उन्हें बोधिसत्व मंजुश्री का एक उग्र वशीकरण माना जाता है और उन्हें हरुका, वज्रभैरव और यमंतक भी कहा जाता है। वह पूरे भारत, श्रीलंका और नेपाल के साथ-साथ तिब्बती बौद्ध धर्म में भी पूजे जाते हैं। हिन्दू और जैन दोनों भैरव की पूजा करते हैं।
‘शिवपुराण’ के अनुसार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, अतः इस तिथि को काल-भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहाँ तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा। तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई।
कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कारयुक्त वचन कहे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी। स्रष्टा तो यह देख कर भय से चीख पड़े। शंकर द्वारा मध्यस्थता करने पर ही वह काया शांत हो सकी। रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला। बाद में शिव ने उसे अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया। ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा। भैरव अष्टमी 'काल' का स्मरण कराती है, इसलिए मृत्यु के भय के निवारण हेतु बहुत से लोग कालभैरव की उपासना करते हैं।
ऐसा भी कहा जाता है की ,ब्रह्मा जी के पांच मुख हुआ करते थे तथा ब्रह्मा जी पांचवे वेद की भी रचना करने जा रहे थे,सभी देवो के कहने पर महाकाल भगवान शिव ने जब ब्रह्मा जी से वार्तालाप की परन्तु ना समझने पर महाकाल से उग्र,प्रचंड रूप भैरव प्रकट हुए और उन्होंने नाख़ून के प्रहार से ब्रह्मा जी की का पांचवा मुख काट दिया, इस पर भैरव को ब्रह्मा हत्या का पाप भी लगा।
कालान्तर में भैरव-उपासना की दो शाखाएं- बटुक भैरव तथा काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं। जहां बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए।
पुराणों में भैरव का उल्लेखतंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है –असितांग-भैरव, रुद्र-भैरव, चंद्र-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव, भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव।
कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का एक गण बताया गया है जिसका वाहन कुत्ता है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी
महाभैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रुद्र भैरव, कालभैरव, क्रोध भैरव ताम्रचूड़ भैरव तथा चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का निर्देश है। इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है -भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:।मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया॥भैरव साधना व ध्यान ध्यान के बिना साधक मूक सदृश है, भैरव साधना में भी ध्यान की अपनी विशिष्ट महत्ता है। किसी भी देवता के ध्यान में केवल निर्विकल्प-भाव की उपासना को ही ध्यान नहीं कहा जा सकता। ध्यान का अर्थ है - उस देवी-देवता का संपूर्ण आकार एक क्षण में मानस-पटल पर प्रतिबिम्बित होना। श्री बटुक भैरव जी के ध्यान हेतु इनके सात्विक, राजस व तामस रूपों का वर्णन अनेक शास्त्रों में मिलता है।
जहां सात्विक ध्यान - अपमृत्यु का निवारक, आयु-आरोग्य व मोक्षफल की प्राप्ति कराता है, वहीं धर्म, अर्थ व काम की सिद्धि के लिए राजस ध्यान की उपादेयता है, इसी प्रकार कृत्या, भूत, ग्रहादि के द्वारा शत्रु का शमन करने वाला तामस ध्यान कहा गया है। ग्रंथों में लिखा है कि गृहस्थ को सदा भैरवजी के सात्विक ध्यान को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।
भारत में भैरव के प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनमें काशी का काल भैरव मंदिर एवं लोहागढ़ मोठ झाँसी उ प्र में स्थित बटुक भैरव मंदिर सर्वप्रमुख माना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है। नैनीताल के समीप घोड़ाखाल का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहाँ गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। उत्तराखंड चमोली जिला के सिरण गांव में भी भैरव गुफा काफी प्राचीन है। इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है। जयगढ़ के प्रसिद्ध किले में काल-भैरव का बड़ा प्राचीन मंदिर है जिसमें भूतपूर्व महाराजा जयपुर के ट्रस्ट की और से दैनिक पूजा-अर्चना के लिए पारंपरिक-पुजारी नियुक्त हैं। ।
