भाई बन्धु/शाकद्वीपी सीकिया के सूर्य पूजक को भारत लाने के सम्बन्ध में मिस्टर पिकर्टन ने लिखा है कि शाकद्वीप का एक द्विज ब्राह्मण प्रधान सर्वप्रथम जम्बूद्वीप में प्रसिद्ध हुआ था। लेकिन पुराणों में कहा गया है कि शाकद्वीप से अठारह द्विज मग ब्राह्मण विष्णु के गरूड विमान से जम्बू द्वीप आये थे। उन्होंने कृष्ण के पुत्र साम्ब के कुष्ठ रोग निवारण किया था। साम्ब ने मुलतान में एक विशाल भव्य सूर्य मंदिर बनाया था। इस मंदिर की पूजा उपासना करने के लिये शाकद्वीपीय सूर्यद्विज मग ब्राह्मण नियुक्त किये गये। इसके समबन्ध में आगे बताया गया है। पुस्तक जैसलमेर के सामाजिक सांस्कृतिक इतिहास में विस्तार पूर्वक लिखा गया है। जैसलमेर के प्राचीन पुरातत्व के अनुसार सर्वप्रथम यादवों का भ्राता चिकता जिसने यवन धर्म स्वीकार कर लिया था। वहीं शकताई या सीकिया का संस्थापक बना। मुलतान से कई ब्राह्मण अपने आराध्यों के साथ चन्द्रवंशी और सूर्यवशियों के उपनिवेषों में आते जाते रहते थे। जैसा कि आगे बताया गया है एशिया और यूरोप में कृष्ण ओर अन्य देवी देवताओं की मूर्तिया की पूजा होती थी। श्री कृष्ण से पहले वहां बुध और ईला हरिहर त्रिविक्रम और अन्नपूर्णा व अन्य देवी देवताओं की पूजा होती है। यह पूजा राजतंत्र की समाप्ती ओर लोकतंत्र की स्थापना के बाद कुछ वर्षों तक जैसलमेर राज में होती थी। जिसके सम्बन्ध में हमारे आराध्य पंचदेव पुस्तक में लिखा गया है। हरिहर बुध त्रिविक्रम सूर्य अन्नपूर्णा आईमाता अन्नपूर्णा चामुण्डा भद्रकाली और नागणेची शाकम्बरी आइसेस (ओसिया) अम्बा आदि देवियां जो अपने कुलों की देवियों के नाम से पहचानी जाती है। आज वो चन्द्रवंशियों सूर्यवशियों और अग्निवशियों की देवियों के रूप में उसके वंशज पूजते हैं। नागणेची शाकासेनों की देवी शाकम्बरी अम्बा आदि आज अपने अलग-अलग रूपों में पूजते हैं। पंचायतन मंदिरों की भी पूजा शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के वंशजों द्वारा अलग-अलग राज्यों में पूजने की परम्परा आज भी कायम है। सूर्यवंशी पूजारी हैं। चन्द्रवंशी भक्त आराधक है।
नागणेची -
बप्पा नेे जिस मौर्य जाति से चितोड़ लिया था वह टॉक या तक्षक जाति का था। जिसकी माता नागनेचा या नागीन थी। यह आधी औरत और आधी नागीन थी। उनकी कथाओं के अनुसार साइथिक जाति की बहिन थी। इस साइथिक जाति अथवा साइथिक देश से देवी पूजा यदि आना मानते हैं तो भी यह कहेंगे तो साइथिक देश हिन्दुओं का बसाया होता है। इनके पूर्वज हिन्दू थे। जो भारतीय पश्चिमी क्षेत्र मे रहते थे। (टॉड पृष्ठ संख्या 96-97)
आईमाता -
आईमाता जिसका सम्बन्ध चन्द्रवंशी यादवों की आईशाखा से है। इसका मुख्य मंदिर जैसलमेर की प्राचीन राजधानी तणोट में बना है। उसे आजकल आईमाता के साथ आईनाथ कहते हैं। जब जैसलमेर के रावलों पर नाथ सम्प्रदाय का प्रभाव रहा। उन्हीं की कृपा से उन्होंने अपना खोया हुआ राज्य पुन: प्राप्त किया तब से उन्होंने इसका नाम आईनाथ कर दिया। इसक सम्बन्ध में मेरे द्वारा लिखित जैसलमेर की लोक देविया और मारवाड़ की अवतारी देवियां में लिखा गया है।
शाकम्बरी -
प्राचीन पुरातत्वों में शाकासेनों की माता शाकम्बरी थी। जिसको अग्निवंशी चौहानों ने ग्रहण किया। इसके सम्बन्ध में उक्त पुस्तकों में लिखा गया है। यह किसी वंश विशेष की कुल देवियां है और उनसे निकली समस्त शाखाओं की कुल माता या लोक माता है। (कुल देवी या लोक देवी)
