जानिए क्या है? सूर्य नमस्कार के विधि और फल


प्रत्यक्षं देवता सूर्यो जगच्चक्षु दिवाकर:
तस्मादभ्यधिका काचिद्दवेता नास्ति शाश्वतीं
यस्मादिदं जगज्जातं लयं यास्यति यत्र च
इस सूर्य नमस्कार से शारीरिक व्यायाम, मंत्र जप से देवताओं की कृपा और ध्यान द्वारा आत्म शुद्धि प्राप्त होती है।सूर्य नमस्कार के लिये पहले संकल्प करें।
ॐ अद्य अमूक संवतसरे अमूक मासे अमूक पक्षे अमूक तिथौ अमूक वासरे अमूक गोत्रोत्पननं अमूक शर्मा (वर्मा गुप्तादि) अहं शुभ पुण्यतिथौ श्री सवितृ सूर्य नारायण नमस्काराख्यं कर्म करिष्ये।
संकल्प करने के बाद हाथ में जल पुष्प लेकर हाथ जोड सूर्य मण्डल ( बिम्ब ) की ओर देखते हुए निम्न ध्यान करें।
ध्येय: सदा सवितृ मण्डल मध्यवर्ती नारायण: सरस्यासनसन्निविष्ट:।
केयूरवान मकर कुण्डलवान् किरीटीहारी हिरण्यमय वपुर्धृत शंख चक्र:।।
साधक ध्यान करने के बाद नीचे लिखे तेरह मंत्रो को बोलते हुए एक एक का उच्चारण करते हुए दण्डवत प्रणाम करे।हाथ मे कनेर का फूल ले सीधे पूर्वाभिमुख दोनों हाथ कन्धे के उपर सीधे खडे रखकर एक मंत्र बोलें और नम: शब्द का उच्चारण करके दण्डवत प्रणाम करें। पुन: खडे हो दूसरा मंत्र बोलें। उसी प्रकार दण्डवत प्रणाम करे। इसी तरह तेरहों मंत्र से प्रणाम करने पर एक गिने। कम से कम एक आवृति तो अवश्य करें।
मंत्र - (1)  ॐ मित्राय नम:,  (2) ॐ रवये नम:, (3) ॐ सूर्याय नम:, (4) ॐ भानवे नम:, (5) ॐ खगाय नम:, (6) ॐ पुष्णे नम:, (7) ॐ हिरण्यगर्भाय नम:, (8) ॐ मरीचये नम:, (9) ॐ आदित्याय नम:, (10) ॐ सवित्रे नम:, (11) ॐ अर्काय नम:, (12) ॐ भास्कराय नम:, (13) ॐ मित्र, रवि, भानु खग पूष, हिरण्यगर्भ, मरीच्या - दित्य, सवित्रर्क भास्करेभ्यो नम:।
इस प्रकार नित्य प्रात: सूर्योदय के समय बाल रवि (सूर्य बिम्ब) के सामने पूर्वाभिमुख खडे होकर तेरह आवृति पूर्वक नमस्कार करने के बाद हाथ मे जल लेकर निम्न मंत्र से आचमन करें।
अकाल मृत्यु हरणं सर्व व्याधि विनाशनम्। 
सूर्य पयोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्।।
इसके बाद निम्न श्लोक कहें।
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने। 
जन्मान्तर-सहस्त्रेषु दारिद्रयं नोप जायते।।
भविष्य पुराण व्राह्मपूर्व 80/10 मे भी सूर्य नमस्कार की प्रशंसा इस प्रकार की गई है।
प्रणिधाय शिरो भूमौ नमस्कार परो रवे:।
तत्क्षणात् सर्व पापेभ्यो मुच्यते नात्र संशय।।
सूर्य नमस्कार के अन्त मे ताम्र पात्र (ताम्बे के लोटे) में लाल कनेर का पुष्प, लाल चन्दन घिसा हुआ (रगडा हुआ) अक्षत् शुद्ध जल में गंगाजल डालकर तीन बार अध्र्य दें और प्रायश्चित स्वरूप एक और अध्र्य दें। कुल चार अध्र्य दें। गायत्री मंत्र में कामनानुसार वीज लगाकर अथवा एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते। अनुकम्य मया भक्तया गृहाणार्घ्य दिवाकर ।। से अध्र्य दें। रोगादि से छुटकारा के लिये ॐ भूर्भूव: स्व: ह्रीं तत्सवितुर्वरिण्यं ह्रीं भर्गो देवस्य धीमहि ह्रीं धियो योन: प्रचोदयात्। अथवा तीनों जगह ह्रीं के बदले ú लगावें। आर्थिक संकट से त्राण पाने के लिये ह्रीं की जगह श्रीं तथा विद्या प्राप्ति के लिए ऐं तीनो जगह लगाकर अध्र्य दें। सूर्योपस्थान करके निम्नलिखित मंत्र से नमस्कार कर भगवान सूर्य को समर्पित कर अनेन सूर्य नारायण नमस्काराख्येन कर्मणा श्रीसवितृसूर्यनारायण देवता प्रीयन्ताम्। से समर्पित करें ।