भारतीय संस्कृति प्रारंभ से ही प्रतीकवादी रही है और यहाँ की परम्परा में प्रत्येक पदार्थ तथा भाव के प्रतीक उपलब्ध हैं। यह प्रतीक उभयात्मक हैं - अर्थात स्थूल भी हैं और सूक्ष्म भी। सूक्ष्म भावनात्मक प्रतीक को ही कहा जाता है- देवता। चूँकि भय भी एक भाव है, अत: उसका भी प्रतीक है - उसका भी एक देवता है और उसी भय का हमारा देवता हैं- महाभैरवरे
मेष - आज का दिन उतार-चढ़ाव भरा रहेगा। अनचाही यात्रा करनी पड़ सकती है। भाइयों और मित्रों के साथ मनमुटाव की आशंका रहेगी। अपनी बात खुलकर नहीं कह पायेंगे। बिजनेस में कुछ नया करने का विचार उत्पन्न होगा। सेहत का ध्यान रखें।
वृषभ - लव कपल्स के लिये दिन बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है। विवाह के लिये प्रस्ताव मिलेंगे। परिवार के साथ स्वादिष्ट भोजन का आनन्द उठायेंगे। स्वास्थ्य काफी अच्छा रहेगा। आय में निश्चितता रहेगी।
मिथुन - समय का सार्थक उपयोग कर पायेंगे। कार्यक्षेत्र में आपको पदोन्नति मिल सकती हैं। निवेश के सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। अतीत में लिये हुये निर्णय आज आपको बहुत लाभ देने वाले हैं। परिवार का सहयोग मिलने से मन सन्तुष्ट रहेगा।
कर्क - विदेश से नौकरी के प्रस्ताव मिल सकते हैं। माता-पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। कार्यक्षेत्र में सहकर्मियों का साथ मिलेगा। पुरानी गलतियों से सीखने का प्रयास करें। अनावश्यक लड़ाई-झगड़े से दूर रहें।
सिंह - अधूरे कार्यों को पूरा करेंगे। खर्चों में बढ़ोत्तरी आपने बजट को प्रभावित कर सकती है। अवसर हाथ से निकल सकते हैं। परिवार से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलेगा। आय में कमी आ सकती है। अपने क्रोध पर नियन्त्रण रखें।
कन्या - आपके कारोबार में शानदार वृद्धि होगी। मनोवांछित परिणाम मिलने के प्रबल योग बन रहे हैं। कार्यक्षेत्र में आपको किसी पुरस्कार के लिये नामांकित किया जा सकता है। कठिन कार्य आसानी से पूरे हो जायेंगे। दाम्पत्य जीवन में प्रेम और रोमांस बढ़ेगा।
तुला - उच्चाधिकारी आपकी प्रशंसा करेंगे। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिये समय उपयुक्त है। आत्मविश्वास से भरपूर रहेंगे। मित्र आपकी भरसक सहायता करेंगे। अधिकारी वर्ग आपकी योग्यता को प्रोत्साहित करेगा।
वृश्चिक - नया काम सीखने की इच्छा जागृत होगी। प्रेमी जन के प्रति मन में अविश्वास जन्म ले सकता है। कार्यक्षेत्र में अपने प्रदर्शन से असन्तुष्ट रहेंगे। सन्तान की सेहत का विशेष ध्यान रखें। अजनबियों पर भरोसा न करें।
धनु - नये व्यापारिक साझेदार जुड़ सकते हैं। महत्वपूर्ण अभिलेखों को सम्भाल कर रखें। करियर के दृष्टिकोण से दिन बेहतर रहेगा। मन में असन्तोष का भाव रहेगा। जीवनसाथी के साथ नोंक-झोंक हो सकती है।
मकर - किसी पुरानी समस्या का निवारण होगा। परिवार और जॉब दोनों जगह जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभायेंगे। महत्वपूर्ण निर्णय लेने में परेशानी आयेगी। अपने से बड़ों की सलाह पर अवश्य मंथन करें। धन-धान्य में वृद्धि होगी।
कुम्भ - मन में उमंग-उत्साह में वृद्धि होगी। परिवार जनों के साथ सम्बन्ध मधुर रहेंगे। लोग आपकी वाणी से प्रभावित रहेंगे। कंसल्टेंसी और ट्रेडिंग से जुड़े लोगों को जबरदस्त लाभ मिलेगा। अपनी ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग कर पायेंगे। सोचे हुये कार्य समय पर पूरे हो जायेंगे।
मीन - आध्यात्मिक गतिविधियों में मन लगेगा। सम्पत्ति के विवादों का समाधान मिल सकता है। बच्चों के साथ मनोरंजन भरा समय बिताने का प्रयास करेंगे। जीवनसाथी आपसे काफी प्रभवित रहेगा। आज अपने दिल की बात कहने में कोई संकोच न करें। नये व्यवसाय की योजना बना सकते हैं।
- ज्योतिषी प्रेमशंकर शर्मा, बीकानेर।
