कैसा है? सूर्य का रथ एवं परिक्रमा की भव्यता




       माघ शुक्ल सप्तमी जिसे सूर्य सप्तमी या रथ सप्तमी के नाम से जाना जाता है। तथा शाकद्वीपीय (मग) ब्राह्मणों का प्रमुख पर्व है, विज्ञान ने यद्यपि यह सिद्ध कर दिया है कि सूर्य स्थिर है तथा पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है, परन्तु भारतीय शास्त्रों के अनुसार भगवान सूर्य अपने दिव्य रथ पर बैठकर परिक्रमा करते हुए इस संसार को जागृत रखते हैं। चूंकि सूर्य का तेज पुञ्ज इतना तीव्र है कि उसके सामने उनका दिव्य रथ कभी दिखाई नहीं देता है। इस रथ का संचालन पक्षीराज गरुड़ के भाई 'अरुण' करते है। यह रथ सदैव अदृश्य ही रहता है। हम भी इस दिव्य रथ की कल्पना ही कर सकते हैं कि यह कैसा होगा? यह कल्पना हमारी बौद्धिक क्षमता के अनुसार हो सकती है। परन्तु भविष्य पुराण में सूर्य रथ मात्र रथ नहीं है। सूर्य के साथ उनका वर्चस्व एवं नक्षत्र मण्डल की परिदृश्य है। वह कल्पनातीत है।  उसकी भव्यता अतुलनीय है। सूर्य रथ को सृष्टि का संचालक ही कह सकते है। रथ केवल भौतिक वस्तु नहीं है। संसार को जागृत रखने वाले भगवान भास्कर का वैभव भी है।
       रथ की रचना प्रतीकात्मक है। इसका हर अंग किसी न किसी का प्रतीक है। यह दिव्य रथ दस हजार योजन लम्बे चौड़े आकार का स्वर्ण रथ है। यह रथ चक्र, नाभि, अरे तथा कान्तिमान आठ बंधों से युक्त है। रथ का ईषा-दण्ड जिस पर सारथी अरुण बैठते हैं वह आकर्षक है। रथ में जूते अश्वों की संख्या सात है। जो वेगवान है। एक संवत्सर में जितने अंग होते हें उतने ही रथ के अंग हैं अर्थात् रथ संवत्सर का प्रतीक है। तीन काल माने गए है। भूत, वर्तमान, भविष्य। 
       इनका प्रतीक चक्र की तीन नाभियां हैं। रथ के अरे ऋतुओं का प्रतीक हैं। रथ के उत्तर और दक्षिण दोनों भाग इसके अयन हैं। रथ के देषु मुहूर्त हें। कला, शम्य, काष्ठाएं रथ के कोण हैं। अर्थ और काम धुरी का अग्रभाग है। गायत्री, त्रिष्टप, जगती, अनुष्टुप, पंक्ति, बृहति तथा अस्ष्ठिक ये सात छंद ही रथ के सात अंश हैं। इस प्रकार संपूर्ण रथ प्रतीकात्मक है जिस पर बैठकर भगवान भास्कर आकाश का भ्रमण करते हुए संसार को जागृत रखते हैं। भगवान सूर्य देव इस रथ पर अकेले होते हैं, परन्तु रथ अकेला नहीं होता है। रथ के साथ विस्तृत लवाजमा होता है जो रथ को घेर रखे होने हैं। उन्हीं के कारण सूर्य एक भव्य जुलूस के रूप में घिरे रहते हैं। इस रथ-यात्रा की भव्यता देखिए- देवता, ऋषि, गन्धर्व, अप्सरा, नाग, राक्षसादि रथ के साथ-साथ घूमते हैं तथा हर दो माह पश्चात् परिवर्तन होता रहता है। यही परिवर्तन ऋतुओं का (छ:) प्रतीक है। हर ऋतु का निर्धारण है। बारह मास की छ: ऋतुओं में यह क्रम इस प्रकार है- 
       चैत्र और वैशाख मास में घाता और अर्यमान नामक दो आदित्य, पुलात्य और पुलह ऋषि, खण्डक और वास्तुकि नाग, तुम्बरु और नारद गंधर्व, क्रस्तुस्थला तथा पुग्लिकस्थ्ला नाम अप्सराएं, रथ-कृस्त्स्न तथा खोजा नाम यक्ष, होते तथा प्रहेति नामक राक्षस रथ के साथ होते हैं।
