जानिए पाकिस्तान के मुल्तान शहर का सूर्य मन्दिर


  वर्तमान पाकिस्तान में स्थित आधुनिक पंजाब के मुल्तान शहर को ही मूल स्थान कहते हैं। इसे ही आद्य स्थान कहा गया है।  मुल्तान के कई अन्य नाम काश्यपपुर, हंसपुर, भगपुर, साम्बपुर आदि३।
     साम्ब कोढ़ मिटने के बाद 12 मन्दिर बनवाये, जिसमें मुण्डिर (सुतीर) कालपी एवं मूलस्थान के मन्दिर मुख्य थे। इस मन्दिर का नाम 'आदित्य सूर्य मन्दिर' था।३ए 
     ग्रीक एडमिरल स्काइलेक्सने इसका वर्णन किया है। वह यहां से 515 ईस्वी पूर्व यहां से गुजरा था। हेरोडोरसने भी इसका वर्णन किया है। यह क्षेत्र ईसा पूर्व चौथी शताब्दी से ही सूर्य उपासना का केन्द्र रहा है। महाभारत में इसे मालवा कहा गया है, जो हस्तिनापुर के पश्चिम में मुल्तान के शासक जिबाविन ने जो कश्मीर ब्राह्मण वर्ग से सम्बन्ध रखता था ने 500 ई.वी. में नगर के पूर्व दिशा में एक सरोवर बनवाया तथा सरोवर के मध्य एक मन्दिर का निर्माण करवाया, जिसमें सोने की देव प्रतिमा स्थापित करवायी।
     इस अरबी ग्रन्थ का 712-753 में परिशयन में मुहम्मद अली बिना हमीद बिन अबुबकर कुफी ने किया। इसके अनुसार जीबाविन सिंध का शासक था, जिसका शासकीय नाम दीवाहीज या देवाजरीत था। जिवाविन ने खजाने के लिए 100 गज स्क्वायर क्षेत्र को चुना उसमें से 50 गज स्वक्वायरमें चेम्बर बनवाये 10 क्यूबिक गज के 8 चेम्बरों में खजाना भरा हुआ था। जिसमें सोना जवाहरात मोती आदि थे साथ ही 40 ताम्बे के वृहद जारों में अफ्रीकी सोने के कण भरे हुए थे। 
     सिक्का फोर्ट को जीतने में 7 दिन लगे उसके बाद सिक्का मुल्तान की तरफ बढ़ा। यह युद्ध 17 दिन चला। मन्दिर के रक्षक 4000 लोगों को मौत के घाट उत्तार दिया एवं उनके परिवारों को दास बनाया गया। फिर उसने अतबा जो सलमा का पुत्र था जिसे गर्वनर बनाया गया।
     आदित्य सूर्य मन्दिर : माना जाता है कि यह मन्दिर वर्तमान मुल्तान से 12 किमी. दक्षिण में स्थित था कुछ विद्वानों के अनुसार यह हाथीदांत बाजार के पास में स्थित था। वर्तमान में इसका कोई नामो निशान नहीं है। इस मन्दिर के पास ही एक सरोवर था, जिसका व्यास 132 फीट तथा गहराई १० फीट थी।
     हेन्सांग ने अपने यात्रा वृतांत में इस मन्दिर का वर्णन किया है। उसने 641 ई. में इस मन्दिर को देखा था। देव प्रतिमा सोने की थी एवं मूर्ति की आंखों में दो लाल मणिक्य जड़े हुए थे। दरवाजे, खम्भें शिखर सोने-चांदी एवं जवाहरात से अलंकृत थे। उसने मन्दिर में नृत्य करते हुए देव दासियों को भी देखा था। प्रतिदिन हजारों यात्री पूजा एवं दर्शन करने आते थे। 713 ई. में मुहम्मद बिना कासीम की सेना ने उमयाद खलिफा के नेतृत्व में उस मन्दिर पर आक्रमरण किया। यहां के रक्षक सैनिक लगभग चार हजार थे जिन्हे मार दिया गया। यहां से उसे कुल 13200 मन सोना प्राप्त हुआ जिसे तोला गया था। अलबिन मोहम्मद के विवरण के अनुसार सूर्य प्रतिमा सोने की थी। इसके नीचे 230 मन सोना और चालिस स्वर्णकण कलश (अफ्रीकी सोने के कण) वृहद कुभ थे। मन्दिर की ऊचाई लगभग 300 फीट थी। राजपूतों ने स्वर्ण प्रतिमा बचाने के लिए युद्ध नहीं किया। 
     ह्नेसांग ने वर्णन किया था कि मैंने मूल स्थान पुरा को देखा। मुल्तान देश 4000 ली. (667 मील) को राउण्ड में था तथा मुलस्थानपुरा 30 ली. (5 मील) घेरे में था। यहां कि जनसंख्या गहन थी। ज्यादातर जनसंख्या वैदिक धर्म मानने वाली तथा थोडी सी जनसंख्या बोद्ध धर्म को माननेवाली थी उसने वहां 8 देव मन्दिरों को देखा।
मुहम्मद गौरी ने 1175 में आक्रमण किया एवं मन्दिर को लूटा। इस प्रकार मन्दिर का पुन: निमार्ण होता रहा और विधर्मी 1666 तक इसे ध्वस्त करते रहे। आबू रिहान (अलबरुनी) ने लिखा है कि 11वीं शताब्दी के बाद किसी ने भी इस मन्दिर को नहीं देखा क्योंकि इसे नष्ट कर दिया गया। कुछ विद्वानों के अनुसार मुगलकाल तक यह मन्दिर अस्तित्व में था। औरंगजेब ने इसे ध्वस्त कर दिया।
लेख के सन्दर्भ ग्रंथ -
1. कनिंघम ज्योग्राफी ऑफ एनीसयन्ट इण्डिया
2. भविष्य पुराण
3. इण्डिका-अलब्रुनी
3. (अ). ए.वी.सी. श्री वास्त-सनवर्शिप इन एन्सिमन्ट इण्डिया
4. एच.डी. साकलिया-आर्कियोलोजी ऑफ गुजरात
5. टी.के. रविन्द्र युनिवसिटी ऑफ केरला डिपारमेन्ट ऑफ हिस्ट्री।
6. एन.एल.डे - द ज्योग्राफीकल डिक्शनरी ऑफ एन्सियन्ट एण्ड मेडिनल इण्डिया
7. एस बील-ट्रेवल्स ऑफ व्हेनसांग खण्डप
8. बी.जी. मीरचन्दसी जेआईएच खण्ड ४६
9. आर्यायण
10. कल्याण - सूर्य अंक
- श्रीनिवास शर्मा, इन्दौर- मो.: 8829873846






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