धराधाम पर विचरण करते,
ले क्षमा, दया, अनुराग!!
हे महाभाग!!
देखकर गर्व होता है
देख अजस्र चेतना सम्मुख।
सजग भाव धर जगा रहे हैं-
मिटाने को भय, दारिद्र, दुःख।
परे राग-विराग!!
हे महाभाग!!
कभी कभी वह भी दिखती है,
जो मानवीय कल्पना से परे है।
लोग चाहे जो कहे समझे मुझे
पर हृदम सहित भाव भरे है।
मानो वासंतिक बाग!!
हे महाभाग!!
मेरे मन मंदिर में रोज-रोज,
आगमन का शुभ सगुन होता है।
आह्लादित मन रोम-रोम हर्षित
उलक पुलक से सुधबुध खोता है।
मिटा भागमभाग!!
हे महाभाग!!
- संजय कुमार मिश्र 'अणु',
वलिदाद, अरवल (बिहार)। मो.: 8340781217
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