जानिए मग ब्राह्मणों की उत्पति के साथ साम्बपुर बना मुलतान शहर


भाई बन्धु/भविष्य पुराण, साम्ब पुराण, पद्य पुराण आदि अनेक पुराणों में शाकद्वीपी मग ब्राह्मणों की उत्पति के सम्बन्ध में कहा गया है कि एक बार शाकद्वीपी के राजा प्रियवृत के पुत्र 'मेघातिथि' द्वारा शाकद्वीप में विशाल सूर्य नारायण का मंदिर बनवाया गया और उसमें स्वर्ण निर्मित सूर्य प्रतिमा स्थापित की गई। लेकिन उस समय शाकद्वीपी में सूर्य भगवान की शास्त्र विधि से पूजा करने वाला कोई ब्राह्मण नहीं था। मेघातिथि ने सूर्य नारायण की आराधना की। भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर मेघातिथि को साक्षात् दर्शन दिए तथा वरदान मांगने को कहा, तब मेघातिथि ने सूर्य भगवान से वर मांगा कि- हे भगवन्। मैने आपका एक मंदिर बनवाया है मगर इस मंदिर की प्रतिष्ठा कराने वाले तथा विधि-विधान से पूजा करने वाले ब्राहा्रण शाकद्वीप में नहीं है। भगवान सूर्य ने मेघातिथि की प्रार्थना पर अपने तेज से अष्ट ब्राहा्रण उत्पन्न किये। ये आठों सूर्यपुत्र सामगान करते हुए भगवान से प्रार्थना करने लगे कि हे परम पिता हमारे लिये क्या आज्ञा है? भगवान ने कहा शाकद्वीप में मेघातिथि ने मेरा विशाल मंदिर बनवाया है। तुम वहां जाकर मंदिर की प्रतिष्ठा करो, मेरी पूजा अर्चाना कर इनका कृत्य सुधारों तथा धर्म प्रचार करो। ब्राह्मणों ने सूर्य भगवान की आज्ञा शिरोधार्य कर मंदिर की प्रतिष्ठा की तथा सूर्य (सौर) भगवान की विधि विधान से नियमित पूजा-अर्चन करने लग गये और तभी से इन्हें शाकद्वीपी मग ब्राह्मण नाम से पुकारा जाने लगा। 

श्रीकृष्ण पुत्र साम्ब द्वारा ब्राह्मणों को जम्बूद्वीप लाना 
श्रीकृष्ण का पुत्र 'साम्ब' बहुत सुन्दर था। उसने एक बार दुर्वासा ऋषि का दुबला पतला व कुबड़ा शरीर देखकर ऋषि का मजाक उड़ाया था। दुर्वासा ने इसके कोढ निकलने तथा कुरूप होने का शाप दे दिया। कुछ समय बाद साम्ब को महर्षि नारद ने कहा कि साम्ब तुम्हारे पिता श्रीकृष्ण तुम्हें रनिवास में बुला रहे हैं। साम्ब रनिवास में पहुॅचा। साम्ब को आया देखकर समस्त रानियां साम्ब के सौन्दर्य पर मोहित हो गई। वे श्रीकृृष्णा को छोड़कर उसे ही निहारने लगी। श्रीकृष्ण यह देखकर क्रोधित हुए तथा अपने पुत्र को शाप दिया कि जाओ तुम कुष्ठ रोग से ग्रस्त हो जाओ। साम्ब घबरा गया और अपने पिता से विनती की कि हे! पिता मैं निर्दोष हूं, आप मुझे क्षमा करे। मैं नारद मुनि के कहने पर यहां आया हूँ। श्री कृष्ण ने कहा, कि हे साम्ब यद्यपि तुम निर्दोष हो, फिर भी मेरा वचन खाली नहीें जायेगा। तुम भगवान भास्कर की पूजा अर्चना एवं तपस्या करो वो ही तुम्हारे कुष्ठ रोग का निवारण करेंगे। साम्ब ने पिता की आज्ञा से भगवान आदिनारायण की कई वर्षो तक तपस्या की। एक दिन सूर्य भगवान ने साम्ब को साक्षात् दर्शन दिये। साम्ब का सूर्य दर्शन से कुष्ठ रोग दूर हो गया। उसकी काया कंचन जैसी हो गई। 

साम्ब ने सूर्य भगवान के इस वरदान के बदले में उसका एक विशाल मंदिर निर्माण करने का विचार किया तथा इसको मूर्त रूप देने के लिए साम्ब ने चन्द्रभागा (चिनाव) नदी के किनारे विशाल सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया। सूर्य मंदिर के निर्माण के बाद मेघातिथि की तरह साम्ब के सामने भी सूर्य मंदिर की प्रतिष्ठा व पूजा अर्चन करने की समस्या आई। जम्बूद्वीप में उस समय शास्त्र विधि से सूर्य पूजा करने वाले ब्राह्मण नहीं थे। साम्ब को एकाग्रचित होकर भगवान सूर्य की आराधना की। सूर्य भगवान ने साम्ब को प्रत्यक्ष होकर निर्देष दिया कि तुम जाओ और शाकद्वीप से मग ब्राह्मण को अपने गरूड़ विमान में बैठाकर जम्बूद्वीप में लाओ। साम्ब ने सूर्य भगवान की आज्ञानुसार 18 मगकुल ब्राह्मणों के परिवार को सर्वप्रथम जम्बूद्वीप में लाया तथा अपने द्वारा निर्मित साम्बपुर (साम्बनगर) के सूर्य मंदिर का महन्त नियुक्त किया तथा अपना गुरू मानकर गांव आदि दान देकर जम्बद्वीप में बसाया। 