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भैरव (शाब्दिक अर्थ- भयानक भैरव का अर्थ होता है - भय + रव = भैरव अर्थात् भय से रक्षा करनेवाला।) हिन्दुओं के एक देवता हैं जो शिव के रूप हैं। भैरवों की संख्या ५२ है। ये ५२ भैरव भी ८ भागों में विभक्त हैं।भैरव एक हिंदू देवता हैं जिन्हें हिंदुओं द्वारा पूजा जाता है। शैव धर्म में, वह शिव के विनाश से जुड़ा एक उग्र रूप है। त्रिक प्रणाली में भैरव परम ब्रह्म के पर्यायवाची, सर्वोच्च वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। आमतौर पर हिंदू धर्म में, भैरव को दंडपाणि भी कहा जाता है (जैसा कि वह पापियों को दंड देने के लिए एक छड़ी या डंडा रखते हैं) और स्वस्वा का अर्थ है "जिसका वाहन (सवारी) कुत्ता है"। वज्रयान बौद्ध धर्म में, उन्हें बोधिसत्व मंजुश्री का एक उग्र वशीकरण माना जाता है और उन्हें हरुका, वज्रभैरव और यमंतक भी कहा जाता है।
वह पूरे भारत, श्रीलंका और नेपाल के साथ-साथ तिब्बती बौद्ध धर्म में भी पूजे जाते हैं। हिन्दू और जैन दोनों भैरव की पूजा करते हैं।
‘शिवपुराण’ के अनुसार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, अतः इस तिथि को काल-भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहाँ तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा। तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई।
कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कारयुक्त वचन कहे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी। स्रष्टा तो यह देख कर भय से चीख पड़े। शंकर द्वारा मध्यस्थता करने पर ही वह काया शांत हो सकी। रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला। बाद में शिव ने उसे अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया। ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा। भैरव अष्टमी 'काल' का स्मरण कराती है, इसलिए मृत्यु के भय के निवारण हेतु बहुत से लोग कालभैरव की उपासना करते हैं।
ऐसा भी कहा जाता है की ,ब्रह्मा जी के पांच मुख हुआ करते थे तथा ब्रह्मा जी पांचवे वेद की भी रचना करने जा रहे थे,सभी देवो के कहने पर महाकाल भगवान शिव ने जब ब्रह्मा जी से वार्तालाप की परन्तु ना समझने पर महाकाल से उग्र,प्रचंड रूप भैरव प्रकट हुए और उन्होंने नाख़ून के प्रहार से ब्रह्मा जी की का पांचवा मुख काट दिया, इस पर भैरव को ब्रह्मा हत्या का पाप भी लगा।
कालान्तर में भैरव-उपासना की दो शाखाएं- बटुक भैरव तथा काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं। जहां बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए।
पुराणों में भैरव का उल्लेख
तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है –
असितांग-भैरव, रुद्र-भैरव, चंद्र-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव, भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव।
कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का एक गण बताया गया है जिसका वाहन कुत्ता है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी
महाभैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रुद्र भैरव, कालभैरव, क्रोध भैरव ताम्रचूड़ भैरव तथा चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का निर्देश है। इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है -
भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:।
मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया॥
भैरव साधना व ध्यान
ध्यान के बिना साधक मूक सदृश है, भैरव साधना में भी ध्यान की अपनी विशिष्ट महत्ता है। किसी भी देवता के ध्यान में केवल निर्विकल्प-भाव की उपासना को ही ध्यान नहीं कहा जा सकता। ध्यान का अर्थ है - उस देवी-देवता का संपूर्ण आकार एक क्षण में मानस-पटल पर प्रतिबिम्बित होना। श्री बटुक भैरव जी के ध्यान हेतु इनके सात्विक, राजस व तामस रूपों का वर्णन अनेक शास्त्रों में मिलता है।
जहां सात्विक ध्यान - अपमृत्यु का निवारक, आयु-आरोग्य व मोक्षफल की प्राप्ति कराता है, वहीं धर्म, अर्थ व काम की सिद्धि के लिए राजस ध्यान की उपादेयता है, इसी प्रकार कृत्या, भूत, ग्रहादि के द्वारा शत्रु का शमन करने वाला तामस ध्यान कहा गया है। ग्रंथों में लिखा है कि गृहस्थ को सदा भैरवजी के सात्विक ध्यान को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।
