पढ़े इन्दौर में शाकद्वीपीय समाज



     भाई बन्धु पत्रिका/ समाज को उपलब्ध साक्ष्यों एवं तथ्यों के आधार पर इन्दौर में श्री शाकद्वीपीय मग ब्राह्मण समाज के लोग प्राचीन काल से रहते आए हैं। होल्कर घराने के महाराजा यशवंतराव होल्कर (द्वितीय) के काल में जब इन्दौर को इन्दुर के नाम से जाना जाता था, तब यहां समाज के तीन प्रमुख घर थे जिनमें प्रथम स्व. श्री मंगलजी शर्मा तथा उनके छोटो भाईसा. दगडूजी का दूसरा समाज के प्रथम अध्यक्ष स्व. अमरचन्द जी शर्मा (डॉ. ए.जी.शर्मा) के पिताजी स्व. श्री गोरेलालजी का तथा तीसरा समाज के पूर्व सचिव स्व. ओमप्रकाशजी के दादाजी श्री हजारीलालजी शर्मा का था। इनमें श्री मंगलजी समाज के द्वितीय अध्यक्ष स्व. रामचन्दजी शर्मा (आर.एस.शर्मा) के नाना थे तथा श्री दगडूजी समाज के पूर्व कोषाध्यक्ष स्व. श्री मनोहरलाल के नाना तथा स्व. गुलाबचन्दजी, स्व. हीरालाजी एवं स्व. बाबूलालजी का परिवार भी इन्दौर में बस चुका था। इस प्रकार होल्कर वंश के समय समाज के कुल पाँच परिवार हो चुके थे।
       स्व. श्री मंगलजी महाराजा यशवंतराव होलकर के दरबार में खंचाजी थे। उनके पश्चात महाराजा तुकोजीराव होलकर के यहाँ उनके छोटे भाई स्व. दगडूलालजी को नौकरी पर नियुक्त किया गया। दोनों भाईयों ने अपने आधिपत्य की सम्पतियों में से एक बड़ा मकान जो कि मल्हारगंज गली नं. १ में स्थित था, समाज को दान देने का निर्णय लिया चूंकि वे स्वयं मालिक थे अत: उन्होंने अपने साथ स्व. गोरेलालजी, स्व. हजारीलालजी, स्व. चुन्नलाल जी तथा स्व. देवीलाल जी को शामिल कर पंच बनाया एवं सम्पति के दस्तावेज सुर्पुद किये। इस प्रकार समाज को सम्पति के रूप में पहला मकान प्राप्त हुआ। कालांतर में पंचों के वंशजों में क्रमश: स्व. रामचन्द्र शर्मा, स्व. अमरचन्दजी शर्मा, स्व. रामनारायणजी शर्मा, स्व. चुन्नीलालजी शर्मा के ज्येष्ठ पुत्र स्व. बिरदीचन्दजी एवं स्व. नन्दलालजी ने सम्पति का आभार संभाला। इस समय तक कई और परिवार यहां आकर बस चुके थे।
       किन्तु दुर्भाग्यवश किरायेदारों तथा अन्य कारणों से कोर्ट कचहरी के कारण प्रथम सम्पति का यह मकान विक्रय होकर कड़ावघाट, सिलावटपुरा एवं सदर बाजार स्थित मकानों के रूप में क्रय-विक्रय होते हुए सन. १९६३ में एक राशि के रूप में परिवर्तित हो गया, जिसे बाद में पंचों ने प्रभारी स्व. नन्दलालजी से लेकर श्री अमरचन्द जी के पास सुरक्षित किया जो बाद में ब्याज सहित एक बड़ी राशि बनकर समाज की निधि बना।
       आखिरकार निधि की सुरक्षा, समाज हेतु एक नई धर्मशाला की आवश्यकता एवं सही दिशा-निर्देशन के दृष्टिगत विचार विमर्श हेतु दिनांक २० जनवरी १९८२ को खजूरी बाजार स्थित औंकारलाल चुन्नलाल धर्मशाला में एक बैठक के माध्यम से ३४ सदस्य एकत्रित हुए। लम्बे गहन विचार मंथन के पश्चात २१/-रुपये सदस्यता शुल्क व ५/-रुपये मासिक शुल्क तय कर श्री शाकद्वीपीय मग ब्राह्मण समाज के नाम से संस्था हुई जिसमें २९ सदस्य सूचीबद्ध हुए तथा समाज को रजिस्टर्ड संस्था के रूपमें पंजीकृत कराने की कार्यवाही प्रारम्भ हुई।
