भाई बन्धु पत्रिका/पूरे भारतवर्ष में शादियों की धूमधाम रही, रहनी भी चाहिए। जीवन के इंजन के दो पहिए महिला-पुरुष की सार्थक जोड़ी सुन्दर परिवार, संस्कार और हमारे वातावरण में मानवता का बीज बोने का कार्य करते हैं। वर्तमान में हम दौराहे पर हैं, चिंतित हैं, विचारशील हैं लेकिन तटस्थ नहीं हैं। माफ करना मैं जिस विषय पर बात करना चाहता हँू बहुत ही गंभीर है। एक बार में इसका निष्कर्ष संभव नहीं, पहले से चल रहा है लेकिन अब वक्त है कि हम धीर-गंभीर होकर रास्ता निकालें। आज लड़के व लड़कियों के बीच शिक्षा के अन्तर के कारण समाज में शादी के लिए आनुपातिक मिलान नहीं हो रहा। लड़की के बराबर शिक्षित लड़का नहीं मिल रहा जैसा उसको (लड़की को) चाहिए। लड़का है तो गौत्र एक ही है। फलस्वरूप अंतर्जातीय विवाह। कहीं इसे सही भी ठहराया जा रहा है, तो कहीं पर गलत। कभी हम सोचते हैं कि कोई रास्ता ही नहीं बचा तो कभी हमारे संस्कार समाज और हमारी अवधारणायें हमें मजबूर कर देती है। आखिर हम क्या करें? स्वजनों अब समय आ गया है कि हमें एक जगह एक समूह के रूप में चर्चा करके आखिर तो यह तय करना ही है कि क्या किया जाए? मेरे दिमाग में कुछ चल रहा है, यह सही हैं या नहीं समाज के लोग स्वीकारेंगे या नहीं, ऐसे विचारों से हम सब भरे पड़े है, लेकिन सबके सामने रख नहीं पा रहे जिसके कारण रास्ते बन्द पड़े है। मैंने जब हमारे एक आदरणीय स्वजन से बात कि तो पता चला कि वो भी चाहते है लेकिन कह नहीं पा रहे।
'भाई बन्धु' प्रकाशन आप सबके सहयोग से एक कार्यक्रम चलाना चाहता है, आप लोग इस बारे में लिखे हम प्रकाशित करेंगे। इसके साथ ही हम जहाँ रहते है वहाँ के लड़कों-लड़कियों व वरिष्ठजनों के साथ बैठकर इस बात पर सार्थक विचार करें। उक्त बैठक का प्रकाशन करवाये आये विचारों को समाज के सामने लाये ताकि हम एक बात तय कर सके। आज वो जमाना नहीं रहा कि फलां व्यक्ति के यहाँ के लड़के या लड़की ने दूसरी जाति में ब्याह (विवाह) किया इसे समाज से बहिष्कृत करो। हम क्या कर सकते है वर्तमान परिस्थति में इस पर अपने विचार रखें जिसमें हम एक अनुकूल वातावरण तैयार कर सके। जैसे-अन्तर्जातीय विवाह होने चाहिए या नहीं? होने चाहिए तो किस तरह होने चाहिए? क्या दूसरी जाति के ब्राह्मणों से हमें रिश्ता जोडऩा चाहिए या नहीं? शिक्षा के अन्तर को कैसे पाटें? पीढिय़ों से चले आ रहे एक गौत्र में अब शादी का बंधन समाप्त करना चाहिए या नहीं? ऐसे अनेकानेक विचार है सवाल है उनके रास्ते है समस्याओं का निदान है जरूरत आपस में बैठकर चर्चा करने की है। आइये हम आने वाले नववर्ष में एक नयी शुरूआत करे एक मुदा 'अन्तर्जातीय विवाह' इसमें निष्कर्ष के साथ दूसरे ख्याल कि और बढ़ेगे। आज आशानूकुल सकारात्मक प्रतिकिया के इन्तजार में...
जय भास्कर...
- नितिन वत्सस, सम्पादक - 9929099018
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