जानिए क्या है मिट्टी के बर्तन शरीर की मूलभूत आवश्यकता?


    भाई बन्धु/जिस प्रकार अच्छे से अच्छे बीज होते हुए भी अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए उसे उचित समय पर बोने उपजाऊ मिट्टी, हवा, पानी, भोजन छुप के सेवन भी आवश्यकता है। ठीक उसी प्रकार से शरीर को हमेशा अच्छे पोषण तत्वों की आवश्यकता है सही प्रकार बर्तनों में भोजन नहीं पकाने के कारण खाद्य पदार्थों का प्रकृतिक स्वरूप बदल जाता है और पौष्ठिक तत्वों में कमी आ जाती है भोजन बनाते समय आप कल हमारे घरों में स्टील, एलुमिनियम और प्लास्टिक के बर्तनों का प्रयोग अधिक कहोता है। जिसमें भोजन में हानिकारक रसायनिक पदार्थों के मिश्रित होने की सम्भावना बढ़ जाती है। ऐसा भोजन शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता घटाता है। एलुमीनियम थोड़ी सी गर्मी पाकर गलने लगता है और भोजन के साथ पेट में जब पहुंचता है जिससे विकार पैदा करता है।  यही कारण रहा कि हमारे पूर्व भोजन पकाने में मिट्टी के बर्तन एवं अपनी क्षमता अनुसार चांदी के बर्तनों का उपयोग करते थे। इसलिए शरीर को जानने की आवश्यकता है शरीर पांच तत्वों का बना होता है जैसे कि जल, अग्नि, वायु एवं आकाश तत्व।
पाँच तत्वों का शरीर से सम्बन्ध क्या है-
  • पृथ्वी तत्व   :   अस्थि त्वचा मासपेसियां नाखन, बाल।
  • जल तत्व   :   रक्त, मल, मूत्र, मज्जा, पसीना, कफ, लार।
  • अग्नि तत्व   :   निन्द्र, भूख, प्यास, आलस्य, शरीर का तेज, क्रोध, पाचन रस, शरीर का तापमान। 
  • वायु तत्व   :   सिकोडना, फैलना, चलना, बोलना, धारण करना, उतारना, चिन्तन, मनन, स्पर्ष, ज्ञान।
  • आकाश तत्व   :   काम, क्रोध, मोह, लोक-लज्जा, खालीपन, दु:ख, चिन्ता आदि।


    पृथ्वी ठोस होती है, अत: शरीर में जो ठोस पदार्थ है वे पृथ्वी तत्व से अधिक प्रभावित होते है जैसे हड्डियां, माँसपेसियां, त्वचा, नाखुन, बाल आदि पाँच तत्वों में पृथ्वी तत्व सबसे भारी होता है और पृथ्वी सभी को आधार देती है। शरीर को पैरों को उठने बैठने चलने फिरने में सभी शरीर को साथ देते है। शरी का भार लेते है। पाव के अंगुठे से लेकर पेट तक शरीर अधिक सक्रिय रहता है। अत: पेर और पेट से सम्बन्धित पृथ्वी तत्वों की कमी के कारण या असन्तुलन बनने के कारण शरीर में दुर्बलता कमजोरी धुरियां पडऩा मोटापा आना प्रारम्भ होता है। पृथ्वी तत्व की कमी के कारण किसी कार्य में एकाग्रता नहीं रहती निर्णय लेने की क्षमता कमजोर होती है। पृथ्वी तत्व इन्द्रियों के प्रति अधिक संवेदनशील होती है अगर पृथ्वी तत्व को सन्तुलित कर लिया जाये तो इन्द्रियां अधिक संवेदनशील हो जाती है तो मन में दया  का कोमलता का भाव जाग उठाने की क्षमता मस्तिष्क विकास आदि के पृथ्वी तत्व से सम्बन्ध होता है। 
    इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा में भोजन आधार एवं मिट्टी के माध्यम से तत्वों के अन्य असन्तुलन को ठीक किया जाता है यदि हमारा अहार मिट्टी के बर्तनों में बनाया जाये तो शरीर में पृथ्वी तत्वों का उचित संतुलन बना रह सकता है। साथ ही साथ जल अग्नि वायु एवं आकाश तत्वों को भी संतुलित रखा जा सकता है एवं शरीर को प्राकृति के साथ सन्तुलन बना कर हमेशा स्वस्थ जीवन जिया जा सकता हैं। 
    शरीर पंच तत्वों से बना शरीर का व्यवहार दस इन्द्रियों और मन के द्वारा चलता है। इसी बातों को ध्यान में रख कर अमृत माटी के भोजन पकाने के बर्तनों पर शोध किया। शोध संस्थाओं ने 100 ग्राम दाल प्रेशर कुकर में एवं 100 ग्राम दाल मिट्टी की हाण्डी में पकाई तो परिणाम चकित कर देने वाले थे।
    स्वस्थ शरीर के लिए जरूरी है कि भोजन की प्रभावशिलता तुरन्त राहत पहुंचाने की क्षमता एवं दुष्प्रभावों से रहित स्थायी मुक्ति इस मापदण्ड़ों को परिपूर्ण करती है वो ही है भोजन पाक व्यवस्था।
    दुर्भाग्य तो इस बात का है कि स्वास्थ्य के सम्बन्ध में हम प्राय: व्यक्ति आत्म विश्लेषण नहीं कर पाता। गलत तरीके से भोजन को पका कर खाता है और दोष दूसरे को देता है। रोग और स्वास्थ्य का समाधान स्वयं के पास है और ढूंढता है डाक्टर और दवाओं में, परिणामस्वरूप समस्याएं सुलझने के बजाय उलझने लगती है। रोग में उत्पन्न दर्द पीड़ा, कष्ट एवं संवेदनाओं की जितनी अनुभूति स्वयं मनुष्य को होती है उसकी सही स्थिति कोई भी यन्त्र या लेबोरेट्री नहीं माप सकती। दवा और डाक्टर सिफ सहयोगी की भूमिका निभाते है। उपचार तो शरीर के द्वारा ही होता है। अत: जो व्यवस्था जितनी ज्यादा स्वयं की होगी शरीर उतनी ही अधिक से अधिक सहजता और भागीदारी के साथ काम करता रहेगा। दुनिया का नियम है जो मशीन में तेल की जगह तेल ही देगा। पानी नहीं। तेल देगा तो मशीन चलेगी पानी देगा तो मशीन रूकेगी। इसी सिद्वान्त पर हमारा शरीर चलेगा। जितना शरीर को पोषण शरीर को मिलेगा उतना ही शरीर काम करेगा। स्वस्थ रहना भी एक ज्ञान और विज्ञान है। प्रकृति की समस्या क्षमताओं का शोधन कर उसकी उपयोगिता को समझने की आवश्यकता है। इसलिये हर जन मानस को ये बात समझ कर अपने व अपने परिवार को स्वस्थ रखने एवं संपुर्ण पोषक तत्वों को ग्रहण करने हेतु मिट्टी के बर्तनों का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिये। जिसमें अतीत को आधुनिक तकनीक से जोड़कर वर्तमान और भविष्य को बेहतर बनाया जा सकें।
- अश्विनी कुमार शर्मा, बीकानेर


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