जानिए सीकर के सूर्य मन्दिर का महत्त्व



    भाई बन्धु पत्रिका/ सीकर के सूर्य मन्दिर की स्थापना वैद्य विजयराज जी के कहने पर तथा राणी भटियाणी को स्वास्थ्य लाभ होने पर संवत 1831 में राजा माधोसिंह ने बनवाया था।
    वर्तमान सीकर के पहले यहां ताला-माला नामक दो भाइयों की ढ़ाणी थी। शेरसिंह जी एक बार शिकार खेलने गये थे। उन्होंने एक केर की झाड़ी के पास एक भेड़ व उसके दो बच्चों को देखा, एक सियार उन बच्चों को खाने के लिए आगे बढ़ रहा था। भेड़ अपने बच्चों को बचाने के लिए आगे बढ़ी व सियार से मुकाबला किया तथा सियार को भगा दिया तभी शेर सिंह जी ने विचार किया कि यहां गढ़ बनवाया तथ गहन बस्ती बसायी। 
    यह जगह राजा माधोसिंह के राज्य में आती थी। राजा माधोसिंह के तीन रानियां थी। उनमें से भटियाणी रानी बीमार पड़ गई। राज वैद्य सहित कई वैद्यों ने इलाज किया पर रानी ठीक नहीं हुई। राजा माधोसिंह ने दीवान ने बताया कि सीकर में विजयराज जी वैद्य प्रसिद्ध है उन्हें बुलाने का सुझाव दिया। दिवान जी विजयराज जी वैद्य के पास गये एवं रानी की अस्वस्थता के बारे में बताया। वैद्य जी ने एक सूत दिया एवं कहा कि इसे रानी के हाथ में बांध देना व थोड़ी देर बाद खोल कर उनके पास से वापस लाना ताकि रानी की बीमारी का पता कर सके। 
    दरबार में दीवान जी ने बताया कि विजयराज जी वैद्य सूत से नाड़ी की जांच कर बिमारी बतायेंगे। अन्य सभासदों सहित राजा ने विश्वास नहीं किया व सूत एक खरगौस के गले में बांध दिया व कुछ मिनटों बाद खोलकर घुड़सवार संदेशवाहक के साथ भिजवा दिया। सूत देखकर वैद्यजी ने बताया कि मैं जानवरों का वैद्य नहीं हँू। उन्होंने दूसरा सूत दिया एवं रानी के हाथ बांधकर वापस लाने के लिए बोला इसवार जैसे वैद्यजी ने कहा वैसाही किया गया। सूत लेकर दीवान  जी आये व पूर्व में की गई गलती के लिए क्षमा मांगी। वैद्यजी ने बताया कि रानी ने जो मांस खाया वह अधपक्का था, उसमें जीव था। इस वजह से वह पेट में जम गया है। जिससे दस्त व मूत्र बन्द हो गये है। एवं दांत जड़ गये है। उन्हें जबरन दवा दी गई जिससे दूसरे दिन दस्त व मूत्र चालू हो गये। तथा दूसरी खुराक में काफी स्वास्थ्य लाभ हो गया वैद्यराज जी में बहुत खुश हँू। भटियानी रानी को स्वास्थ्य लाभ मिला। मांगीये आपको क्या चाहिये। वैद्यराज सूर्य भगवान के अनन्य भक्त थे। इसीकारण वे बाहर गांव कम ही जाते थे, जब जाना आवश्यक होता तो शाम तक वापस आ जाते थे। इस प्रकार वे अपनी संध्या वंदना नियमित करते थे। 
    वैद्यजी ने कहा कि हमारे गांव में सूर्य नारायण मन्दिर नहीं है। अतैव आपसे अनुरोध है कि आप सूर्य नारायण का मन्दिर बनावाकर हमार सहयोग करावें।

    राजा माधोसिंह जी ने विक्रम संवत 1831 में सूर्य मन्दिर बनवाकर वैद्य विजयराज जी को सौंपा। इस मन्दिर के लिए 100 बीघा जमीन समरथपुरा-पिपराली (बालाजी) में दी।
    विजयराज जी के चार पुत्र हुए - 1. महाबक्सजी, 2. मांगीलालजी, 3. रामप्रसादजी  और 4. मुरलीधर जी व्यास।
वर्तमान में इस मन्दिर की सेवा पूजा विजयराज जी के पड़पोते रामनिरंजन जी करते है, इनकी आयु ८१ वर्ष है। रामनिरंजन जी ने 1999 में यहां महायज्ञ करवाया। सूर्य मन्दिर की स्थापनाके 32 वर्ष बाद यहां संज्ञा माा की स्थापना की गई। मन्दिर की डोली की जमीन समय-समय पर लोगों ने दबाली गई। 
    इस प्रकार सूर्य भक्त विजयराज जी व्यास के कहने पर राजा माधोसिंह जी ने सूर्य देव का मन्दिर बनवाया। वर्तमान में नित्य सेवा पूजा अर्चना निर्बाध रूप से हो रही है।
जय भास्कर...
- श्रीनिवास शर्मा, इन्दौर

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