अब न कुछ कथा है न कहानी।
मुंह बाये खडी है करूणा रानी।।
दादाजी तो दादाजी थे पिता पिता।
काहे याद दिलाते हैं समय बीता।।
अपने पल्ले तो बस दाना पानी है।
कहें क्या खाक! न कथा कहानी है।।
यहां चिंता समयी हुई हैं काम की।
आपको धुन सवार है परसुराम की।।
अरे वह जमाना था अपने तेज का।
आज जमाना है हस्तमुक्त दहेज का।।
कहां वो कहां हम।
न संयम न संगम।।
अब कुछ न करना है।
बस देख देख जरना है।।
राम हो या परसुराम।
हमें तो रोटी से काम।।
सचाई है हम खंडित है।
बस कहने को पंडित है।
इसीलिए तो निर्पराध दंडित है।
हम स्वघोषित महिमामंडित है।।
अभिमान की परसुराम के वंशज हैं।
और बाकि कर्म निरत बने अंत्यज हैं।।
क्षमा करेगें जो कुछ कह गया।
अब तो गाल बजाना हीं रह गया।।
- संजय कुमार मिश्र 'अणु',
वलिदाद, अरवल (बिहार)। मो.: 8340781217
समाज की 'भाई बन्धु' पत्रिका में न्यूज और धर्म लेख इत्यादि अपडेट के लिए हमें फेसबुक पर लाइक करें।
Comments
Post a Comment
if you have any doubts please let me know