जानिए क्या है? शाकद्वीपी मग भोजक ब्राह्मणों का इतिहास भाग-2




      भाई बन्धु/सूर्यवंशियों और चन्द्रवंशियों के इतिहास में शाकद्वीपीय मग ब्राह्मण के कई प्रसंग आये हैं। इन सभी प्रसंगों के प्रमाण प्राचीन इतिहास कर्नल टॉड द्वारा लिखित राजस्थान का पुरातत्व का इतिहास द्वितीय एवं तृतीय खण्डों में जो डॉ. धु्रव महाचार्य द्वारा अनुवादित है। उसमें इन प्रसंगों, सन्दर्भों, संकेतों, एवं टिप्पणियों में प्रमाण के रूप में पढ़ा जा सकता है। इन प्रमाणों को हमारे पारम्पारिक इतिहास स्त्रोतों से मिलाकर इस लेख को लिखने की मेरी रुची इसलिए रही कि मेरा जन्म जैसलमेर में हुआ। जैसलमेर के पुरातत्व के अनेक संदर्भ साक्ष के रूप में सूर्यवंशियों और चन्द्रवशियों के इतिहस में मुझे मिले हैं। पारम्परिक ख्यातों, पुराणों तथा देशी-विदेशी यात्रियों के वृत्तांतों में इतिहास में इनकी सामग्री मिलती है। जैसलमेर के इतिहास, कला, संस्कृति में मेरी रूची हाने के कारण मैं इतिहास प्रसंगों को ढ़ूंढकर अपने तरीके से पाठकों तक पहुंचाना चाहता हँू। जैसलमेर विश्व की समस्त संस्कृतियों का संगम है। यहां के भवनों, मंदिरों, कला, गीत, संगीत समाज और संस्कृति में प्राप्त साक्ष्य सूदूर ऐशिया, यूरोप, अफरीका, रूसतातारी आदि द्वीपों के इतिहास प्रसंगों में प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। 
       शाकद्वीपीय मग भोजक ब्राह्मणों में कई विद्वान हुवे हैं। ज्योतिषी, आयुर्वेदाचार्य, कर्मकाण्डी, तांत्रिक, कवि, लेखक, वैज्ञानिक और स्वतंत्रता सैनानी। हमारा इतिहास पांच हजार वर्ष पुराना है। इनके गौरवशाली इतिहास के कई साक्ष्य आज भी मिलते है। शाकद्वीप का इतिहास शाकद्वीपीय मग ब्राह्मणों की पहचान, उनका शाकद्वीप से जम्बूद्वीप में आगमन और भारत में विस्तार, उनके कर्म कार्य और नामों के परिवर्तनों के कारण इनमें बदलाव भी हुवे हैं। देशी-विदेशी लेखकों के संदर्भ संकेतों और प्रसंगों में तथा अभिलेखों पटटों, परवानों, मंदिरों, गांवों, नगरों तथा उपाधियों के रूप में तीन हजार वर्षों से क्रमबद्ध रूप में मिलते हैं। विदेशों से आने से शाकद्वीपीय ब्राह्मणों की संख्या अति अल्प है। मगर हजारों वर्षों से उनका नाम और गौरवशाली कृत्य और भारतीय संस्कृति को देन आज भी जीवित है।