       ज्येष्ठ तथा आषाढ़ मास में मित्र तथा वरुण नामक आदित्य, अत्रि तथा वसिष्ठ ऋषि, तक्षक और अनन्त नामक नाग, मेनका तथा सहजन्या अप्सराएँ, हाहा-हूहू गंधर्व, रथस्वान और रथ चित्र यक्ष, तथा पौरुषयं और वध नामक राक्षस रथ को घेर कर चलते हैं।
       श्रावण और भाद्रपद मास में इन्द्र तथा विवस्वान आदित्य, अंङ्गिरा और भृगु ऋषि, एलापर्ण तथा शंखपाल नाग, प्रक्लोचा और दुंदुका नामक अप्सराएँ, भानु और दुर्दुर गंधर्व, सर्प तथा ब्राह्म नामक राक्षस, स्रोत तथा आपूर्ण नामक यक्ष सूर्य के साथ चलते हैं। अश्विन और कार्तिक मास में पर्जन्य और पूसा नाक आदित्य, भारद्वाज और गौतम ऋषि, चित्रसेन तथा वसुरुचि नामक गंधर्व, विश्वाची तथा घृताची नामक अपसराएँ, ऐरावत और धनञ्जय नामक नाग सेनजित् और सुषेण यक्ष तथा आप एवं वात नामक राक्षस साथ रहते हैं।
       मार्गशीर्ष और पौष मास में अंशु तथा भग नामक आदित्य, कश्यप और क्रतु नामक ऋषि, महापद्म और ककौटक नामक नाग, चित्रांगद और अर्णायु नाम गंधर्व, सहा तथा सहस्या नामक अप्सराएं, ताक्ष्र्य तथा अशिट नेभि नामक यक्ष तो आप तथा वात नाम राक्षस तथा रहते हैं। 
       माघ तथा फाल्गुन मास में पूषा तथा विष्णु नामक आदित्य, जमदग्नि और विश्वामित्र ऋषि, काद्रवेय और कम्बलाश्वतर नामक नाग, धृत राष्ट्र तथा सूर्यवर्चा नामक गन्धर्व, तिलोत्तमा और रम्भा अप्सराएं, सेनजित और सत्यजित यक्ष, तथा ब्रह्मोपेत तथा यज्ञोपेत नामक राक्षस सूर्य की प्रतिपल घेर कर चलते हैं। वास्तव में सूर्य भगवान अकेले आकाश में भ्रमण नहीं करते हैं। उनका यह भ्रमण दिव्य रथ पर होती है जिसके साथ सृष्टि की संचालक समस्त प्राकृतिक एवं देवी शक्तियाँ अपना-अपना दायित्व निभाती हुई सूर्य के माध्यम से संसार का संचालन करती हैं। ऋतुएं, मौसम, मन्वन्तर इन सबका कारण सूर्य के माध्यम से ही है। रथ के साथ रहने वाले ऋषिगण सूर्य की स्तुति करते है, तो गंधर्वगण गान एवं अप्सराएं रथ के आगे नृत्य करती हुई सूर्य की इस रथ यात्रा को भव्य बनाते हैं। 
       सूर्य नक्षत्रमण्डल के अधिपति हैं। सूर्य की गति का ही पृथ्वी पर प्रभाव पडऩे से नक्षत्रों का ज्ञान होता है। वर्ष, माह, वार, तिथि इत्यादि इसी कारण से होते हैं। चूंकि 'मग' शाकद्वीपीय ब्राह्मण सूर्य के पुजारी हैं अत: सूर्य सप्तमी पर सूर्य एवं उनकी दिव्य रथ यात्रा को प्रतीकात्मक रूप से मनाते हैं। भगवान सूर्य के इसी प्रभाव को बताते हुए श्री कृष्ण ने साम्ब को बताया था कि जितने भी देवता है वे अदृश्य हैं। 
       उनका  काल्पनिक विश्वास किया जाता है। परन्तु सूर्य देवता संसार में प्रत्यक्ष देवता हैं जिनका प्रतिदिन दर्शन भी होता है। इन्हीं के कारण समाप्ति में जागृति रहती है। संसार गतिमान रहता है। ऐसे प्रत्यक्ष देवता सूर्य का दिव्य रथ पर भव्य शोभायात्रा को केवल शाकद्वीपीय समाज प्रतीकात्मक रुप से मनाता हैं। सूर्य सप्तमी के दिन रथ यात्रा का भी विधान है अत: इसे 'रथ सप्तमी' भी कहा जाता है।


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