       प्रथम कार्यकारिणी के अध्यक्ष स्व. अमरचन्दजी गोरेलालजी शर्मा, उपाध्यक्ष स्व. श्री फूलचन्दजी प्रेमचन्दजी शर्मा, कोषाध्यक्ष स्व. श्रीरामचन्दजी शिवप्रतापजी शर्मा, सचिव स्व. श्री ओमप्रकाश जी रामनारायणजी शर्मा, सहसचिव श्री मधुरालालजी दौलतराम जी शर्मा एवं प्रचार मंत्री स्व. श्री मनोरलालजी बिरदीचन्दजी शर्मा चुने गये। समाज को रजिस्टर्ड बनाने की पहली सीढ़ी के रूप में समाज का विधान (नियमावली) बनाने का भार शिक्षाविद् होने के नाते श्री रामचन्दजी को सौंपा गया, जिन्होंने ११ विद्वानों से विचार विमर्श कर समाज का विधान (बायलॉज) तैयार किया तथा उचित प्रक्रिया पूरी करते हुए ११ जुलाई १९८४ को समाज का पंजीयन कराया गया। पंजीयन संबंधी शासकीय ब्राह्मण समाज के नाम से रजिस्टर्ड संस्थान बन गया। जिसमें आगे सूर्य सप्तमी महोत्सव, मिलन समारोह व अन्य आयोजन होत रहे। इसी बीच समाज के नवयुवकों में जोश जागे एवं श्री ब्राह्मण नवयुवक संघ के नाम से युवा मण्डल बना जिसमें श्री महेन्द्र कृष्णगोपालजी शर्मा-अध्यक्ष, श्री किशोर फूलचन्दजी शर्मा-उपाध्यक्ष, श्री वीरेन्द्र अमरचन्दजी शर्मा-कोषाध्यक्ष, श्री अशोक  रामचन्द्र शर्मा-सचिव, श्री नितिन ओमप्रकाशजी शर्मा-सह सचिव एवं श्री नरेन्द्र बिरदीचन्दजी शर्मा-प्रचार-प्रसार मंत्री के रूप में चुने गये।

       मुख्य कार्यकारिणी के दूसरे चरण में प्रथम अध्यक्ष के निधन के पश्चात अध्यक्ष-श्रीरामचन्द्र शर्मा, उपाध्यक्ष-श्री फूलचन्द शर्मा, कोषाध्यक्ष-श्री मनोहरलालजी शर्मा, सचिव-श्री मथुरालाल जी शर्मा चुने गए। इस कार्यकारिणी के काल में अन्य आयोजनों के अलावा समाज हेतु आदित्य हृदय स्त्रोत, सूर्य आरती एवं भजनों को लेकर गायक विजय शर्मा की आवाज में 'जय भास्करÓ शीर्षक से एक कैसेट १९९० में मुम्बई की वीनस कम्पनी से जारी करवाया गया। 
       तदन्तर द्वितीय अध्यक्ष के निधन के पश्चात तीसरे चरण में अध्यक्ष-फूलचन्दजी शर्मा, उपाध्यक्ष-श्री गिरधारीलालजी शर्मा, सचिव-श्री ओमप्रकाशजी शर्मा, कोषाध्यक्ष-श्री मनोहरलालजी शर्मा एवं सहसचिव व प्रचार-प्रसार मंत्री श्री महेन्द्र शर्मा चुने गये। इसी अवधि में जनवरी-१९९६ में एरोड्रम रोड पर अशोक नगर में १५०० वर्गफुट का एक भूखण्ड क्रय किया गया। बाद में एरोड्रम के आगे गोम्मटगिरी के पास एक भूखण्ड रजिस्ट्री के खर्च पर समाज को दान देने का प्रस्ताव भी आया किन्तु शहर से दूरी तथा पुराने अनुभवों के आधार पर उसे प्रासंगिक नहीं माना गया। 
       तृतीय अध्यक्ष के निधन के पश्चात वर्ष १९९९ में नई कार्यकारिणी समाज में एक नई ऊर्जा, चेतना एवं उत्साह लेकर आई, इसमें जहां एक ओर अध्यक्ष-श्री विरेन्द्र शर्मा, उपाध्यक्ष -श्री महेन्द्र शर्मा और सह सचिव व प्रचार-प्रसार मंत्री के यप में विजय शर्मा जैसे युवा पदाधिकारी मिले वहीं कोषाध्यक्ष श्री मनोहरलाल शर्मा, सचिव ओमप्रकाश शर्मा एवं श्री राधेश्याम जी शर्मा, श्री गिरधारीलालजी शर्मा जैसे पुराने अनुभवी कार्यकारिणी में शामिल हुए। 
