विपरीत परिस्थितियों से सामंजस्य सिखाते है भगवान शिव


    भाई बन्धु/हर परिस्थिति में सामंजस्य बनाकर रहना जीवन के सबसे बड़ी कला है और इस कला को यदि कोई सीखना चाहता है तो भगवान शिवजी से सीखा जा सकता है कभी  गौर से देखिएगा भगवान शिव की प्रतिमा को उनकी फोटो को प्रभु की जटाओं में मां गंगा का वास है यानी कि पानी और मस्तक पर तीसरी आंख यानी आग आग और पानी एक साथ नहीं हो सकते या तो आग होगी या पानी किंतु भगवान शिव वही काम करते हैं जो कोई और नहीं कर सकता उन्होंने पानी को भी सर पर धारण कर रखा है तो आग  यानी तीसरा नेत्र में सामंजस्य कर रखा है आग और पानी साथ-साथ उसके बाद आप देखें सर पर चंद्रमा को धारण कर रखा है और चंद्रमा में होता है अमृत वही थोड़ा सा नीचे धारण कर रखा है नाग नाग यानी कि जहर अमृत और जहर साथ-साथ दूसरी तरफ सांप है गले में और पुत्र गणेश जी का वाहन है मूषक सांप और मूषक साथ-साथ और कहीं देखने को नहीं मिलेगा दूसरा पुत्र है कार्तिकेय उनका वाहन है मोर मोर और सांप का 36 का आंकड़ा फिर भी साथ-साथ शिव जी का वाहन है बैल और मां पार्वती का वाहन है शेर शेर और बैल साथ साथ इतना ही नहीं शिवजी लगाते हैं भभूत और साथ में उनके रहते हैं भूत  एक दूसरे की दुश्मन चीजें साथ-साथ रहते हुए भी क्या कभी किसी ने प्रभु को लेश मात्र भी चिंतित  देखा है नहीं ना इतनी विपरीत परिस्थितियों में सामंजस्य बनाकर रखना ही शिव होना है इन सभी से तो कम खतरनाक अनुभव होंगे हमारे  विपरीत परिस्थिति में  हम अपने आराध्य से क्यों नहीं सीखते जब वे इन खतरनाक लोगों को साथ लेकर चल सकते हैं तो समाज या परिवार या आस पड़ोस में इतने विपरीत हालात तो नहीं होते क्यों ना हम इनसे सीखते हुए सबको साथ लेकर सामंजस्य बनाकर चलना सीख ले।

    शिव अर्थात अंधकार में प्रकाश की संभावना जिस तरह भोलेनाथ प्राणी मात्र के कल्याण के खातिर जहर पीकर देव से महादेव बन गए उसी प्रकार हमें भी समाज में व्याप्त निंदा अपेक्षा और आलोचना को पीकर मानव से महामानव बनने की कोशिश करना चाहिए प्रभु शिव का एक नाम आशुतोष भी है सिर्फ जल चढ़ाने से प्रसन्न रहने वाले भगवान आशुतोष का यही संदेश हमें समझना चाहिए कि हम अपने जीवन में जो कुछ भी और जितना भी काम करके कमा पाते हैं उसी में प्रसन्न और संतुष्ट रहना सीखें आजकल जो चारों तरफ महिलाओं के साथ छोटी-छोटी बच्चियों के जो काम वासना का माहौल है उसमें भी शिवजी से सीख कर उसे दूर किया जा सकता है शिवजी ने काम को भस्म किया तब वह देवों के देव कहलाए मनुष्य काम के अधीन है और प्रभु शिव भगवान राम के अधीन हैं भगवान शिव के जीवन में वासना नहीं उपासना है शिव पूर्ण काम है  काम का मतलब वासना ही नहीं अपितु कामना भी है और शंकर भगवान ने तो हर तरह की इच्छाओं को नष्ट कर दिया शिव जी को किसी तरह का कोई लोभ नहीं है बस राम दर्शन करने का राम कथा सुनने का और राम नाम जपने का लोभ उन्हें रहता है हर परिस्थिति में सामंजस्य रखने वाला मनुष्य ही शांत प्रसन्न चित्त परमार्थी सम्मान मुक्त क्षमावान और लोकमंगल के संकल्पों से पूर्ण करने की सामर्थ्य प्राप्त कर सकता है
    आओ आज से हम सभी शिव के दर्शन रूप से अपने आपको गूढ मानव बनने का प्रयास करे।
 - कामिनी भोजक, बीकानेर।

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