नृत्याचार्य पं. पाण्डे की पुण्यतिथी पर गोष्ठी आयोजित
बीकानेर (आर के शर्मा)। शाकद्वीपीय ब्राह्मण बंधु चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आज ख्यातनाम नृत्याचार्य जमुना प्रसाद पाण्डे की 34वीं पुण्यतिथी पर एक कार्यक्रम का आयोजन श्री संगीत भारती में आयोजित किया गया । कार्यक्रम के मुख्य अतिथी डा. ओम कुवेरा थे तथा अध्यक्षता ट्रस्ट अध्यक्ष आर के शर्मा ने की । मुख्यवक्ता डा. मुरारी शर्मा थे । कार्यक्रम के प्रारंभ में पाण्डे के तैल चित्र पर पुष्पाजंली अर्पित कर उनका स्मरण किया गया । जमुना प्रसाद पाण्डे भारतीय स्तर के लब्ध प्रतिष्ठित नृत्यकला के साधक के रूप कें प्रतिष्ठित हुए । उन्होने का कि नृत्य नाटिका के पुनर्द्धार में मेडल मैनका को प्रथम नृत्यांगना
के रूप में स्वीकार किया जाता है । इनके बाद नृत्याचार्य उदयशंकर को माना जाता है । कथक शैली में भावनृत्य और नृत्यनाटिका प्रस्तुत करने का श्रेय पाण्डेजी को जाता है । पांडेजी की परंपरा को आगे बढ़ाते है डा. जयचन्द्र शर्मा और उनके वंशज । पांडेजी ने अपने समय की नर्तकियों साधना बोस, लीला देसाई, अमला शंकर, कमलेश कुमारी, मेडम मेनका व अंजुरी के साथ नृत्य भी किया । वे किसी जाति परिधि के कलाकार नहीं थे । राजस्थान और बीकानेर को नृत्य क्षेत्र में आधुनिक नृत्य शैली के परोधा के रूप में अद्वितीय कलाकार के रूप में उन्होने अपनी पहचान बनाई । डा. मुरारी शर्मा ने कहा कि बीकानेर में आपने संगीत कला मंदिर की स्थापना 1949 में की थी । उस समय बीकानेर में संभ्रांत परिवार की बहु बेटियों को मंच पर लाना अच्छा नहीं समझा जाताा था परन्तु पांडे जी के प्रयासों से बंगाली व कायस्थ परिवारों ने अपनी बालिकाओं को नृत्य सिखाने की पहल की । कालांतर में इस नृत्यशाला में बड़ी भीड़ देखने को मिली जिसका प्रबंध हरिबाबू द्वारा किया जाता था । कार्यक्रम में डा. कल्पना शर्मा ने कहा कि पांडेजी में राष्ट्रप्रेम भी कूट कूट कर भरा पड़ा था । हिन्दी के प्रचार प्रसार एवं जनजागृति के उद्देश्य से हिन्दी नाट्य परिषद की की कोलकाता में स्थापना की गई । परिषद में परखे हुए, स्वपनशील, सचरित्र युवा चेहरा थे जो नाटक की आड़ में राजनैनिक उग्रवाद के पक्षधर थे । परिषद के संस्थापकों में एक थे माधव शुक्ला, जिनका ज्यादा समय जेल में ही बीता । पांडेजी शुक्लाजी के अनुयायी थे । नमक सत्याग्रह में पांडेजी भी जेल गये थे । सरोजनी देवी नायडूने आपको नटराज की पदवी से नवाजा था । आपने करो या मरो साप्ताहिक का वितरण भी किया तथा जान जोखिम में डालकर डायनामाइट लाने का दायित्व भी पूरा किया । डा. ओम कुवेरा ने अपने उद्बोधन में कहा कि बीकानेर के शाकद्वीपीय ब्राह्मण परिवार में इनका जन्म हुआ । पिता पं. गिरधारी लाल व माता भीखीबाई थी जो पं. रघुनाथ जी की पुत्री थी । माता पिता की मृत्यु के बाद 14 वर्ष की आयु में जमुना प्रसाद पूरी तरह अनाथ हो चुके थे । । गणेशीदास दुधोड़िया ने इनका पालन पोषण किया । जिस मकान में वे रहते थे उसी में इनमे मामा बालूजी रहते थे । बालूजी के पुत्र श्रीकृष्ण का संबंध नाटय परिषद से था । पांडेजी भी इनके साथ परिषद जाने लगे । नृत्ययात्रा में आप मेडम मेनका के साथ मुम्बई भी रहे । बीकानेर राजदरबार में भी इनके नृत्यों को सराहना मिली । जोधपुर व बीकानेर रहकर आपने लोकनृत्यों की जानकारी भी हासिल की । आर के शर्मा ने समाहार करते हुए कहा कि श्री पांडे एक चरित्रवान कलाकार थे । पहले इनका नाम जमुना शंकर पांडे था जो बाद मे जमुना प्रसाद पांडे रखा गया । खादी के प्रचार और असहयोग आंदोलन में आपने बढ़चढ़ भाग लिया । कार्यक्रम में पुखराज शर्मा, डालचंद सेवग, शरद शर्मा व चतुर्भुज शर्मा सहित अन्य संगीतप्रेमी उपस्थित थे ।
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