हमने वेद के प्रारम्भ भाग में 'क्यों' का वाद-विवाद पढ़ा था, और अब वैदिक जानकारी पढ़ेंगे।
अब हम वेद के कतिपय ऐसे प्रमाण उद्धृत करते हैं, जिनमें वैदिक सिद्धांतों की 'क्यों' जानने का सुस्पष्ट उल्लेख विद्यमान है। अथर्ववेद काण्ड 10 सूक्त 2, 7 और 8 के कुछ मंत्रांश मननीय हैं। यथा:-
(क) केन पाष्र्णी आभृते पूरुषस्य? केन मांसं संभृतं?
केन गुल्फौ? केनाङ्गुली:? पेशनी केन खानि?
केनोच्छलङ्खखौ? मध्यत: क: प्रतिष्ठाम्।।१।।
(ख) कति देवा:,? कतमे त आसन्?...
कति स्तनौ व्यदधु? क: कफोडौ?
कति स्कन्धान्? कति पृष्टीरचिन्वन्?।।४।।
(ग) क उ तच्चिकेत?।।७।।
दिवं रुरोह कतम: स देव:?।।८।।
(घ) प्रियाप्रियाणि बहुला स्वप्नं संबाघतन्द्र्य:।
आनन्दानुग्रो नंदांश्च कस्माद्वहति पूरुष:?।।९।।
(ड़) को अस्तिमन् रूपमदघात् कश्चरित्राणि पूरुषे?।।१२।।
को अस्मिन्प्राणं? को अपानं? व्यानमु?
समानमस्मिन्को देव:।
को अस्तिमन्सत्यं? कोऽनृतं? कुतो मृत्यु:?
कुतोऽमृतम्?।।१४।।
(च) को अस्मै वास: पर्यदधात्?
को अस्यायुरकल्पयत्?
बलं को अस्मै प्रायच्छत्?
को अस्याकल्पयज्जवम्?।।१५।।
(छ) केन पर्जन्यमन्वेति? केनास्मिन्निहिंत मन:।।१९।।
(अथर्व 10।2।1-19)
(ज) कस्मादङ्गाद् दीप्यते अग्निरस्य कस्मादङ्गात्पवते मातरिश्वा?
(झ) द्वादश प्रधयश्चक्रमेकं त्रीणि नभ्यानि क उ तच्चिकेत? तन्नाहतास्त्रीणि शतानि शङ्कव: षष्टिश्च खीला अविचाचला ये।
(अथर्व 10।8।04)
अर्थात्:- (क) मनुष्य की एडियें मांस से क्यों भरी होती हैं? टखने अंगुली इस प्रकार की क्यों होती हैं? सब इन्द्रियों के छिद्र क्यों खुले रहते हैं, दोनों शङ्खास्थियों के बीच में चीर क्यों रहता है? (ख) देवता कितने होते हैं, और वे कौन से हैं? स्त्रियों के स्तनाशय क्यों होते है? कोहिनी आदि जोड़ मुड़ते तुड़ते क्यों हैं? कन्धों और पीठ की रचना इस प्रकार की क्यों है? (ग) इन सब तत्वों का जानने वाला कौन है? वह कौन शक्ति है जो यह सब कुछ रचकर स्वयं द्यौलोक में चढ़ गया? अर्थात्-अदृश्य हो गया। (घ) यह मनुष्य स्वप्न में प्रिय और अप्रिय प्रदार्थ क्यों देखता है? तथा उससे आनन्द या दु:ख क्यों अनुभव करता है? (ड़) पुरुष में रूप सौंदर्य कहां से आता है? और इसके चरित्रों का अधिष्ठान क्या है? मानवपिण्ड में प्राण अपान, समान, उदान और व्यान किसने फूँके? सत्य और झूठ का आधार क्या है? तथा मृत्यु और अमरत्व का हेतु क्या है? (च) मानव समाज की वस्त्र पहिनना किसने सिखाया? और इस आयुष्य की अवधि का क्या रहस्य है? बल और वेग दोनों क्या वस्तुएँ हैं? (छ) बादल क्यों बरसता है? मन के न लगने का क्या आधार है? (ज) अग्नि का प्रकाश चुन्धियानों वाला क्यों होता है? (झ) बारह पर्वों वाला एक चक्र=पहिया है, परन्तु उसकी नाभि तीन क्यों हैं? यह तत्व कौन जानता है? उसमें तीन सौ साठ कीलें ठुकी हैं जो निरंतर चलती फिरती क्यों रहती हैं, अर्थात् बारह महीने का एक वर्ष गाड़ी के पहिए की भाँति घूमता है परन्तु गर्मी, सर्दी और वर्षा ये तीन प्रकार के उसकी नाभ उत्तरायण-दक्षिणायन और विषुवत् रेखा पर आश्रित क्यों हैं? वर्ष के तीन सौ साठ दिन छोटे-बडे क्यों होते हैं?
अथर्ववेद के दसवें काण्ड में कई सूक्त 'क्यों' से भरे पड़े हैं। यदि हम चारों वेदों के केवल प्रश्नात्मक मंत्रों का संग्रह करें तब तो हमारे 'क्यों' से भी कई गुणा बड़ा एक स्वतंत्र महाग्रन्थ ही तैयार हो जाए, फिर यदि उसके उत्तरों का शब्दानुवाद मात्र भी लिखने बैठें, तो रेवले की एक छत्तीस टन की गाड़ी भर जाए, विवेचन और दशाख्यान की कथा तो कथा ही है। 'केन उपनिषद्' का नाम ही उसके 'क्यों' होने का प्रमाण है, यही बात 'प्रश्नोपनिषद्' के सम्बन्ध में भी समझनी चाहिए।
इस प्रघट्ट से हम पाठकों को नास्तिकों की 'क्यों' का सदैव उत्तर देने के निमित्त कटिबद्ध रहने के लिए प्रोत्साहित करना चाहते हैं। भगवत कृपा से सनातन धम्र के पास सब क्यों का उत्तर देने की विपुल सामग्री विद्यमान है, वे जब जो चाहे सो पूछें, परन्तु यह ध्यान रहे कि यदि हमने किसी नास्तिक से एक भी क्यों पूछे, तो सात जन्म तक भी उसका उत्तर देने में समर्थ न हो सकेंगे। इतने पर भी यदि किसी को अपनी तर्कशील बुद्धि का अधिक भरोसा है तो वह नीचे के कतिपय प्रश्नों पर आजमाइश कर देखें, और जरा बतायें कि -
- बेर के वृक्ष की समान टहनी में जो काँटे होते हैं उनमें से एक सीधा दूसरा टेढ़ा क्यों।
- ढाक के सदैव तीन पात क्यों?
- मीठे नदी नदों का जल समुन्द्र में पहुंचते ही खारा क्यों? और वहीं पुन: बादल से बरसने पर मीठा क्यों?
- सर्प के कान एवं पांव, मेंढक के जीभ और चिमगादड़ के गुदा क्यों नहीं?
- सोने में गंध, ऊख में फल, चंदन में फूल, करीर में पत्ते और कंक (गोघड़-नामक श्वेत रंग की चील), में चहचहाना क्यों नहीं?
शेष आगे...
अश्विनीकुमार, बीकानेर, मो. : 9460270375
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