भाई बन्धु/ पिछले भाग में हमने पढ़ा कि शाकद्वीप से जम्बद्वीप महत्त्व, मग ब्राह्मणों की उत्पति और मुल्तान शहर के बारे में हमने जाना और आज हम मग भोजक ब्राह्मणों का उल्लेख भी पढ़ेंगे।
कुछ इतिहासकारों ने शाकद्वीपी ब्राह्मणों की अवधारणा 'शक' शब्द से की है। लेकिन उनकी यह अवधारणा तर्कसंगत नहीं है और न ही ये कोई पुष्ट प्रमाण दे पाये हैं। शब्द सामजंस्य के आधार पर की गई कल्पना मात्र प्रतीत होती है। जबकि वास्वकिता यह है कि शक लोगों का सर्वदा निवास जम्बूद्वीप रहा है। शाकद्वीपी ब्राह्मणों का इनका कोई सम्बन्ध नहीं रहा है। पुराणा, इतिहास एवं अभिलेख सभी इस विषय में एकमत है। शाकद्वीपी ब्राह्मणों की उत्पति शकों से हाने के अन्य किसी साधनों में प्रमाण भी उपलब्ध नहीं है।
कुछ इतिहासकारों ने शाकद्वीपी ब्राह्मणों की अवधारणा 'शक' शब्द से की है। लेकिन उनकी यह अवधारणा तर्कसंगत नहीं है और न ही ये कोई पुष्ट प्रमाण दे पाये हैं। शब्द सामजंस्य के आधार पर की गई कल्पना मात्र प्रतीत होती है। जबकि वास्वकिता यह है कि शक लोगों का सर्वदा निवास जम्बूद्वीप रहा है। शाकद्वीपी ब्राह्मणों का इनका कोई सम्बन्ध नहीं रहा है। पुराणा, इतिहास एवं अभिलेख सभी इस विषय में एकमत है। शाकद्वीपी ब्राह्मणों की उत्पति शकों से हाने के अन्य किसी साधनों में प्रमाण भी उपलब्ध नहीं है।
शक, हूण, पारसी, किरात आदि सभी जम्बूद्वीप क भिन्न-भिन्न जनपदों के वासी हैं। शाकद्वीपी 'शाक' तो हो सकते हैं 'शक' कदापि नहीं। जिस प्रकार लोग आर्यो को विदेशी मानते हैं उसी प्रकार मग ब्राह्मणों को भी विदेशी मानने का प्रयास किया गया है जबकि शाकद्वीपी ब्राह्मणों का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना सूर्य पूजा-उपासना का इतिहास। इसलिए हम उपर्युक्त तर्क से सहमत नहीं हैं।
सूर्योपासना के प्राचीन प्रमाण
मिश्र, चीन, दजला, फरात और भारत जहां भी प्राचीन सभ्यताओं की खोज हो रही हैं वहॉ से सूर्य अर्चना के अनेक ठोस प्रमाण मिलते हैं। मेसोपोटामिया में एक नगर सुमेरिया में ईसा पूर्व 2800 की एक मुहर प्राप्त हुई है जिस पर सूर्यनारायण एक पुरुष रूप में अंकित हैं और जिनके कंधों पर सूर्य की किरणें प्रस्फुटित हो रही हैं। जो न्याय और सच्चाई का प्रतीक है।
भारत में भी मग (मगीयन) प्रभाव की कई मिट्टी की सीलें बसरा, भिटा और राजघाट से प्राप्त हुई हैं जिसमें अग्रि सूर्य पूजा अंकित है। कई अभिलेखों से भी ज्ञात होता है कि मगीयन (मग ब्राह्मण) ज्योतिष और अग्रि पूजा के ज्ञाता थे।
अभिलेखों में मग भोजक ब्राह्मणों का उल्लेख
गुप्तकाल में जीवगुप्त द्वारा मग ब्राह्मणों को भूमिदान देने की कई प्रशस्तियां मिली हैं। मगध देश (बिहार) के गया जिले के देववरूणा नामक गांव में सूर्य मंदिर की पूजा अर्चना के लिए सूर्य मित्र नामक भोजक को भूमि दान में दी गई थी। जीवगुप्त की मृत्यु के बाद तथा गुप्तकाल नष्ट होने के बाद बालदित्य देव ने सूर्य भोजक को उक्त गांव देवोतर रूप में प्रदान किया था। बालदित्य के बाद भी उनके वंशजों ने उक्त परम्परा का निर्वाह किया। उसके बाद शर्ववर्मा ने हरि मित्र (भोजक) को, अवनित वर्मा नेे ऋषि मित्र भोजक को दान में दी थी। शिलालेख के अनुशीलन से यह ज्ञात होता है कि भोजकों ने कई राजवंशों से प्रतिष्ठा पाई। (Fleets-Inscriptions of Gupta King, Vol.III,
P.217)
- नन्दकिशोर शर्मा, जैसलमेर-मो.: 9413865665
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