साम्बपुर (साम्बनगर)
साम्ब द्वारा निर्मित साम्बपुर कहां स्थित है? चन्द्रभागा नदी कहां थी तथा वर्तमान में इसका नाम क्या है? सर्वप्रथम इस पर विचार करना आवश्यक है। 
पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में मुलतान नामक प्राचीन नगर है। पहले यह भारत का ही भाग था यहां पर विषाल सूर्य मंदिर था।  इस सूर्य मंदिर के पास एक जल कुण्ड था, उसमें नहाने वाले व्यक्तियों को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती थी। इस मंदिर में सारे भारतखण्ड से दर्शनार्थी आते थे। इस मंदिर में विशाल सूर्य प्रतिमा भी प्रतिष्ठापित थी। 
मुलतान के सूर्य मंदिर व नगर की समृद्धि की कहानियां अरब, ईरान के व्यापारियोंं के अलावा अनेक पर्यटक, जो भारत आते थे अपने देशों में जाकर अपने बन्धुओं को सुनाते थे। इवन हेकल, इस्तखरी, मुकदसी, कजनवी, बुखारी, अबूजेद, सेराफी तथा अरबी यात्री मसूदी तथा अलबेरूनी ने अपने यात्रा वर्णनों में मुलतान के सूर्य मंदिर का उल्लेख किया है। मसूदी के ग्रंथ 'मुशज्जुहब', बुखारी के सफरनामा आदि में लिखा है कि इस मंदिर के बुत (प्रतिमा) पर जो लकड़ी का बना था, एक सुर्ख रंग का चमड़ा चढा था। मूर्ति नासानी थी। ताज (किरीट) सोने का है, आंखों में कीमती लाल लगे हैं, वस्तुत: ये दोनों पद्यराग मणियां हैं। 

मुलतान का प्राचीन नाम
पद्यपुराण में उल्लेख है कि उक्त मंदिर जहां बना है उस नगर का प्राचीन नाम कष्यपपुर था। यह नगर कश्यप ऋषि ने बनाया था। सन् 1024 में जब मोहम्मद गजनवी ने आक्रमण किया था तब इस नगर एवं मंदिर को बसे 2,16,432 वर्ष हो गये थे। इसका नाम मुलतान बाद में पड़ा था। 

श्रीकृष्ण के पुत्र सम्बपुर 
अरब, ईरान के लेखकों ने मुलतान, सम्बपुर, हाम्सपुर तथा जगपुर लिखा है। कल्हण कृत राजतंरगिणी में भी सूर्यकुण्ड की महिमा दर्ज है। श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब द्वारा बसाये नगर और सूर्य मंदिर का निर्माण स्थान भी यहीं है। हजारों वर्षों बाद नगरों के नाम बदलते रहते हैं। कश्यपुपर, साम्बपुर तथा बाद मेंइसका नाम मुलतान पड़ा है। मुलतान में बहने वाली सरस्वती की बहिन चन्द्रभागा नदी (चिनाव) थी। उसकी पवित्रता तथा सरस्वती के बारे में प्रथम भाग में विस्तार से प्रकाश डाला जा चुका है (पाज्चजन्य विषेषांक वचनेश त्रिपाठी, 1 अप्रेल 1984) 
मुल्तान में एक सूर्य उपासक का वर्णन करते हुए सुलेमान लिखता है कि मुलतान के बाजार में मैने एक तपस्वी को देखा। वह दिन भर सूर्य की ओर दृष्टि किए हुए खड़ा रहता था। सोलह वर्ष से उसका यह व्रत अखण्ड रूप से चल रहा था। उसे कभी भी सूर्य के ताप से पीड़ा नहीं हुई। (हिन्दू भारत का उत्कर्ष , चि. वैद्य पृ.279) 
मुल्तान में मसलमानों का अधिकार हो जाने के बाद भी मुसलमानों ने इस मंदिर को कोई क्षति नहीं पहुंचाई क्योंकि इस मंदिर में सारे भारत से लाखों की संख्या में दर्शनार्थी आते थे, जिससे मुलतान को बहुत बड़ा आर्थिक लाभ होता था। जब कभी हिन्दू मुलतान को पुन: प्राप्त करने के लिए आक्रमण करते थे तब मुसलमान उन्हें सूर्य मंदिर तोड़ देने की धमकी देते तो श्रद्धालु बिना लड़े ही वापिस लौट जाते थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि सूर्य मंदिर भी सुरक्षित रहता था और मुलतान पर भी किसी प्रकार का खतरा नहीं रहता था। इससे स्पष्ट होता है कि सारे भारत में उस समय सूर्य पूजा का बहुत बड़ा प्रचार था तथा लोग सूर्य के उपासक थे। 
जैसलमेर की ख्यातों में उल्लेख है कि चन्द्रवंशी साम्ब के वंशज समा, समेचा आदि नाम से जाने जाते हैं। इनमें हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्मों के हैं तथा ये मुलतान से कच्छ तक के विशाल भू-भाग पर हजारों की संख्या में रहते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शाकद्वीप से मग ब्राह्मण सर्वप्रथम सम्बपुर (मुलतान), जम्बूद्वीप, भारतखण्ड में आये तथा यहां से सारे भारत में शनै:शनै:फेल गये। 
- नन्दकिशोर शर्मा, जैसलमेर-मो.: 9413865665

समाज की 'भाई बन्धु' पत्रिका में न्यूज और धर्म लेख इत्यादि अपडेट के लिए हमें फेसबुक पर लाइक करें। 

Comments