चिगताई या चिकताई यवन -
विदेशी लेखकों के अनुसार यवन या जवन हिन्दू (इन्दु-चन्द्रवशिंयों की महत्त्वपूर्ण कड़ी है। ययाति के नवे वंशज द्वारा आयोनिया के बसाये जाने की संभावना बनती है। आयु ययाति का तीसरा पुत्र था। जो तातर और हिन्दू इन्दुवंशियों का पूर्वज था। भगवत गीता के प्रथम अध्याय में चेकितान के सम्बन्ध में संजय धृर्तराष्ट्र को वेद व्यास जी द्वारा संजय को बुद्धि योग दिव्य दृष्टि दी थी। संजय धर्तराष्ट्र को पाड़वों की सेना के योद्धाओं के सम्बन्ध में कहता है कि जो पांडवों की सेना के कुशल योद्धा हैं। उनके नाम दुर्याधन द्रोणाचार्य को सुनाता है। राजा दु्रपद महारथी धृतकेतु चेकितान कुन्ती भोज माघ मनुष्यों में श्रेष्ठ सेव्य सुधार सेना और बड़े बलवान उतरा जी सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु और द्रोपदी के सभी पुत्र महारथी है। चिकेतान देश और व्यक्ति नाम है। जो देश वंश वाचक है। चिकेताओं का राज शाकद्वीप पर था। बाद में इसका नाम चिकिया सीकीया पड़ा है। यह चन्द्रवंशी थे। जैसलमेर की वंशावली में भी चिकेताओं के यदुवंश शाखा के प्रमाण मिलते हैं। जो आगे बताये गये हैं।
तातारी तातारी पूर्व पुरूष का नाम मोगोल था। उसके पुत्र का नाम अयुज था। जो उतरी भागों की समस्त तातारी जातियों अयुज का पूर्व पुरूष था। अयुज के छ: बेटे थे। पहला पुराणों का सूर्य ओर दूसरा पुराणों के अनुसार चन्द्र। चन्द्रवंशियों के पूर्व पुरुष का नाम इसमें भी मिलता है। समी तातारी आई से (पुराणों के इन्दु चन्द्रवंशियों) के वंशज होने का दावा करते हैं।
जर्मन कबीलों के लिये भी चन्द्र एक पुरुष देवता है। तातार आई के एक पुत्र का नाम टाइसीस था। यलदुज जिसमें चीन का प्रथम पुरुष अवतरित हुआ। यह पौराणिक अधुज का पुत्र था। आई के बाद नवी पीढ़ी में इलखान हुआ। जिसके दो पुत्र हुवे कियान और नगास। सारे तातारी इनके वंशजों के समस्त तातारी कहलाये। कियान के चंगेज खां अपना अवतरण मानता है। नगास शासद पुराणों के तातर वंश शास्त्रीयों द्वारा उल्लेखित नागवंशियों का संस्थापक था। डी.एन. गिनिस ने इन जातियों को ताक-इ-इल कहा है।
तातारी इन्दुवंशी जैसलमेर के पारम्पारिक इतिहास स्त्रोतों के अनुसार चिगता या चिकता यदुवंश सम्भूत है। यदु भाटियों के इतिहास में भूपति के पुत्र चिकेता ने यवन धर्म स्वीकार कर लिया था। चिकेता के वंशजों यानी उसके आठों पुत्र चिकेता यवन मलेच्छ बन गये थे। भटी इतिहासकार के अनुसार उज्वक वंशी बल्लख बुखारे के बादशाह वाल्हिक के स्वर्ग सिधार ने पर उसकी एक पुत्री से चिगता ने विवाह कर लिया था। इसी से चिगताई वंश चला। इसमें मुगल जाति की उत्पति हुई। मुसलमान इतिहास वेताओं का मत है कि चिकतेओं के नेता मूर्ति भंजक तैमूर (चंगेज खां) जाट था जुति जाति से उत्पन था। जाट जाति भी जादव (यादव) वंश सम्भूत है। इसी में अफगान जाति की उत्पति हुई है। इसके सम्बन्ध में आगे प्रमाण दिये गये हैं।
शाकासेन -
प्राचीन यूरोप के सौरभेटे या सारमेशियन तथा सीरीयन्स यह बहुत कुछ संभव है। कि ये सूर्यवंशियों के उपनिवेष थे। जिन्होंने एक समय में केस्पियन सागर भूमध्य सागर के तटवर्ती क्षेत्र के प्रदेशों सिन्धुतट तथा गंगा के तटों को आबाद किया था। केस्पियन पर रहने वाली कई जातियों के नाम राजपूतों के छतीस कुलों में मिलते हैं।
शाकद्वीपीय के शक और मग -
