हमारे पुराणों का वैदिक स्तवन



ईशा वास्यमिद  ्ँ सर्वं यत्किञ्च्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृध: कस्य स्विद् धनम्।।
अखिल ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी जड-चेतनस्वरूप जगत् है यह समस्त ईश्वर से व्याप्त है। उस ईश्वर को साथ रखते हुए त्याग पूर्वक (इसे) भोगते रहो। (इसमें) आसक्त मत होओ, (क्योंकि) धन-भोग्य-पदार्थ किसका है अर्थात् किसकी का भी नहीं है।
शं नो मित्र: शं वरुण:। शं नो भवत्सवर्यमा। शं न इन्द्रो बृहस्पति:। शंनो विष्णुरुरुक्रम:। नमो ब्रह्मणे। नमस्ते वायो। तवमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि। ऋतं वदिष्यामि। सत्यं वदिष्यामि। तन्मामवतु। तद्वक्तारमवतु। अवतु माम्। अवतु वक्तारम्। ú शान्ति: शान्ति: शान्ति:।
हमारे लिये दिन और प्राण के अधिष्ठाता मित्र देवता कल्याणप्रद हों तथा रात्रि और अपान के अधिष्ठाता वरुण भी कल्याणप्रद हों। चक्षु और सूर्यमण्डल के अधिष्ठाता अर्यमा हमारे लिये कल्याणकारी हों, बल और भुजाओं के अधिष्ठाता इन्द्र तथा वाणी और बुद्धि के अधिष्ठाता बृहस्पति दोनों हमारे लिए शान्ति प्रदान करने वाले हों। त्रिविक्रम रूप से विशाल डगों वाले विष्णु जो पैरों के अधिष्ठाता हैं, हमारे लिये कल्याणकारी हों। उपर्युक्त सभी देवताओं के आत्मस्वरूप ब्रह्म के लिये नमस्कार है। हे वायुदेव! तुम्हारे लिये नमस्कार है, तुम ही प्रत्यक्ष प्राण रूप से प्रतीत होने वाले ब्रह्म हो। इसलिये मैं तुम को ही प्रत्यक्ष ब्रह्म कहँूगा, तुम ऋत के अधिष्ठाता हो, इसलिए मैं तुम्हे ऋत नाम से पुकारूँगा, तुम सत्य के अधिष्ठाता हो, अत: मैं तुम्हें सत्य नाम से कहँूगा, वह सर्वशक्तिमान् परमेश्वर मेरी रक्षा करे, वह वक्ता की अर्थात् आचार्य की रक्षा करे, रक्षा करे मेरी और रक्षा करे मेरे आचार्य की। भगवान् शान्तिस्वरूप है, शान्तिस्वरूप है, शान्तिस्वरूप है।

चित्रं देवानानुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्ने:। 
आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्ष ँ् सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च।।
जो तेजोमयी किरणों के पुञ्ज हैं, मित्र, वरुण तथा अग्नि आदि देवताओं एवं समस्त विश्व के प्राणियों के नेत्र हैं और स्वावर तथा जङ्गम सबके अन्तर्यामी आत्मा हैं, वे भगवान सूर्य आकाश, पृथ्वी और अन्तरिक्षलोक को अपने प्रकाश से पूर्ण करते हुए आश्चर्य रूप से उदित हो रहे हैं।
वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमस: परस्तात्। 
तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्य: पन्था विद्यतेऽयनाय।।
मैं आदित्य-स्वरूप वाले सूर्य मण्डलस्थ महान् पुरुष को, जो अन्धकार से सर्वथा परे, पूर्ण प्रकाश देने वाले और परमात्मा है, उनके जानता हँू। उन्हीं को जानकर मनुष्य मृत्यु को लाँघ जाता है। मनुष्य के लिए मोक्ष प्राप्ति का दूसरा कोई अन्य मार्ग नहीं है।

विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव। यद् भद्रं तत्र आ सुव।।
समस्त संसार को उत्पन्न करने वाले सृष्टि पालन संहार करने वाले किंवा विश्व में सर्वाधिक देदी प्यमान एवं जगत् को शुभकर्मों में प्रवृत्त करने वाले हे परब्रह्मस्वरूप सविता देव! आप हमारे सम्पूर्ण आधिभौतिक, आधिदेविक, आध्यात्मिक-दुरितों बुराइयों, पापों को हमसे दूर बहुत दूर ले जायँ, दूर करें, किन्तु जो भद्र भला है, कल्याण है, श्रेय है, मङ्गल है, उसे हमारे लिये विश्व के हम सभी प्राणियों के लिये चारों ओर से भली भांति ले आयें, दे - 'यद् भद्रं तत्र आ सुव।'
असतो मा सद् गमय। तमसो मो ज्योतिर्गमय। मृत्योर्माऽमृतं गमय।
हे भगवान्! आप हमें असत् से सत् की ओर, तमसे ज्योति की ओर तथा मृत्यु से अमरता की ओर ले चलें।

- अश्विनी कुमार शर्मा, बीकानेर।

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