भाई बन्धु पत्रिका। प्रकृति काल प्रवाह में परिवर्तनीय है । प्रत्येक नये पल, नये क्षण पुरातन के गर्भ से अधुनातन का जन्म हो रहा है। विज्ञान अगर प्रत्यक्ष सत्य है तो आस्था भी अज्ञात पर विश्वाश है । ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति सतत विकासशील गतिविधि है। नये आविष्कार प्राय: उपलब्ध ज्ञान के पूरक होते हैं। वे स्थापित निष्कर्ष को निरस्त करने वाले भी होते हैं। विज्ञान के निष्कर्ष को अंतिम नहीं माना जा सकता है। वैज्ञानिक निष्कर्षों का जन्म और विकास प्रयोगों में होता है। आस्था का विकास विश्वाश में होता है। ब्रह्माण्ड विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग ने 'दि थ्योरी ऑफ एवरीथिंग' में कहा था की 'अब तक प्रत्येक गतिविधि कारण नहीं खोजा जा सका है। यह कम भविष्य के वैज्ञानिक पूरा करेंगें।'
जगत का प्रत्येक अंश गतिशील है। आइंस्टीन ने विज्ञान को गति का अध्ययन बताया। एक बड़े भाग को हम नहीं जानते। मत, मजहब, पंथ और धर्म की मान्यताओं का आधार अज्ञात दैवीय शक्ति पर विश्वास है। विश्व की अधिकांश जनसंख्या ईश्वर विश्वासी है। वैज्ञानिक निष्कर्षों का जन्म और विकास प्रयोगों में होता है। आस्था का विकास विश्वास में होता है। जीवन में दोनो का महत्त्व है। वैज्ञानिक सत्य तथ्य देते हैं। वे विश्वासों से नहीं टकराते, लेकिन पथिक विश्वासी वैज्ञानिक उपलब्धियों से टकराते हैं।
कोरोना वायरस विज्ञान सत्य है, और इसका जानलेवा प्रभाव भी एक सत्य तथ्य है। लगभग पूरी दुनिया उससे बुरी तरह पीडि़त है लेकिन इसके बावजूद कुछ कट्टरपंथी आस्था के बहाने विश्व मानवता के विरुद्ध सेंधमारी पर आमदा है।
हमारे जीवन की सारी गतिबिधियां देशकाल के भीतर होती हैं और वैज्ञानिकों के शोध देशकाल में होते हैं।
वैज्ञानिक अध्ययन विश्लेषण के बाद निष्कर्ष देते हैं और पूरा विश्व उन्हें स्वीकार कर लेता है।
ठीक इसी प्रकार कोई दिव्यदूत या सत्पुरुष तत्कालीन कालखंड की आवश्यकतानुसार जीवनशैली विशेष और देव अस्तित्व की घोषणा करता है और उसके समर्थक उसकी बात पर विश्वास कर लेते हैं और शेष लोग उनकी आस्था का सम्मान करते हैं।
पूरी दुनिया में देखा जाए तो लगभग तीन लाख चालीस हजार से भी ज्यादा लोग कोरोना संक्रमण के कारण मारे जा चुके हैं। संक्रमितों की संख्या भी बढ़ती जा रही है, इसके बावजूद तमाम लोग लॉकडाउन का पालन पूर्ण रूप से नहीं कर रहे हैं, यह आदत महाभारत काल के यक्ष प्रश्नों से तुलनीय है।
यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा, 'सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
युधिष्ठिर ने उतर दिया, 'मृत्यु निश्चित जानकर भी लोगों का आचरण ऐसा है कि वे नहीं मरेंगे।Ó महामारी में मृत्यु का खतरा जानते हुए भी लोग अनुशासन नहीं मानते। क्या 21वीं सदी के आधुनिकों का ऐसा आचरण सबसे बड़ा आश्चर्य नहीं है?
हम किसी विषय पर नए वैज्ञानिक निष्कर्ष आते ही पुराने निष्कर्ष को छोड़ देते हैं, नये को अपना लेते हैं । पुनर्जागरण काल के पहले यूरोप में अन्धविश्वास था, एशिया का भी एक भाग अन्धविश्वासी था।
14 वीं सदी के मध्य यूरोप में प्लेग की महामारी आयी। 16वीं में इन्फ्लूएंजा का प्रकोप हुआ, चेचक फैला। माना गया कि प्लेग का जन्म एशिया में हुआ। विल डयुरेंट ने, 'दि रिनेशें में लिखा है कि, 'युद्घ से अभावग्रस्त एशियाई जनसंख्या की उर्वरता और गन्दगी से पैदा महामारी अरब होकर मिस्र, रुस आदि की ओर गयी। 'इंग्लैंड की गन्दगी की ओर भी ड्यूरेंट ने ध्यान दिलाया है। यूनान में सिफलिस रोग था और वहाँ के लोग इसे देव प्रकोप मानते थे। डयुरिंग के अनुसार, 'यूनानी पुरकथाओं में सिफलिस नाम के भेड़ का उल्लेख है। उसने देवों की पूजा छोड़ दी, आपोलो को गुस्सा आया और उन्होनें निकट की हवा को विषैला बना दिया जिससे शरीर में फोड़े निकल आए। ये एक कोरा अन्धविश्वास का उदाहरण है।
लगभग ईशा के 400 वर्ष पूर्व यूनान में सुकरात पर आरोप था कि वह - पृथ्वी के नीचे क्या?, स्वर्ग में क्या? आदि प्रश्न करते और बताते रहते हैं, देवों को नहीं मानते। अत: अन्त में उन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाई गई।
तब भी यूनानी समाज में आस्था और विश्वास से संवाद जारी रहा और दार्शनिक अन्धविश्वासों से टकराते हुए यूरोप ने पुनर्जागरण में आत्मनिरीक्षण किया।
हमारे देश भारत के धर्म में आस्था के पुनर्निरीक्षण की सुदीर्घ परम्परा है। ऋग्वेद प्राचीनतम आस्था का विश्वास रहा है, इन्द्र वरिष्ठ देवता हैं, ऋग्वेद में उनके अस्तित्व पर प्रश्न है- पता नहीं की वह हैं या नहीं हैं? फिर यज्ञ और कर्मकांड, उपनिषद , महाभारत इत्यादी आस्था का पूर्ण संग्रह है। नियतिवाद और पुरूषार्थवाद में टक्कर है।
भारत के धर्म और आस्था में वैज्ञानिक विवेक की जगह है। धर्म और विज्ञान परस्पर सम्बंधी हैं। मानवता की सेवा के लिए धर्म को नेतृत्व करना चाहिए।
ताजा चुनौतियों के मद्देनजर मनवता के हित में विज्ञान, चिकित्सा , विज्ञान तत्परता से जुटे हैं - वे स्वागत योग्य हैं। भारत संस्कृति के लिए अनुशासन पर्व का अनिश्चित कालखंड है। अत: यह समय आस्था से संवाद का समय भी कहा जा सकता है और विश्वास के साथ विज्ञान का समय भी, या दोनों का पूरक सम्बन्ध।
- डॉ. रवि नंदन मिश्र, वाराणसी (यूपी) मो.: 7766989511
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