       राजतंत्र में कई प्रभावशाली ब्राह्मण जातियां अपनी प्रतिष्ठा और उच्चता के लिये परस्पर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाकर यजमानीवृति के लोभ के कारण और राज्य में प्रतिष्ठा प्राप्त करने की भावना से एक-दूसरे को उच्चा नीचा दिखाने का प्रयास करते रहते थे। इस कारण ये लोग अनेक षडय़ंत्र भी रचते रहते थे। इतिहास में इस तरह के कई उदाहरण देखे जा सकते हैं। शाकद्वीपीय ब्राह्मणों का सम्बन्ध जैन ओसवालों से होने के कारण तथा पंचायतन मंदिरों व जैन मंदिरों की सेवा करने के कारण बहुसंख्यक ब्राह्मणों ने इन्हें निम्न बताने का समय-समय पर असफल प्रयास किया मगर हमारे विद्वानों नेे सप्रमाण उनको समय-समय पर निरूतर किया और समाज के गौरव को बनाये रखा। आज हम सक्रमण काल से गुजर रहे हैं। हमारी ही नहीं सारे विश्व की संस्कृति बदल रही हैं। आज की सोच दिशा दशा कार्य व्यक्ति समाज देश के प्रति नई पीढिय़ों का नजरियां बदल रहा है। ऐसे समय में हमारे इतिहास सन्दर्भों पुरातत्व को सुरक्षित रखना बहुत जरूरी हैं। इतिहास कभी पूर्ण नहीं होता आने वाली पीढिय़ां उनमें नया जोड़ती हैं अनावश्यक को हटाती हैं। हमारे समाज में कई विद्वानों ने इतिहास लिखा है जो आज हमारे जैसे इतिहास प्रेमी के लिये बड़ा उपयोगी व पथ प्रदर्शक है। 
       राजतंत्र में हर ब्राह्मण समाज जिनकी आजीविका यजमानवृति पर थी। वह अपने आपको श्रेष्ठ बताने के लिये परस्पर षडय़ंत्र रच लेते थे। मूर्तियों की पूजा पद्धतियां में अपनी योग्यता व श्रेष्ठा बताने में सदा लगे रहते थे। ऐसे कई प्रसंग और प्रमाण होते हुए भी मैं उसके बारे में कुछ नहीं कहँूगा। मेरा उद्ेश्य आने वाली पीढिय़ों को मात्र अपना आईना दिखाना है। हमारा कितना उतार चढ़ाव वाला इतिहास रहा है। कई राजवंशों को बदलते पलटते देखा है। आज लोकतंत्र को भी देख रहे हैं। बदलाव हर युग में हुए है और आगे भी होते रहेंगे। इन बदलावों का नाम ही इतिहास है। जो हमे हमारा स्वरूप दिखाता है। हमारी कमियों को सुधारने हेतु हमे अपना आईना दिखाता हैं। मार्गदर्शन कराता है। कृतज्ञ और कृतघ्न हर समय में हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे। प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। राजतंत्र में मंैने ऐेसे कई लोगों को देखा है जो ताशकन्द समरकन्द तक पैदल आते जाते थे। उनके यजमान वहां रहते थे। उनसे यजमानी दक्षिणा प्राप्त कर वापस आते थे। कई भाग्यशाली पहुँच पाते थे। कई मार्ग में ही प्रभुशरण हो जाते थे। मूलतान में सूर्य मंदिर था। वहां शाकद्वीपीय पुजारी थे। उनका सम्बन्ध जैसलमेर से था। मूलतान और मूलतान के सूर्य मंदिर के सम्बन्ध में मैंने आगे लिखा है। 