पौराणिक पारम्पारिक इतिहास प्रसंगों में शाकद्वीप देश के निवासी शक कहलाते थे और वहां के रहने वाले चार वर्ण के लोग रहते थे। वे विष्णु पुराण द्वितीय अंक 4 पर अनुसार शाकद्वीप पर रहने वाले ब्राह्मण मग क्षत्रियों को मागध और वैश्यों को मन्दग नाम से परिचित थे। द्वादश सूयों में एक सूर्य को मग कहा जाता है। मग या मोग मोग शब्द क्षत्रिय शक राजाओं के लिये प्रयोग में लिया जाता था। इसके सम्बन्ध में हम आगे चर्चा करेंगे।
मगान्ध मागधाश्वैव मानसा मन्दगास्त्था।
मगा ब्राह्मण भूयिष्ठा मागधा क्षत्रिय स्तथा।
वैश्यास्तु मानसा ज्ञेया शूद्रा स्तेषान्तु मन्दगा:।।
शको के आक्रमण -
ई.पू. प्रथम शताब्दी तक भारत के उतरी पश्चिमी भू भाग पर यूनानी राजाओं का शासन समाप्त हो चुका था। शको ने इनका स्थान ग्रहण कर लिया था। शकवंशी 'मोग' प्रथम शासक था, जिसने गंधार (अफगानिस्तान) पर आक्रमण कर उस पर शासन किया था। मुद्राशास्त्र के आधार पर आयस नाम का शासक मोग का उतराधिकारी बना। उसने अपना राज्य पंजाब तक फैलाया। उसके सिक्कों से इस तथ्य की पुष्टि होती है। इसके बाद शक वंश में दो अन्य शासक हुए जिनके नाम अजिलाइजिस तथा आयस द्वितीय थे। इनके नाम चांदी के सिक्कों से ज्ञात होते हैं। शकों (सिथियन) ने पश्चिमोतर प्रान्त में प्रतिनिधी तथा सैनिक गर्वनरों द्वारा शासनप्रणाली से शासन चलाया। (राय चौधरी - पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ एन्सियेन्ट इण्डिया पृ 301)
इन्ही शक राजाओं के अधीनस्थ होकर तक्षशिला और मथुरा में शक क्षत्रप (गर्वनर) शासन करते थे। इनमें तक्षशिला के पटिक, मथुरा के रेजुवुल तथा सोडास क्षत्रपों के नाम सिंहप्रतिमा में अंकित खरोष्ठी लिपी के लेख उल्लेखनीय हैं। शकों ने मालवा, गुजरात व काठियावाड़ा में अपना राज्य स्थापित किया था। क्षत्रपों को स्वतंत्र होने के बाद भी महाक्षत्रप के रूप में बनाये रखा। पांचवीं सदी के आरम्भ में गुप्त वंश के राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने इस वंश का अन्त कर मालवा एवं काठियावाड़ तक के भू भाग को गुप्त साम्राज्य में मिला लिया। इनके सिक्कों पर शक संवत् की तिथि (पार्थियन) अंकित होती थी। भारत के उतरी पश्चिमी राज्यों में 11 देवपुत्र 'शाही शाहनु शाहि शक' मरूमाण्ड पर राज्य करते थे।
प्रथम शताब्दी के उतरार्थ में शकों का स्थान पार्थियन के लोगों ने ले लिया। इनका सर्वप्रथम अधिकार पश्चिमी गंधार पर हुआ। गोंडाफरनेस पार्थियन राज्य में सम्मिलित कर लिया था।
भारत के उतर पष्चिम भू-भाग पर शासन करने वाले यूनानियों को ई.पू. पहल सदी में यादव जाति की शाखा के कुषान राजा कजाफिश ने हराया, जिसका प्रमाण कुशाषों के सिक्कों में मिलता है। उसने स्वर्णमुद्रा का चलन प्रारम्भ किया। वह महेश्वर की उपाधि से विभूषित है।
प्रसिद्ध कुषाण नरेश कनिश्क उसका उतराधिकारी हुआ। इसके परिवार के सीधे सम्बन्धों में कुछ नहीं कहा जा सकता। कनिश्क ने ही सन् 78 में शक संवत् चलाया था।
कनिष्क के राज्य में विभिन्न धर्मों के लोग रहते थे। उसने अपने सिक्कों में सब धर्मों को स्थान दिया था। शुंग और कुशाण काल भारतीय काल के लिये महत्त्वपूर्ण काल थे। कुशाण वंश का अन्तिम शासक राजा वसुदेव प्रथम था। ई. सन् 152-76 के बाद इस वंश का पतन हुआ। इस समय कौशाम्बी में मग, पद्मावती में नाग तथा पंजाब में यौधेय स्वतंत्र हो गये। (गुप्त साम्राज्य का इतिहास, पृष्ठ 21)
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