संभव हो तो सूर्य नमस्करादि के बाद निम्न शान्ति स्त्रोत का भी एक आवृति पाठ कर लिया करें।
शान्त्वर्थ सर्व लोकानां तत: शान्तिकमाचरेत्। सिन्दुरासनरक्ताभ: रक्तपद्मामलोचनं।।
सहस्त्रकिरणो देव:सप्ताश्वरथवाहन:। गर्भास्तमाली भागवान सूर्य देव नमस्कृत:।।
करोतु ते महाशक्ति ग्रहपीडानिवारिणीम्। त्रिचक्ररथ मारूढ अपां सारमयं तु य:।।
दशाश्व वाहनो देव: आतेयश्चामृतस्रव:। शीतांशुरमृतात्मा च क्षयवृद्धि समन्वित:।।
सोम सौम्येन भावेन ग्रहपीडा व्यपोहतु। पद्मरागनिभो भौमो मधुपिंगल लोचन:।।
अंगारकोडग्नि सदृशो ग्रह पीडा व्यपोहतु। पुष्परागनिभेनेह देहेन परिपिंगल:।।
पीतमाल्याम्बर धरो ग्रह पीडां वयपोहतु। तप्त गौरिक संकाश: सर्व शास्त्र विशारद:।।
सर्वदेवगुरूविप्रो ह्रथर्वण वरो मुनि:। बृहस्पतिरिति ख्यात अर्थशास्त्रपरश्च य:।।
शान्तेन चेतसा सोऽपि परेण सुसमाहित:। ग्रह पीडा विनिर्जित्य करोतु तव (मम) शान्तिकम्।।
सूर्यार्चनपरो नित्यं प्रसादाद् भास्करस्य तु। हिमकुन्देन्दु वर्णाभो दैत्य दानव पूजित्।।
महेश्वरस्ततो श्रीमान महा सौरो महामति:। सूर्यार्चनपरो नित्यं शुक्र: शुक्लनिबस्तदा।।
नीतिशास्त्र परो नित्यं ग्रहपीडां वयपोहतु। नानारूपधरोऽव्यक्त अविज्ञात गतिश्च य:।।
नोतपतिर्जायते यस्य नोदय पीडितैरपि। एकचूलो द्विचूलश्च त्रिशिखि: पञ्चचूलक:।।
सहस्त्र शिररूपस्तु चन्द्र केतु रिवस्थित:। सूर्यपुत्रोऽग्नि पुत्रस्तुब्रह्मविष्णुशिवात्मक:।।
अनेकशिखर: केतु: स ते पीडां व्यपोहतु।एते ग्रहा: महात्मान: सूर्यार्चनपरा: सदा।।
शमं कुर्वन्तु ते ह्रष्टा: सदा कालं हितेक्षणा:। पद्मासन:पद्मवर्ण: पद्मपत्रनिभेक्षण:।।
कमण्डलुधर: श्रीमान् देव गन्धर्वपूजित:।चतुर्मुखो देवपति: सूर्यार्चनपर: सदा।।
सुरश्रेष्ठो महातेजा: सर्वलोकप्रजापति:। ब्रह्म शब्देन दिव्येन ब्रह्म शान्ति करोतु ते।।
पीताम्बर धरो देव आत्रेयी दयित सदा। शंखचक्रगदापाणि: श्याम वर्णश्चतुर्भुज:।।
यज्ञदेह: क्रमो देव आत्रेयी दयित: सदा:। शंखसक्रगदा पाणि: माधवो मधु सूदन:।।
सूर्य भत्क्तान्वितो नित्यं विगतिर्विगत त्रय:। सूर्यध्यानपरो नित्यं विष्णु शान्तिं करोतु ते (मे)।।
शशि कुन्देन्दु संकाशो विश्रुता भरणैरिह। चतुर्भूजो महातेजा: पुष्पाघ्र्य कृतशेखर:।।
चतुर्मुखो भस्मधर: श्मसाननिलय: सदा। गोत्रारिर्विश्व निलयस्तथा च क्रतु दूषण:।।
वरो वरेण्यो वरदो देव देव महेश्वर:। आदित्यदेह सम्भूत: स ते शान्तिं करोतु वै।।
शान्ति स्त्रोत का पाठ कर दण्डवत साष्टाङ्ग प्रणाम करें । इसके प्रयोग से सभी कष्टों, ग्रह-बाधाओं से छुटकारा मिलता है । किसी के भी अभिचारादि मंत्र का प्रयोग साधक पर नही लगता। 
आशा है। समस्त शाकद्वीपीय बन्धु इससे लाभान्वित होंगे।इसी उद्देश्य से इसे सार्वजनिक करता हूँ । तदनन्तर-
अर्चितस्त्वं यथा शक्तया मया भक्तया विभावसो।
ऐहिका मुष्मिकीं नान्य कार्यंसिद्धि करोतु मे।। 
से प्रार्थना करें ।

- अमरेन्द्र कुमार मिश्र पुत्र स्व. कपिल नारायण मिश्र 
(ज्योतिषाचार्य तंत्र मंत्र यंत्र शिरोमणि)
पथार, भोजपुर (बिहार)


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