- कविता -

- कविता- 
अंधेरों को मिटाकर रोशनी करता रहे 
 नीतू शर्मा,  जैतारण, पाली

ऐ मेरे मन के दिये
तू हौशलों से काम ले,
आ रही आंधी इधर
खुद को जरा तू थाम ले 
काम तेरा जलना है 
तू बस सदा जलता रहे,
इन अंधेरों को मिटाके
रौशनी करता रहे 
जानते हो हर कदम पे
संग तेरे धोखें हुए है,
देख फिर से विघ्न कंटक 
रास्तें रोके हुए है 
पैर छूती ऊर्मियां जो
मोहमय बाधा ही है,
है नहीं मंजिल यहाँ
यह तो सफर आधा ही है 
राह दे पतवार से जिस 
कश्ती में तू सवार है,
है नहीं कुछ भी यहाँ 
मंजिल तेरी उस पार है 
हार कर टूटो नहीं
तुम पे मुझे विश्वास है,
कोशिशें करते रहो
जब तक बदन में श्वांस है 

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