भाई बन्धु/ जीवन और जीवन के तमाम सरोकारों में उतार चढ़ाव, सुख-दुख, लाभ-हानि आदि घुले-मिले है। जीवन में सोचा हुआ भी होता है तो कभी कभार अनचाहा भी। कई बार ऐसा भी होता है की हम अपने आपको सबसे श्रेष्ठ समझने लगते है तो कभी कभी ऐसा भी होता है जब हम स्वयं को संसार का सबसे असहाय भी समझने लगते है। हम कभी बेइंतिहा खुश हो जाते है तो कभी सबसे ज्यादा दुखी। हम कभी खुलकर हंसते है तो कभी दहाङे मारकर रोने लगते है। एक छोटे से जीवन में कितने रंग मौजूद होते है ना? कभी प्यारे लगते है तो कभी बेकार। पर सच कहूं यही रंग हमारे जीवन के आधार होते है। इन्हीं रंगों से हम अपने जीवन को नया रंग देते है। खुबसूरत से रंग। ऐसे रंग जो अपने होने के एहसास भर से हमें बदल देते है। और इस बदलाव से हमें हासिल होता है एक ऐसा जीवन जो सही मायनों में जीवन की परिभाषा को सार्थक कर देता है। पर इन रंगों को अपनाना थोङा कठिन सा होता है। खुद को बदलना आसान कहां होता है? पर बदलाव जरूरी है। जरूरी है जीवन को उसके अलग अलग रंगों के साथ जीना। ना केवल जीना बल्कि भरपूर जीना। कुछ लोग जीवन के अर्थ को नासमझी के चलते समझ नहीं पाते। होते होंगे वो अपने हिसाब से सही। पर बहुत से पैमानों पर मैं इसे पहले भी गलत मानता था और अब भी। जीवन के बदलावों को ना समझ वे लोग थक जाते है। रूक जाते है। ठहर जाते है। थम जाते है। निराशा में गहरे तक अपने आपको डूबो कर वे यह मान बैठते है की जीवन में अब सकारात्मक बदलाव होगा ही नहीं। वे मान बैठते है की अब निराशा, असफलता ही मेरा जीवन है। यह सही नहीं। हम यह नहीं भूले की भले ही राह आसान न हो पर राह है तो सही ना सामने। हम थक कर अपने आपको असहाय न माने बस। ऐसे समय अपने मन को अपना मित्र बनाए। सुने उसकी। वो सही राह सुझाता है। हम सबने कभी ना कभी पढा और समझा भी होगा की मन सबसे प्यारा सलाहकार होता है हमारा। मन ही है जो भले-बुरे की समझ जगाता है। मन ही है जो हमें सुख की बयार से भिगोते हुए संकटों का सामना करने और विपरित परिस्थितियों से बाहर निकलने की सीख देता है। मित्रों यह मन ही है जो हमारा सबसे प्यारा संगी सबसे निकट का स्नेही स्वान बनकर हमारे साथ हर पल रहता है। हम कभी गहरी निराशा महसूस कर अपने आपको थका हारा मान बैठते है तो यह मन हमें ऊर्जावान बनाकर आगे बढ़ने और गम से उबरने की ताकत भरता है। मन हमें कठिन राहों को पार कर मंजिल को पाने की राह सुझाता है। सफलता के शिखर पर स्थापित करने में अपनी सशक्त भूमिका निभाता है। मन की सुनना। मन के कहे पर चलने की आदत हमें हमारे जीवन और जीवन के विविध रंगों से सराबोर होने के सुखद एहसास से रूबरू करवाती है। हम यह ना भूले की जब सभी मुंह फैर ले हमसे तब भी यह मन ही है जो हमारे साथी के रूप में हमारी छाया बनकर साथ निभाता है। हम मन को अधीर न करते हुए मन के कहे को सुने। फिर चल पङे राह पर मंजिल की ओर। जी ले जीवन को। बस एक बात कभी ना भूले मन के हारे हार है। मन के जीते जीत।
- रमेश भोजक "समीर"
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