भाई बन्धु/ सुख, सुविधाएँ नहीं वरन् सतत प्रयत्न और कठिनाइयाँ मनुष्य का निर्माण करती हैं। परिस्थितियों से जूझने, अपना मार्ग स्वयं प्रशस्त करने, आगे बढऩे, जीवन में सफलता पाने आदि की प्रेरणा हमें कठिनाइयों से मिलती है। कठिनाइयों से परिचित हो जाने के पश्चात वे उसे शत्रु नहीं वरन् मित्र लगती हैं। एक शायर का कथन हैं 'मुश्किलें इतनी पड़ीं मुझ पर कि आसाँ हो गई।
जीवन का कोई भी तो ऐसा क्षेत्र नहीं हैं जहाँ कठिनाइयों का सामना करने से आप बच पावें। जीवन एक कर्म-भूमि है, एक युद्ध क्षेत्र है। यहाँ वीरों की भाँति उनसे लड़ो पराजित करो। एक महापुरुष के प्रेरणार्थक शब्द देखिए -
'विश्व के विस्तृत युद्ध-क्षेत्र में तुम एक बेजुबान गूँगे पशु की भाँति न हो जिसे जहाँ चाहे हँकाया जा सके वरन् इस युद्ध में तुम एक वीर की भाँति लड़ो। बिना कठिनाइयों से लड़े, बिना उन्हें जीते, छुटकारा कहाँ? ये कठिनाइयाँ, ये ठोकरें, हमारी सबसे बड़ी मित्र, गुरु तथा मार्ग प्रदर्शक होती हैं।
एक समझदार तो कठिनाइयों का स्वागत करता है। तुम आओगी तभी तो मेरे आन्तरिक गुणों, साहस, शीलता तथा प्रतिभा को प्रकाश में आने का अवसर मिलेगा।
प्रसिद्ध लेखक जान हंटर ने कहा है कि 'क्या कोई ऐसा मनुष्य है जिसका हृदय कठिनाइयाँ तोड़ देती हैं, जो तूफान के आगे झुक जाता है? ऐसा मनुष्य संसार में बहुत कम मिल सकेगा। क्या कोई ऐसा मनुष्य है जो विजय पाने की कामना रखता है? इस प्रकार का आदमी कभी असफल नहीं होगा?'
आलसी, निकम्मे, पराश्रित, भाग्य का रोना रोने वाले, दुर्बल हृदय मनुष्य को सफलता कभी वरमाला नहीं पहनाती। कठिनाइयाँ हमें सर्वोत्तम अनुभव और आशावर्धक प्रेरणा देती हैं। हमारी भूलें, हमारी त्रुटियाँ ही हमारी गुरु, हमारी पथप्रदर्शक बनती हैं। तो फिर कठिनाइयों से घबराना मूर्खों का काम है।
चाल्र्स जेम्स फाक्स कहा करते थे कि वह ऐसे आदमी से अधिक आशा करते हैं जिसे असफलता प्राप्त हुई हो और तब भी वह अपने प्रयत्नों में निरंतर लगा रहे, बनिस्बत उस पुरुष के जिसका जीवन सफलताओं से पूर्ण हो। 'जिसके सामने कठिनाइयाँ आयेंगी ही नहीं, वह तो निश्चिन्तता से टाँग पर टाँग रखे बैठा रहेगा। वह और कहते हैं कि यह बुरा नहीं है यदि तुम मुझे बताओ कि उक्त नव युवक को अपने प्रथम भाषण में सफलता मिल गई। वह अपने प्रथम सफलता से संतुष्ट हो सकता है, पर मुझे एक ऐसा नवयुवक दिखाओ जिसे पहले प्रयत्न में सफलता न मिली हो और तब भी वह निरन्तर प्रयत्नशील रहा हो। निश्चय ही मैं दूसरे वाले युवक का पक्ष लूँगा और मेरा विश्वास है कि वह अपने जीवन में आगे चल कर अधिक सफलतायें पायेगा बनिस्बत इस मनुष्य के जिसे प्रथम प्रयत्न में ही सफलता मिल गई थी।'
सफलता, यह भी हो सकता है कि इत्तफाक से भी मिल गई हो। अन्धे के हाथ बटेर लगना कहावत प्रसिद्ध भी है। ऐसा आदमी पूर्ण निश्चिन्त हो कर बैठा रहेगा। वह सोचेगा, कि अब मुझे हाथ पैर हिलाने की क्या आवश्यकता हैं। भाग्य तो यों ही मेरे ऊपर सदय है और मुझे तो बिना परिश्रम, प्रयत्न किए ही सफलतायें मिलती रहेंगी। यही झूठा विश्वास उसके पतन का कारण भी बन सकता है।
हममें समझदारी जितनी असफलता के फलस्वरूप आती है, उतनी सफलता के फलस्वरूप नहीं। हार्नटूक कहा करते थे कि अपने देश से अधिक परिचित मैं इसलिए हो पाया हूँ क्योंकि मैं बीच-बीच में मार्ग भूल जाता था। इस विद्वान का कहना है कि अपने अन्वेषण-कार्य में जब बहुत बड़ी बाधा उपस्थित पाता था तब प्राय: होता यही था कि अपनी खोज के तट पर ही आ लगता था।
बड़े-बड़े कार्य, उच्च विचार, खोज, आविष्कार, आदि का जन्म कठिनाइयों के मध्य में ही हुआ है। किसी भी नेता की जीवनी आप देखें, किसी भी धर्म-क्षेत्र के किसी महापुरुष के जीवन का आप अध्ययन करें, आप देखेंगे कि कितनी भयानक कठिनाइयों का पहले उन्हें सामना करना पड़ा था। अंग्रेजी में कहावत है "असफलता, सफलता का स्तम्भ है।" असफलता की नींव पर ही सफलता की इमारत बनाई जाती है।
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