भाई बन्धु/जैसलमेर के इतिहास में यदुओं पुरातत्व में लिखा है कि विक्रम से बहुत पहले उनका राज्य गजनी से समरकन्द तक फैला था। उन्होंने स्वयं ने इस क्षेत्र को महाभारत के बाद बसाया। इस्लाम के उदय होने के समय ये सिन्धु के इस तरफ आने को बाध्य हुए। शाम या श्याम की जाति के यदु कहलाये। शालीवान के पुत्र बालंद के ज्येष्ठ पुत्र के नाम भटी था। भटी (अबुल फजल श्याम भटी) साम यहां यो श्याम भटी कहलाये। जाउड नामक जादव या जाउड जाति भी मुगल बादशाह के समय सिन्धु तक बसी हुई थी। बाबर ने उसके सम्बन्ध में लिखते हुवे कहा है कि प्रथम दो आब का पर्वतीय इलाका उनके अधिकार में था। बिल्कुल इसी स्थान का उल्लेख यदुओं के पुरावेतों में हैं। जहां से वो ईसा पूर्व 12 वीं शताब्दी में भारत छोड़ते हुवे ठहरे थे। उन्ही के नाम से यह स्थान जादु की डांग या यदु की डांग जादु की पहांडिय़ा के नाम से जाना जाता है। इन स्थानो की जनता सिन्धु से लेकर सुदूर टाराटरी (तातारी) तक आयु या इन्दु जाति से उत्पन्न कही जाती हैं। आयु और इन्दु इन दोनों शब्दों का अर्थ चन्द्र है। उन चन्द्रदेवी जातियों में हैहय अश्व (असाई) और यदु जाति जातियों का उदय हुआ।
यदु की डांग
जदु की डांग रानेज के नकषे पर जोउडेश जो पंजाब की उंची यदु की पहाडिय़ा स्थित था। जहां यदुवंष की प्राचीन शाखा सौराष्ट्र से निष्कासित होकर निकली थी। यहां रहती थी। झेलम के साल्ट रेज पर बसे शाहपुर और मियावाली जिलों को प्राचीन काल में ई- ई-इजुद के नाम से जाना है। मुसलमानों ने इसका नाम इसलिये रखा था क्योंकि यहां के पहाड़ों रूप अल जुदी या अशरात के पहाड़ों से मिलता है। यहां लेखक (कर्नल टॉड) ने सुझाया है कि इसका सम्बन्ध भारती भाटी यदु यादव जाति से था।
देखिये आई जी आई रा/पार अबुल फजल अकबर नामा।
यदु की डांग और चन्दवंशी यादव भाटियों और समाओं जाड़ेचो चिकताओं और भाटियों आदि के सम्बन्ध में सिन्ध और हिन्द के इतिहास युगयुगीन वल्लप्रदेश जैसलमेर का राजनैतिक इतिहास लक्ष्मीचंद सेवग की तवारिख आदि के अलावा एन.के.शर्मा की पुस्तकों में विस्तार से जानकारी दी गई है।
- नन्दकिशोर शर्मा, जैसलमेर। मो.: 9413865665
समाज की 'भाई बन्धु' पत्रिका में न्यूज और धर्म लेख इत्यादि अपडेट के लिए हमें फेसबुक पर लाइक करें।
Comments
Post a Comment
if you have any doubts please let me know