       शाकद्वीपीय मग ब्राह्मणों में कई विद्वान हुवे हैं जिसमें चाणक्य कोटिल्य, वरामिहिर, बाणभटट, मयुरभटट, माघ आदि के अलावा इतिहासकार स्वतंत्रता सेनानी, मंगलपाण्डेय लोकनाट्यकार कवि तेज का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता हैं। आधुनिक इतिहासकार, लेखक, साहित्यकार, कवि, संगीतकार विद्वान सम्पूर्ण भारत मे हुवे हैं उन सबको एक स्थान पर लाकर समाज को परिचय कराने इतिहास की बहूमूल्य सामग्री को संग्रहित संकलित कर उसे प्रकाशित करने का श्रेय आधुनिक इतिहासकार, समाजसेवी स्वर्गीय मेड़ता सीटी के श्री शंकरलाल कुवेरा को जाता है। उनके द्वारा लिखित शाकद्वीपीय मग ब्राह्मणों के इतिहास में पूरे भारत के लेखकों, कवियों, पत्रकारों, पत्र-पत्रिकाओं तथा शाकद्वीपी मग ब्राह्मणों के सम्बन्ध में जितने प्रमाण इकठे किये जा सकते थे। आपने बड़े परिश्रम और तन-मन-धन लगाकर साक्ष के रूप में मेरे जैसे इतिहास प्रेमी के लिये पंगडंडी बनाने का कार्य किया है। इसका महत्व आने वाली पीढिय़ां समझेगी। आपने कोई ऐसा विषय या प्रसंग नहीं छोड़ा है जो हमारी समाज के इतिहास से सम्बन्ध रखता हो। हमारे समाज की स्थान-स्थान से निकलने वाली पत्र-पत्रिकाओं के अंक, अंकों की जानकारियां आपके इतिहास में देखी जा सकती है। आपने प्राचीन वैदिक, पौराणिक और पारम्परिक इतिहास, आधुनिक देश विदेश के लिखकों के सन्दर्भों आदि को एक स्थान पर देकर शोधार्थियों के लिये बहुत बड़ी सामग्री उपलब्ध कराई हैं। आपने उस समय जिन लोगों ने हमारी समाज को निम्न बताने का असफल प्रयास किया उनका उन्होंने खंडन किया तथा समाज के गौरव को बढ़ाया और उन सभी प्रसंगों का यथा स्थान प्रकाशन किया है। 

       सूर्य की दो पत्नी संज्ञा और छाया। संज्ञा को स्वर्ण व जल उत्पति कर्ता द्यौ भी कहते हैं तथा छाया को निक्षुभा को अन्त और शस्य हवन सामग्रियां पैदा करने पृथ्वी माता कहते हैं। पृथ्वी की पुत्री इला है उसका विवाह चन्द्र के पुत्र बुध (वीनस) से हुआ। उसके वंशज चन्द्रवंशी या इन्दुवंशी जिसमें यदुवंश निकला। यदुवंश के 56 कुल हैं। उनमें श्रीकृष्ण पूर्ण अवतार हुए। हमारे देश का नामकरण भी इन्दु और इला के वंशजों के नाम पर पड़ा है। इनके इतिहास में हमारे पूर्वजों सूर्य मानस पुत्रों मगों का इतिहास समाहित हैं। शाकद्वीप के निवासी मग ब्रह्मण जम्बूद्वीप भोजवंशी कन्या से विवाह करने से उनके वंशज भोजक पंचायतन मंदिरों की पूजा उपासना के कारण सेवग तथा जैन ओसवालों के मंदिरों को पूजने से पुजारी सेवक कहलाये। पांच हजार वर्षों के इतिहास के प्रसंगों का संग्रह कर आने वाली पीढ़ी के लिये शाकद्वीपीय मग भोजक ब्राह्मणों का इतिहास प्रकाशित कर रहा हँू। पीढिय़ां नई आती हैं। वह देश काल के अनुरूप भाषा विषयों के साथ नवीन शोधों की जानकारी देना हर समाज के युवा इतिहासकारों का उतरदायित्व बनता है। मेरी उम्र 80 से आस पास आ गई है। राजतंत्र और लोकतंत्र को देखा है। अत: हमारे इतिहास में प्रत्यक्ष अनुभव बदलाव की विविध सूचनायें हैं। 
       आषा करता हँू कि मेरा यह कार्य हमारी आने वाली ओर वर्तमान युवा पीढी के लिये हितकर होगा। 
- नन्दकिशोर शर्मा, जैसलमेर।

Comments

  1. Bhuvan Bhaskaro ko Namaskar
    Achhap prayas bahut Khushi hui ki ham jag rahe hai.Mere jankari me chakbedoliya ek vasti hai vha ek pandit ji the pt.kino
    mishra unhone bhi kuchh likha tha vo prapt kare aur jaha bhi pata chale use prat kar ek kare.
    Mai AAP sabo ke rayas ki safalta ki kamna karata hu.
    Jai Bhaskar

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  2. समाज बंधुओं को आप द्वारा दी जा रही जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं शुभकामनाएं

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