भारत में भैरव के प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनमें काशी का काल भैरव मंदिर एवं लोहागढ़ मोठ झाँसी उ प्र में स्थित बटुक भैरव मंदिर सर्वप्रमुख माना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है। नैनीताल के समीप घोड़ाखाल का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहाँ गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। उत्तराखंड चमोली जिला के सिरण गांव में भी भैरव गुफा काफी प्राचीन है। इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है। जयगढ़ के प्रसिद्ध किले में काल-भैरव का बड़ा प्राचीन मंदिर है जिसमें भूतपूर्व महाराजा जयपुर के ट्रस्ट की और से दैनिक पूजा-अर्चना के लिए पारंपरिक-पुजारी नियुक्त हैं। ।
भारतीय संस्कृति प्रारंभ से ही प्रतीकवादी रही है और यहाँ की परम्परा में प्रत्येक पदार्थ तथा भाव के प्रतीक उपलब्ध हैं। यह प्रतीक उभयात्मक हैं - अर्थात स्थूल भी हैं और सूक्ष्म भी। सूक्ष्म भावनात्मक प्रतीक को ही कहा जाता है- देवता। चूँकि भय भी एक भाव है, अत: उसका भी प्रतीक है - उसका भी एक देवता है और उसी भय का हमारा देवता हैं- महाभैरवरे
मेष - आज का दिन उतार-चढ़ाव भरा रहेगा। अनचाही यात्रा करनी पड़ सकती है। भाइयों और मित्रों के साथ मनमुटाव की आशंका रहेगी। अपनी बात खुलकर नहीं कह पायेंगे। बिजनेस में कुछ नया करने का विचार उत्पन्न होगा। सेहत का ध्यान रखें।
वृषभ - लव कपल्स के लिये दिन बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है। विवाह के लिये प्रस्ताव मिलेंगे। परिवार के साथ स्वादिष्ट भोजन का आनन्द उठायेंगे। स्वास्थ्य काफी अच्छा रहेगा। आय में निश्चितता रहेगी।
मिथुन - समय का सार्थक उपयोग कर पायेंगे। कार्यक्षेत्र में आपको पदोन्नति मिल सकती हैं। निवेश के सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। अतीत में लिये हुये निर्णय आज आपको बहुत लाभ देने वाले हैं। परिवार का सहयोग मिलने से मन सन्तुष्ट रहेगा।
कर्क - विदेश से नौकरी के प्रस्ताव मिल सकते हैं। माता-पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। कार्यक्षेत्र में सहकर्मियों का साथ मिलेगा। पुरानी गलतियों से सीखने का प्रयास करें। अनावश्यक लड़ाई-झगड़े से दूर रहें।
सिंह - अधूरे कार्यों को पूरा करेंगे। खर्चों में बढ़ोत्तरी आपने बजट को प्रभावित कर सकती है। अवसर हाथ से निकल सकते हैं। परिवार से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलेगा। आय में कमी आ सकती है। अपने क्रोध पर नियन्त्रण रखें।
कन्या - आपके कारोबार में शानदार वृद्धि होगी। मनोवांछित परिणाम मिलने के प्रबल योग बन रहे हैं। कार्यक्षेत्र में आपको किसी पुरस्कार के लिये नामांकित किया जा सकता है। कठिन कार्य आसानी से पूरे हो जायेंगे। दाम्पत्य जीवन में प्रेम और रोमांस बढ़ेगा।
तुला - उच्चाधिकारी आपकी प्रशंसा करेंगे। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिये समय उपयुक्त है। आत्मविश्वास से भरपूर रहेंगे। मित्र आपकी भरसक सहायता करेंगे। अधिकारी वर्ग आपकी योग्यता को प्रोत्साहित करेगा।
वृश्चिक - नया काम सीखने की इच्छा जागृत होगी। प्रेमी जन के प्रति मन में अविश्वास जन्म ले सकता है। कार्यक्षेत्र में अपने प्रदर्शन से असन्तुष्ट रहेंगे। सन्तान की सेहत का विशेष ध्यान रखें। अजनबियों पर भरोसा न करें।
धनु - नये व्यापारिक साझेदार जुड़ सकते हैं। महत्वपूर्ण अभिलेखों को सम्भाल कर रखें। करियर के दृष्टिकोण से दिन बेहतर रहेगा। मन में असन्तोष का भाव रहेगा। जीवनसाथी के साथ नोंक-झोंक हो सकती है।
मकर - किसी पुरानी समस्या का निवारण होगा। परिवार और जॉब दोनों जगह जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभायेंगे। महत्वपूर्ण निर्णय लेने में परेशानी आयेगी। अपने से बड़ों की सलाह पर अवश्य मंथन करें। धन-धान्य में वृद्धि होगी।
कुम्भ - मन में उमंग-उत्साह में वृद्धि होगी। परिवार जनों के साथ सम्बन्ध मधुर रहेंगे। लोग आपकी वाणी से प्रभावित रहेंगे। कंसल्टेंसी और ट्रेडिंग से जुड़े लोगों को जबरदस्त लाभ मिलेगा। अपनी ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग कर पायेंगे। सोचे हुये कार्य समय पर पूरे हो जायेंगे।
मीन - आध्यात्मिक गतिविधियों में मन लगेगा। सम्पत्ति के विवादों का समाधान मिल सकता है। बच्चों के साथ मनोरंजन भरा समय बिताने का प्रयास करेंगे। जीवनसाथी आपसे काफी प्रभवित रहेगा। आज अपने दिल की बात कहने में कोई संकोच न करें। नये व्यवसाय की योजना बना सकते हैं।
- ज्योतिषी प्रेमशंकर शर्मा, बीकानेर।
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