भाई बन्धु पत्रिका। अस्त्रखां नामक शहर में हिन्दू व्यापारियों की एक बहुत बड़ी कोलोनी है। पलास ने उन हिन्दुओं के देवता कृष्ण और अन्य देवताओं का बहुत अच्छा वर्णन किया है। ये हिन्दू वहां मुलतान से गये हुवे हैं। इसलिये वो मुलतानी कहलाये।
हिन्दू व्यापारियों का यह वर्ग कैस्पियन सागर तक फैला है। रूप और वेशभूषा से किसी का सही पता उसके मूलस्थान के सम्बन्ध में बताना बड़ा कठिन होता है। लेकिन उनके देवताओं के मंदिर गंगा तट के मंदिरों में देखा जा सकता है। मुलतानी हिन्दुओं ने इन्डोडोर में एक मंदिर बनाया है। इस मंदिर में श्रीकृष्ण की मूर्ति को स्थापित किया गया है। कृष्ण के पीछे राम लक्ष्मण जगन्नाथ ओर अन्य देवताओं की मूर्तियां है। कृष्ण के बाद शिव ओर उनके पहले अष्टभुजा (चामुंडा) की मूर्ति है। पलास में इसका विवरण है। (कर्नल टॉड राजस्थान का पुरातत्व तीसरा भाग पृष्ठ 36)
पलास के अलावा अन्य यात्रियों ने भी साम्राज्य के सुदूर स्थित लोगों ने हिन्दू धर्मियों के अस्तित्व की सूचना मिलती है।
यदि हम उनके उपरी सादृष्य को स्वीकार करें तो हम कहेंगे कि साइबेरिया फिन्लेन्ड के सेमोइड और चाउड और भारत के श्याम या साम यदु एवं चाउड / जाउड आदि जातियों के बीच बहुत सी समानतायें हैं। इन दो जातियों की भाषा बहुत करीबी है। इस युति और यदुओं के प्राचीन इतिहास में इतना सादृष्य है कि हम इसे उपरी सादृष्य नहीे कह सकते।
- नन्दकिशोर शर्मा, जैसलमेर
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