       यहीं से समाज ने पुराने साथियों के स्वप्न को साकार करने का नया अध्याय लिखते हुए वर्ष २००३ में बड़ा गणपति के समीप जिन्सी शंकरगंज एवं कण्डीलपुरा के मध्यमार्ग पर एक बड़ा भूखण्ड क्रय किया। जिसमें पुराने भूखण्ड की विक्रय राशि, पुरानी संचित निधियों के अलावा पदाधिकारियों एवं समाज के सदस्यों ने खुलेदिल से आर्थिक सहयोग दिया।
       दिनांक २८ मार्च २००४ को भारत सरकार की तत्कालीन केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री श्रीमती सुमिता महाजन के कर कमलों द्वारा भूमि पूजन एवं शिलान्यास का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर क्षेत्र की विधायक सुश्री उषा ठाकुर भाजपा नगर अध्यक्ष श्री शंकर लालवानी, पूर्व महापौर श्रीमती उमाशशि क्षेत्रीय पार्षद एवं स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर के महाप्रबन्धक श्री आर.डी. यादव विशेष रूप से आमंत्रित थे। कार्यक्रम में इन्दौर के अलावा मध्यप्रदेश के कई शहरों से सामाजिक बन्धु भी शामिल हुए। इस अवसर पर समाज को स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर से विज्ञापन के रूप में आर्थिक अनुदान प्राप्त हुआ।
       इसके साथ ही भास्कर भवन के निर्माण की शुरुआत हुई। समाज के सदस्यों ने उत्साहपूर्वक आर्थिक सहयोग देकर निर्माण कार्य को गति प्रदान की। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में इन्दौर के परिवार से जुड़ी श्रीमती जतन बेन पति स्व. श्री कांतिलालजी शर्मा (वर्धा) का उल्लेखनीय योगदान रहा। सम्पूर्ण भारत के विभिन्न प्रान्तों व शहरों से सामाजिक बन्धुओं का सहयोग भी प्राप्त हुआ। अंतत: वर्ष २०१२ में निर्माण कार्य पूर्णता की ओर अग्रसर होते हुए एक विशाल मन्दिर, हॉल, प्रांगण, किचन व लेट-बॉथ के रूप में आकार ले चुका था। वहीं मुख्य कार्यकारिणी जो निरन्तर कार्य प्रगति पर केन्द्रित थी अपने दो मुख्य पदाधिकारी सचिव श्री ओमप्रकाशजी शर्मा एवं ऊर्जावान कोषाध्यक्ष श्री मनोहरलालजी शर्मा को खो दिया। श्री मनोहरलालजी शर्मा ने प्रभारी श्री गिरधारीलालजी शर्मा जिनके साथ श्री ओमप्रकाशजी शर्मा निर्माण कार्य की देखरेख कर रहे थे। उनके साथ अनुभवी साथी श्री कृष्णगोपालजी मगनलालजी शर्मा को जोड़ा तथा निर्माण की पूर्णता के साथ श्री गिरधारीलालजी, श्री कृष्णगोपालजी एवं श्री महेन्द्र शर्मा को भगवान सूर्यदेव की मूर्ति का आर्डर देने से लाने तक की जिम्मेदारी सौंपी। वर्तमान कार्यकारिणी में रिक्त पदों पर सचिव पद पर श्री गिरधारीलालजी, कोषाध्यक्ष पद पर श्री बंशीलालजी बिरदीचन्दजी शर्मा एवं कार्यकारिणी सदस्यों श्री कमलेश शर्मा एवं श्री देवेन्द्र शर्मा को मनोनीत किया।
       वर्ष २०१३ के प्रारम्भ में भगवान सूर्यदेव की सात घोड़ों के रथ सवार विशाल आकर्षक मूर्ति २९ जनवरी से १ फरवरी, २०१३ को विभिन्न कार्यक्रमों, शोभायात्रा के साथ प्राण प्रतिष्ठित होकर मन्दिर में विराजमान हो गई। जिसने इन्दौर को सूर्य मन्दिर के रूप में नई सौगात दी। समाज अपनी ऊर्जावान कार्यकारिणी, सामाजिक सदस्यों एवं सहयोगियों को कोटि-कोटि साधुवाद देती है जिनके अथक प्रयासों से यह स्वप्न साकार हुआ।
 - पं. विजय शर्मा, इन्दौर, मो. : 9425054294
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